संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) को लेकर केरल की एलडीएफ सरकार के साथ वाक युद्ध बढ़ने के बीच प्रदेश के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने रविवार को स्पष्ट किया कि वह ‘‘मूक दर्शक’’ नहीं बने रहेंगे. राज्यपाल ने उन्हें सूचित किए बिना सीएए के खिलाफ उच्चतम न्यायालय जाने को लेकर राज्य सरकार से रिपोर्ट भी मांगी है. शीर्ष अदालत जाने से पहले उन्हें सूचित नहीं करने को लेकर पिनराई विजयन सरकार पर हमला बोलने और “रबर स्टांप’’ नहीं होने की घोषणा करने के कुछ दिन बाद राजभवन ने इस मामले पर राज्य के मुख्य सचिव से रिपोर्ट मांगी है.
राज भवन के एक शीर्ष सूत्र ने रविवार को पीटीआई-भाषा से कहा, “राज्यपाल कार्यालय ने सीएए के खिलाफ शीर्ष अदालत का रुख करने के सरकार के कदम के बारे में उन्हें सूचित नहीं करने को लेकर मुख्य सचिव से रिपोर्ट मांगी है.” रिपोर्ट मांगे जाने की पुष्टि करते हुए बेंगलुरु से रविवार शाम यहां पहुंचे खान ने संवाददाताओं से कहा कि इसे “निजी लड़ाई” के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए. खान ने कहा, ‘‘यह निजी लड़ाई नहीं है. मेरी एकमात्र चिंता है कि संविधान और कानून कायम रहे और सरकार के काम-काज कानून के अनुरूप किए जाएं.” खान के रुख पर सत्तारूढ़ मोर्चे के साथ ही माकपा के मुखपत्र देशाभिमानी ने आक्रोश जाहिर किया था और “राजनीतिक बयानबाजी” करने के लिए उनकी निंदा की और आरोप लगाया कि वह, “सख्त लहजे’’ में राज्य को “धमका” रहे हैं.
हालांकि, राज्य इस बात पर कायम है कि उसने किसी नियम का उल्लंघन नहीं किया और राज्यपाल कार्यालय की शक्ति को चुनौती देने के लिए जानबूझ कर कोई प्रयास नहीं किए गए. कानून मंत्री ए के बालन ने शनिवार को कहा कि सरकार खान द्वारा उठाए गए सभी संशयों को दूर करेगी. नागरिकता कानून के खिलाफ विधानसभा में प्रस्ताव पारित करने के कुछ दिन बाद एलडीएफ सरकार ने विवादित कानून के खिलाफ 13 जनवरी को शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था. इससे नाराज खान ने बृहस्पतिवार को कहा था कि यह “अनुचित” था और प्रोटोकॉल एवं शिष्टाचार कहता है कि अदालत जाने से पहले सरकार को उन्हें सूचित करना चाहिए था. एलडीएफ द्वारा सीएए को निरस्त करने के संबंध में प्रस्ताव पारित करने के लिए विधानसभा का विशेष सत्र बुलाए जाने के बाद से खान और सरकार के बीच टकराव जारी है. खान ने रविवार को कहा कि उनकी जानकारी के बिना सरकार का अदालत जाना गैरकानूनी कार्य था.
उन्होंने कहा, “यह नियमों का उल्लंघन है. यह गैरकानूनी कार्य है. मैं कोई निजी लड़ाई नहीं लड़ रहा हूं. मैं बस यह कह रहा हूं कि कानून और संविधान का पालन होना चाहिए.” जब उनसे कानून मंत्री के राज्य सरकार द्वारा किसी नियम का उल्लंघन नहीं किए जाने के कथन के बारे में पूछा गया तो राज्यपाल ने उन्हें कानून दिखाने की चुनौती दी. खाने ने कहा, “उन्हें कानून का हवाला देने को कहें. मैं यहां कह रहा हूं. इसके बावजूद भी जबकि आप कह रहे हैं कि किसी ने अपनी निजी राय दी है. मैं आपको कानून बताता हूं. सरकार ने जो किया वह गैरकानूनी था. उन्हें मुझे प्रावधान दिखाने दें. मैं हर बात वापस ले लूंगा. मैं मूकदर्शक नहीं बना रहूंगा. मुझे सुनिश्चित करना है कि कानून एवं संविधान बरकरार रहें.” खान ने कहा, “कृपया इसे निजी लड़ाई न बनाएं.
मैं महत्त्वपूर्ण नहीं हूं. महत्त्वपूर्ण, देश का कानून और संविधान है. मेरा सिर्फ यह कहना है कि राज्य के कामकाज कानून के मुताबिक होने चाहिए.” खान ने मुख्यमंत्री पिनराई विजयन पर हमला बोलते हुए इससे पहले कहा था कि सार्वजनिक कार्य और सरकार के कामकाज को “किसी व्यक्ति या राजनीतिक दल की मर्जी” के मुताबिक नहीं चलाया जा सकता और हर किसी को नियम का पालना करना चाहिए. अपनी अप्रसन्नता को सार्वजनिक तौर पर जाहिर कर चुके राज्यपाल ने दिल्ली में संवाददाताओं से कहा था कि कामकाज के नियम की धारा 34(2) की उपधारा 5 के तहत प्रदेश सरकार को राज्य एवं केंद्र के रिश्तों को प्रभावित करने वालों की जानकारी राज्यपाल को देनी चाहिए. माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा कि आजाद भारत में राज्यपाल का पद अनावश्यक है.
उन्होंने यहां कहा, “अब हम केंद्र सरकार के अधीन नहीं हैं. हमें यह चर्चा शुरू करने की जरूरत है कि राज्यपाल का पद जरूरी है या नहीं.” उन्होंने कहा कि राज्यपाल की भूमिका राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के तौर पर होती थी. साथ ही कहा कि यह औपनिवेशिक काल को जारी रखना है. इस बीच, पार्टी के प्रदेश सचिव कोडियेरी बालाकृष्णन ने खान पर सरकार के रोजाना के कामकाज में बेवजह हस्तक्षेप करने का आरोप लगाया. उन्होंने पार्टी के समाचारपत्र के एक लेख में कहा, “राज्यपाल राज्य के लोगों द्वारा चुनी गई सरकार को बदनाम कर रहे हैं. राज्यपाल का पद राज्य सरकार को बदनाम करने के लिए नहीं होता.
Source : Bhasha