राजस्थान की सियासत में अब भी कुछ सही नजर नहीं आ रहा है. राज्य सरकार दो खेमों में बंटी हुई साफ नजर आ रही है, एक मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का तो दूसरा उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट का. अभी हाल ही में सीएम गहलोत ने बीएसपी के सभी छह विधायकों का कांग्रेस में विलय करवाकर अपनी सरकार को मजबूत कर लिया है. लेकिन इस मुद्दें पर दो खेमे बंटे नजर आ रहे हैं क्योंकि इस मामले की खबर उप मुख्यमंत्री और राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट को भी नहीं लगी थी. इसके बाद पायलट ने साफ संकेत दे दिए है कि मंत्रिमंडल विस्तार और निगम बोर्डों की नियुक्तियों में कर्मठ कांग्रेस कार्यकर्ताओं को ही वरीयता दी जायेगी.
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दरअसल, गुरुवार को सचिन पायलट ने अपना एक बयान जारी किया. इसके बाद से अटकलें तेज हो गई है कि उनके और गहलोत के बीच कुछ ठीक नहीं है. देश कांग्रेस मुख्यालय में गुरुवार को हुई एक बैठक में गहलोत और पायलट दोनों मौजूद थे. इस बैठक में पार्टी के प्रभारी महासचिव अविनाश पांडेय भी मौजूद थे.
बैठक से बाहर निकलने क् बाद जब मीडिया ने सीएम गहलोत से सवाल-जवाब करना चाहा तो वो बिना कुछ बोले ही वहां रवाना हो गए. इसके बाद सचिन पायलट और अविनाश पांडेय से जब पूछा गया कि बीएसपी विधायकों के मुद्दे पर सत्ता और संगठन में मतभेद दिख रहे है तो महासचिव ने इससे इंकार कर दिया.
सचिन पायलट से जब इस मामले पर सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि सभी बीएसपी विधायक बिना शर्त के कांग्रेस में शामिल हुए. लेकिन जब संगठन के लोगों को सत्ता में भागीदारी को लेकर उनसे सवाल किया गया तो उप मुख्यमंत्री ने कहा, 'हम ऐसा मैकेनिज्म बना रहे है जिससे उन कार्यकर्ताओं को भागीदारी मिले जिनके दम पर कांग्रेस सत्ता में आयी और जो कर्मठ कांग्रेस कार्यकर्ता है.'
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पायलट का ये बयान उस समय आया है जब राजस्थान में मंत्री मंडल विस्तार और राजनैतिक नियुक्तियों की चर्चा जोरों पर है. गहलोत ने अपने पिछले कार्यकाल में भी 6 बीएसपी विधायकों को कांग्रेस में शामिल कर सत्ता का स्वाद चखाया था. अब सचिन के बयान के बाद बी एस पी छोड़कर कांग्रेस में आए विधायकों को मंत्री या दूसरा पद देना गहलोत के लिए कितना मुश्किल होगा ये समय बताएगा.