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राजस्थान में स्टांप पेपर पर लिखवा कर लड़कियों की नीलामी, जानें क्या है मामला

राजस्थान मैं खुलेआम स्टांप पेपर लिखा कर लड़कियों की नीलामी का एक मामला सामने आया है जिसके बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी राजस्थान सरकार को नोटिस जारी कर दिया

Updated on: 28 Oct 2022, 07:31 PM

New Delhi:

राजस्थान मैं खुलेआम स्टांप पेपर लिखा कर लड़कियों की नीलामी का एक मामला सामने आया है. जिसके बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी राजस्थान सरकार को नोटिस जारी कर दिया. चौंकाने वाली बात तो यह है की इस पूरे मामले में कथित रूप से एक बड़ा गिरोह काम कर रहा है, जो कि गरीब परिवार की लड़की के माता-पिता को अपने शिकंजे में लेकर पहले तो उन्हें कर्जदार बनाते हैं और उसके बाद कर्ज नहीं चुका पाने की सूरत में उनकी बेटियों की बकायदा स्टांप पेपर पर लिखा कर नीलामी करवा लेते हैं.


स्टांप पेपर पर जमीन जायदाद की खरीद-फरोख्त तो होती ही है, लेकिन राजस्थान में लड़कियों की खरीद-फरोख्त के लिए भी स्टांप पेपर का उपयोग होने लगा है. राजस्थान के भीलवाड़ा से ऐसी ही कुछ तस्वीर सामने आई हैं, जिनमें स्टाम्प पेपर पर लड़की बेचने का मामला सामने आया है. यानी कि बाकायदा कानूनी तरीके से लिखा पढ़ी और स्टांप पेपर में दर्ज कराने के बाद राजस्थान में बेटियों की खुलेआम नीलामी चल रही है. राजस्थान की राजधानी जयपुर से करीब 340 किलोमीटर दूर स्थित टेक्सटाइल सिटी भीलवाड़ा जिले के पंडेर क्षेत्र की लड़कियों की नीलामी के कुछ ऐसे ही स्टांप पेपर मिले हैं। सुनकर चौक जाएंगे कि बकायदा एक सोची समझी साजिश के तहत गरीब परिवार की लड़कियों की नीलामी से पहले उनके अभिभावकों को कर्जदार बनाया जाता है। इनसे बकायदा स्टांप पेपर पर लिखवा भी लिया जाता और जब यह कर्ज चुकाने में विफल रहते हैं तो उनकी लड़कियों की नीलामी की बोली लगनी शुरू हो जाती है ।

अपने जाल में फंसी लड़कियों को यह दलाल देह व्यापार में बेच देते हैं या फिर किसी अधेड़ से उसकी शादी करवा देते हैं। बाकायदा इस पूरी प्रक्रिया के लिए कर्ज देने वाला अपनी वसूली के लिए गांव में जातिय पंचायत को भी बैठता है और यहां से लड़कियों की निलामी का खेल शुरू किया जाता है. बेटियों का सौदा कर उन्हें गुलाम कराने में दलाल की अहम भूमिका होती है. सुनकर चौक जायेंगे की जातीय पंचायत कभी भी पहली मीटिंग में फैसला नहीं सुनाती। कई बार पंचायत बैठती है। हर बार जातीय पंचों को बुलाने के लिए दोनों पक्षों को करीब 50-50 हजार रुपए का खर्चा करना पड़ता है। इसके बाद जिस पक्ष को पंचायत दोषी मानती है उस पर 5 लाख रुपए तक का जुर्माना लगाया जाता है। फिर कर्जा उतारने के लिए बहन-बेटियों को बिकवाते हैं।

कर्जा नहीं उतारने पर उस लड़की के पिता को समाज से बहिष्कृत तक करने का अल्टिमेटम दिया जाता है। आरोप तो यह भी सामने आ रहे हैं कि जातीय पंचों ने भी इसे रुपए कमाने का तरीका समझ लिया क्योंकि ऐसे मामलों में पंचों को हर डील में कमीशन मिलता है। इसी कमीशन के लिए जातीय पंच गरीब परिवारों पर लाखों रुपए का जुर्माना लगाते हैं, ताकि वह कर्जा उतारने के लिए अपने घर की लड़कियों को बेचने के लिए मजबूर हो जाएं। हालांकि इस पूरे मामले में अब तक लिखित में पीड़ित लड़की के किसी भी परिजन से राजस्थान पुलिस में कभी कोई शिकायत नहीं मिली है लेकिन इस खबर के सामने आने के बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने राजस्थान सरकार और डीजीपी को नोटिस जारी कर पूरी रिपोर्ट तलब की है।