राजस्थान में बीजेपी का चेहरा कौन? आज कहां खड़ी हैं वसुंधरा राजे

राजस्थान में वसुंधरा का कद ही है जिसकी वजह से बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व भी वसुंधरा की अनदेखी करने का जोखिम नहीं उठा रहा है. इसकी बानगी हमने 30 जून को उदयपुर में देखी थी. उदयपुर में जब मंच पर गृह मंत्री अमित शाह और राजस्थान बीजेपी के नेता मौजूद थे.

राजस्थान में वसुंधरा का कद ही है जिसकी वजह से बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व भी वसुंधरा की अनदेखी करने का जोखिम नहीं उठा रहा है. इसकी बानगी हमने 30 जून को उदयपुर में देखी थी. उदयपुर में जब मंच पर गृह मंत्री अमित शाह और राजस्थान बीजेपी के नेता मौजूद थे.

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Prashant Jha
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वसुंधरा राजे, पूर्व मुख्यमंत्री, राजस्थान( Photo Credit : फाइल फोटो)

विधानसभा चुनाव की दहलीज पर खड़े राजस्थान में सियासी घटनाक्रम बड़ी तेजी से बदल रहे हैं. जहां एक तरफ कांग्रेस पार्टी में सीएम अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच लंबे समय से चली आ रही तनातनी थोड़ी शांत हुई है. वहीं, बीजेपी में राज्य की सबसे बड़ी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की भूमिका को लेकर सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है. हाल ही में वसुंधरा राजे ने दिल्ली में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की है. ऐसा बताया जा रहा है कि वसुंधरा की ये मुलाकात बीजेपी के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष के उस बयान की वजह से हुई है, जिसमें उन्होंने दावा किया था कि विधानसभा चुनाव में पार्टी पीएम नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ही मैदान में जाएगी. संतोष के इस बयान ने राजस्थान की सियासत में भूचाल ला दिया. चर्चाएं होने लगीं कि वसुंधरा राजे का राजनीतिक करियर अब खत्म हो गया है. 

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बता दें कि बीजेपी ने कई बार चाहा कि वसुंधरा को राज्यपाल या केंद्र में मंत्री पद देकर मान बढ़ाया जाए. लेकिन वसुंधरा ने राजस्थान ना छोड़ने की बात कहकर मना कर दिया. लेकिन अब जब राज्य चुनाव की चौखट पर खड़ा है उस वक्त केंद्रीय नेता का ये बयान वसुंधरा के गले नहीं उतरा. पूर्व सीएम ने तुरंत अपनी गाड़ी दिल्ली की तरफ मुड़वा दी और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात करने पहुंच गईं. इस मुलाकात का उद्देश्य ये जानना था कि आने वाले विधानसभा चुनाव में उनकी क्या भूमिका रहेगी? करीब 1 घंटे तक चली बैठक में वसुंधरा को आश्वासन के साथ जयपुर रवाना कर दिया गया. बैठक में क्या हुआ ये पता नहीं चल सका है. लेकिन जानकारों की मानें तो राजस्थान में आने वाले विधानसभा चुनाव में सत्ता की बाट जोह रही बीजेपी के लिए वसुंधरा को दरकिनार करना भारी पड़ सकता है.

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कांग्रेस ने बीजेपी के लिए खड़ी की चुनौती

राज्य में इस साल के दिसंबर महीने में विधानसभा के चुनाव होने हैं. साल 2018 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने बीजेपी को सत्ता से बाहर कर दिया था. इन चुनावों में कांग्रेस ने 200 में से 100 सीटों पर जीत दर्ज की थी, वहीं बीजेपी 73 सीटों पर सिमट गई थी. 13 सीटें निर्दलीय के खाते में गई थी, तो वहीं बीएसपी 6 सीटें जीतने में कामयाब रही थी. बहुमत से 1 सीट दूर गहलोत ने सबसे पहले बीएसपी के 6 विधायकों को कांग्रेस में मर्ज करवा दिया. और कुछ निर्दलीय विधायकों के समर्थन से वो अपनी सरकार के पांच साल पूरे करने जा रहे हैं. राजस्थान के राजनीतिक इतिहास पर नजर डालें तो साल 1990 से अब तक किसी भी मुख्यमंत्री ने पांच साल पूरे करने के बाद वापसी नहीं की है. हर बार बीजेपी और कांग्रेस एक-एक बार सत्ता में रही है. लेकिन इस बार सीएम अशोक गहलोत की कुछ कल्याणाकरी योजनाओं ने बीजेपी के लिए चुनौती खड़ी कर दी है. वहीं राज्य बीजेपी में चल रही गुटबाजी भी उसके लिए एक बड़ा संकट बनकर उभरी है. यही वजह है कि राज्य में बीजेपी की तरफ से कौन मुख्यमंत्री का चेहरा रहेगा इस पर कुछ भी क्लीयर नहीं है. लेकिन राजस्थान की सबसे प्रभावशाली नेता और दो बार की मुख्यमंत्री रह चुकी वसुंधरा के लिए इस बार का चुनाव उनके राजनीतिक कद को तय करने वाला माना जा रहा है. 

