logo-image

सियासी घमासान पार्ट 2 : बसपा से कांग्रेस में शामिल विधायक असंतुष्ट

बसपा से कांग्रेस में शामिल हुए विधायक को खेमे से आ रही है बड़ी खबर गहलोत सरकार से संतुष्ट नहीं हो रहे बसपा विधायक. कहा हम माइनस में है मुकदमे झेल रहे है जहां तक आलाकमान की बात है वो बेवफा है.

Updated on: 14 Jun 2021, 07:03 PM

highlights

  • राजस्थान सियासी घमासान पार्ट 2 
  • बसपा से कांग्रेस में शामिल विधायक असंतुष्ट
  • सचिन पायलट ने कांग्रेस आलाकमान पर सवाल उठाए थे

 

जयपुर:

बसपा से कांग्रेस में शामिल हुए विधायक को खेमे से आ रही है बड़ी खबर गहलोत सरकार से संतुष्ट नहीं हो रहे बसपा विधायक. कहा हम माइनस में है मुकदमे झेल रहे है जहां तक आलाकमान की बात है वो बेवफा है. आप मजबूती से लड़ नही रहे है इस पर राजेंद्र गुढ़ा ने कहा आगे आगे देखिए ये तो ट्रेलर है पिचर अभी बाकी है. कल हम सभी विधायक मिलकर करेंगे निर्णय हमे नही है किसी की परवाह. बातों हो बातों में गहलोत सरकार से असन्तुष्ट होने के दिये संकेत. क्या पायलट से आपकी बात हुई है इस पर राजेंद्र गुढ़ा ने कहा वो भी हमारे आदमी है. सुप्रीम कोर्ट के नोटिस झेल रहे हैं कोई पूछ नहीं रहा मुसीबत में हम है कोई पूछ नही रहा दिक्कतें ज्यादा है.

इस बीच बसपा से कांग्रेस में आए विधायक राजेंद्र गुढ़ा भी अब अशोक गहलोत के खेमे से बगावत करते नजर आ रहे हैं. उन्होंने कहा है कि क्या कांग्रेस आलाकमान को यह समझ नहीं आता है कि अब इसमें ज्यादा देरी नहीं होनी चाहिए. विधायक राजेंद्र गुढ़ा ने कहा है कि 11 महीने पहले सरकार संकट में आ गई थी. कांग्रेस के 19 विधायक सरकार का साथ छोड़ कर चले गए थे. बसपा से आए 6 और अन्य 10 निर्दलीय विधायकों ने सरकार को बचाया था. 16 विधायक नहीं होते तो आज सरकार की प्रथम पुण्यतिथि होती. उन्होंने कहा कि हमारे मुख्यमंत्री के पास इस्तीफा देने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता. सरकार को वफादार और गैरवफादार में अंतर करना चाहिए.

गौरतलब है कि जितिन प्रसाद के कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में जाने के बाद से राजस्थान कांग्रेस में हलचल पैदा हो गई. सचिन पायलट ने कांग्रेस आलाकमान पर सवाल उठाए थे, जिसके बाद उनके बीजेपी में जाने की अटकलों ने जोर पकड़ लिया. सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायकों ने पार्टी आलाकमान को अल्टीमेटम दिया कि या तो जुलाई तक मंत्रिमंडल विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियां करने का वादा पूरा करो, नहीं तो वे आगे निर्णय लेने में स्वतंत्र हैं. जिसके बाद राजस्थान में फिर से राजनीतिक नाटक शुरू हो गया.