राजस्थान में हो रहा राज्यसभा प्रत्याशियों का चुनाव अचानक नामांकन के अंतिम दिन उस वक्त रोचक हो गया जब बीजेपी की ओर से पहले से तय प्रत्याशी राजेन्द्र गहलोत के साथ ही वरिष्ठ बीजेपी नेता ओंकार सिंह लखावत को भी पार्टी ने नामांकन भरवा दिया है. इस घटनाक्रम से कांग्रेस पार्टी सकते में आ गई है. सियासी गलियारों में इसे मध्यप्रदेश की तर्ज पर राजस्थान में बीजेपी की ओर से कांग्रेस पर दबाव आने और कांग्रेस में भीतरी गुटबाज़ी का लाभ उठाने की कूटनीति के रूप में देखा जा रहा है.
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पहले चर्चा थी कि लखावत डमी कैंडीडेट के रूप में नामांकन दाखिल करेंगे. लेकिन आज सुबह ही जेपी नड्डा ने ओंकार सिंह लखावत को प्रत्याशी के रूप में उतारने की सूचना बीजेपी मुख्यालय में प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया को दी. इसके बाद लखावत को भी सूचित किया गया तो फौरन लखावत कागज़ात समेटकर विधानसभा पहुंचे.
बीजेपी विधायकों ने ही प्रस्तावक और अनुमोदक के रूप में लखावत के नामांकन पत्र पर हस्ताक्षर भी किए हैं. बीजेपी के नेता ओंकार सिंह लखावत ने दूसरे प्रत्याशी के तौर पर नामांकन फार्म भरा है, वैकल्पिक प्रत्याशी के तौर पर नहीं. पहले बीजेपी एक सीट पर ही चुनाव लड़ रही थी लेकिन कांग्रेस पार्टी की खेमेबाजी को देखते हुए ओंकार सिंह लखावत ने दूसरे उम्मीदवार के तौर पर बीजेपी से फार्म भरा है.
लखावत का कहना है कि राजस्थान में 200 विधायक हैं जिन्हें तीन राज्यसभा सदस्य चुनने हैं. पार्टी तीन तक कैंडीडेट खड़े कर सकती है. चुनाव लड़ना उनका लोकतांत्रिक अधिकार है इसलिए वे चुनाव लड़ रहे हैं.
पार्टी को लगता है कि दूसरा उम्मीदवार भी चुनाव लड़े इसलिए फार्म भरा है. एक तरह से अब तक सीधे तौर पर माना जा रहा है. राजस्थान का राज्यसभा चुनाव रोचक हो गया है. यहां भी विधायकों की खेमेबंदी पार्टी के भीतर और बाहर दोनों जगह देखने को मिलेगी. जिससे राजस्थान की राजनीति के चाय के प्याले में तूफान उठ सकता है. राजनीतिक उठा-पटक भी होने की संभावना रहेगी.
वैसे तो ओंकार सिंह लखावत को वसुंधरा राजे के खेमे का नेता माना जाता है लेकिन संघ पृष्ठभूमि होने के कारण वे आलाकमान को भी प्रत्याशी के तौर पर मुफीद लगे. इससे वसुंधरा गुट और आरएसएस दोनों को संतुष्ट करने का भी प्रयास बीजेपी पार्टी ने किया है. ऐसे में उनको कमतर आंकना ठीक नहीं होगा. अब कांग्रेस को अपने विधायकों के साथ- साथ अन्य निर्दलीय विधायकों को संभाल कर रखना होगा. क्योंकि अब बीजेपी दोनों सीटों पर जीत दर्ज करने के लिए प्रयासों में कोई कसर नहीं छोड़ेगी.
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कांग्रेस के लिए यह चुनाव प्रतिष्ठा का भी सवाल है खासकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के लिए अपने दोनों कैंडीडेट जिताना ज़रूरी है...क्योंकि क्रॉस वोटिंग हुई, तो आलाकमान तक बेहद गलत संदेश राजस्थान से जा सकता है. मध्यप्रदेश की तर्ज पर यहां भी उठापटक हो सकती है ऐसे में कांग्रेस पार्टी और मुख्यमंत्री दोनों को ही विधायकों को एकजुट रखना ज़रूरी है.
चुनाव 26 मार्च को होने हैं 13 दिनों में राजनीति क्या करवट ले सयह भी आज की परिस्थितियों में कहना कठिन है. लेकिन बीजेपी को शायद इस बीच कुछ उम्मीद है इसीलिए संख्याबल नहीं होने के बावजूद दूसरा प्रत्याशी खड़ा कर उसने कांग्रेस को तनाव की स्थिति में ला दिया है.