 क्या सच में वसुंधरा राजे पर बीजेपी दांव लगाने से कतरा रही

सियासी हलकों में ऐसी भी चर्चा है कि बीजेपी वसुंधरा राजे पर किसी भी तरह से दांव लगाने को तैयार नहीं है. क्योंकि कांग्रेस नेता सचिन पायलट लगातार पूर्व की वसुंधरा राजे सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते रहे हैं. कुछ दिनों पहले सचिन पायलट ने वसुंधरा सरकार में हुए भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्रवाई नहीं होने को लेकर अपनी ही सरकार के खिलाफ मौन रहकर धरना प्रदर्शन किया था. इस दौरान उन्होंने कहा कि सरकार को वसुंधरा सरकार में हुए भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्रवाई करनी चाहिए. हालांकि वसुंधरा ने भी सचिन पायलट को जवाब देने में देरी नहीं करते हुए कोटा की रैली में साफ कह दिया था कि अधर्मी व्यक्ति को कभी राजयोग नहीं मिलता है. सियासी हलकों में कांग्रेस के सीएम अशोक गहलोत और वसुंधरा के बीच बहन-भाई के रिश्ते की भी खासी चर्चा है. जानकार तो ऐसा बताते हैं कि समय-समय पर दोनों एक दूसरे की मदद के लिए खड़े होते हैं. राजस्थान में वसुंधरा का कद ही है जिसकी वजह से बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व भी वसुंधरा की अनदेखी करने का जोखिम नहीं उठा रहा है. इसकी बानगी हमने 30 जून को उदयपुर में देखी थी. उदयपुर में जब मंच पर गृह मंत्री अमित शाह और राजस्थान बीजेपी के नेता मौजूद थे. उस वक्त राजस्थान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र सिंह राठौर मंच पर संबोधन कर रहे थे. राठौर ने भाषण के लिए गृह मंत्री अमित शाह का नाम पुकारा. इस दौरान जोर-जोर से अमित शाह जिंदाबाद के नारे भी लगने लगे. लेकिन तभी शाह ने राठौर को टोकते हुए मंच पर उनके साथ बैठी वसुंधरा राजे का भाषण करवाने का इशारा किया. वसुंधरा ने अमित शाह के इस आदेश पर उनसे गुजारिश की कि आप पहले हैं, लेकिन अमित शाह ने वसुंधरा को हाथ जोड़ते हुए उन्हें पहले संबोधन करने की गुजारिश कर दी.

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बीजेपी में सीएम के कई चेहरे

वरिष्ठ पत्रकार श्याम सुंदर शर्मा बताते हैं कि राजस्थान में बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व की राजनीति को समझना थोड़ा मुश्किल है. उन्होंने बताया कि एक तरफ अमित शाह जब उदयपुर आते हैं तो वो वसुंधरा को आगे करते दिखाई देते हैं, वहीं जब प्रधानमंत्री बीकानेर आते हैं तो वसुंधरा राजे को बुलाया तक नहीं जाता है. दरअसल बीजेपी के लिए राजस्थान का विधानसभा चुनाव इसलिए भी बड़ी चुनौती है क्योंकि इन चुनावों के 3 महीने बाद ही लोकसभा चुनाव की घोषणा भी हो जाएगी. पिछले दो लोकसभा चुनाव से बीजेपी राजस्थान की 25 में से 25 सीटों पर जीत दर्ज करने में कामयाब रही है. और राजस्थान में इस बार भी पार्टी को वही प्रदर्शन दोहराना है. लेकिन इस बार राजस्थान बीजेपी में गुटबाजी बड़ी चुनौती बनती दिख रही है. सियासी जानकार बताते हैं कि बीजेपी में मुख्यमंत्री पद के कई दावेदार हैं और सबके अपने-अपने गुट है. एक तरफ पूर्व सीएम वसुंधरा राजे सिंधिया है, जो कई मौकों पर अपनी दावेदारी जता चुकी है. हालांकि ये माना जाता है कि राजेंद्र राठौड़ जैसे कई करीबी नेताओं के साथ छोड़ने के कारण वसुंधरा राजे सिंधिया कमजोर हो गई है. नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ तो अब खुद ही सीएम पद के दावेदार के तौर पर उभर कर सामने आ रहे हैं. ऐसे में देखना होगा कि बीजेपी वसुंधरा के भरोसे ही राजस्थान चुनाव में जाएगी या फिर किसी और पर दांव लगाएगी?

(लेखक- नवीन कुमार के ये निजी विचार हैं)

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