पर्यावरण संरक्षण की मुहिम में इस गांव ने प्लास्टिक को कहा ना, ऐसे लिया सबक
शुरुआत में प्लास्टिक पत्तल छोड़ने में झिझक हो रही थी लेकिन अब हर कोई इन पत्तलों को छोड़कर परंपरागत पत्ते के दोने और पत्तलों के उपयोग को तैयार हैं
highlights
- राजस्थान के केशवपुरा गांव ने रचा इतिहास
- ग्रामीणों ने सिंगल यूज प्लास्टिक किया बंद
- प्लास्टिक बंद होने से पत्ते के दोने-पत्तल की मांग बढ़ी
नई दिल्ली:
सरकार देश में दो अक्टूबर से भले ही सिंगल यूज प्लास्टिक के इस्तेमाल बैन लगाने जा रही है लेकिन जयपुर जिले का केशवपुरा ऐसा गांव है, जहां ग्रामीणों ने गांव को प्लास्टिक मुक्त कर लिया है. गांव में होने वाले सामूहिक भोज से लेकर सभी कार्यक्रमों में न केवल पत्ते से बने पत्तल-दोने काम ले रहे हैं. वहीं प्लास्टिक की थैलियों का उपयोग भी पूर्णतया बंद कर दिया. ग्रामीणों ने पर्यावरण संरक्षण और संवर्धन की इस सकारात्मक पहल को दूसरे गांवों तक भी पहुंचाने का संकल्प लिया है. पेश है इस गांव में प्लास्टिक बैन मुहिम की एक खास रिपोर्ट.
जयपुर जिले के चाकसू तहसील का गांव केशवपुरा की आबादी वाला गांव हैं. गांव में सामजिक धार्मिक आयोजनों में प्लास्टिक के चम्मच गिलास, पत्तल-दोनों का बहुतायत से उपयोग किया जा रहा था. प्लास्टिक के उपयोग से न केवल गांव का पर्यावरण प्रदूषित हो रहा था, बल्कि इन्हें खाने से पशु भी बीमार हो रहे थे. कई पशु अकाल मौत के ग्रास बन रहे थे. ऐसे में केशवपुरा गांव की विकास समिति आगे आई. समिति के सदस्यों ने गांव वालों को प्लास्टिक के उपयोग से हो रही हानि के बारे में समझाया. शुरू-शुरू में समिति के सदस्यों को परेशानी आई, लेकिन धीरे धीरे गांव वालों के समझ में यह बात आने लगी. इसके बाद ग्रामीणों ने सामूहिक रूप से प्लास्टिक के बैन का संकल्प लिया इसके बाद 10 जुलाई से गांव में सभी प्रकार के भोज में प्लास्टिक मुक्त पत्तल-दोनों का उपयोग शुरू किया. गांव में अब तक 11 सामूहिक भोज कार्यक्रम हो चुके हैं, सभी में पत्तों से बने पत्तल और दोने ही काम में उपयोग किए जा रहे हैं.
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दयाराम नाम के स्थानीय निवासी ने न्यूज स्टेट संवाददाता से बातचीत करते हुए बताया कि, प्लास्टिक की पत्तलों का उपयोग होने के चलते लोग इन्हें कूड़े में फेंक देते थे जिसके बाद जानवर इन जूठे पत्तलों को खाकर बीमार हो जाते थे. शुरुआत में प्लास्टिक पत्तल छोड़ने में झिझक हो रही थी लेकिन अब हर कोई इन पत्तलों को छोड़कर परंपरागत पत्ते के दोने और पत्तलों के उपयोग को तैयार हैं. केशवपुरा में नो प्लास्टिक की योजना को मूर्तरूप देने वाली ग्राम विकास समिति ने इस अभियान को नजदीक के दूसरे गांवों तक भी पहुंचाने की पहल कर रहे हैं.
केशवपुरा के आसपास के गांवों में समिति के लोग पहुंचकर ग्रामीणों को समजाने का प्रयास कर रहे हैं. उन्हें उम्मीद है कि जल्द ही उनकी मेहनत रंग लाएगी और आस-पास के इलाके के लोग भी प्लास्टिक बैन की इस मुहिम में बढ़चढ़कर हिस्सा लेंगे. समिति के सदस्यों की पहल का ही नतीजा है कि केशवपुरा के ग्रामीण उनके यहां आने वाले रिश्तेदारों और परिचितों को भी प्लास्टिक रूपी राक्षस को हटाने की बात कह रहे हैं. आपको बता दें कि जयपुर का केशवपुरा गांव साल 1981 की बाढ़ में बह गया था. तब 2 पक्के मकानों को छोड़कर अन्य सभी मकान, पशु सब बाढ़ के पानी के साथ बह गए थे. संघ के स्वयंसेवकों ने अथक प्रयास से गांव को पुन: बसाया. 2 अप्रैल सन 1982 को केशवपुरा के लोकार्पण समारोह में संघ के तृतीय सरसंघचालक बाला साहब देवरस पहुंचे थे. 37 साल बाद 5 अक्टूबर 2018 में केशवपुरा आदर्श ग्राम को सरकार के भू-राजस्व रिकॉर्ड में स्थान मिला.
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इधर दो अक्टूबर से सिंगल यूज प्लास्टिक बैन की खबर से पत्तल और दोना बेचने वालों में खुशी की लहर है. प्लास्टिक बैन के बाद एक बार फिर से पत्तल दोना व्यवसाय के अच्छे दिन लौट आएंगे. हालांकि उन्हें आशंका है कि सरकार अचानक इन्हें बंद कर देगी तो इतनी बड़ी तादाद में पत्ते के पत्तल और दोने कहां से लाए जाएंगे. जयपुर में छीले के पत्तों से पत्तल-दोने बनते हैं, वहीं झांझा के पत्तों से भी पत्तल दोने बनते हैं जो ओडिशा और दूसरे राज्यों से मंगवाए जाते हैं. जयपुर पहले गली-गली में पत्तों के पत्तल दोने बनाए जाते थे, लेकिन पत्तों की कमी के कारण धीरे धीरे यह धंधा मंदा पड़ता गया.
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अब भी खोले के हनुमानजी, मोतीडूंगरी गणेश मंदिर सहित कई धार्मिक स्थलों पर प्लास्टिक का पूर्णतया बैन किया हुआ है. वहां केवल पत्तों से बने या स्टील की थाली का ही उपयोग किया जाता है. हालांकि गांव में प्लास्टिक थैली की जगह कागज की थैली काम में ले रहे हैं. लालकिले की प्राचीर से 15 अगस्त को पीएम नरेंद्र मोदी ने भी सिंगल प्लास्टिक नहीं उपयोग करने का आह्वान किया है. केशवपुरा गांव की यह पहल अन्य गांवों के लिए उदाहरण है कि अगर ठान लिया जाए तो कुछ भी असंभव नही है.
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