गहलोत-पायलट के बीच खींचतान में फंसी राजनीतिक नियुक्तियां, 52 बोर्ड निगमों में अध्यक्ष से लेकर सदस्यों के पद खाली

राजस्थान में कांग्रेस को सत्ता में आए 13 महीने बीच चुके हैं, लेकिन सत्ता का सुख कांग्रेस के उन नेताओं और कार्यकर्ताओं को अभी तक नसीब नहीं हो रहा है.

राजस्थान में कांग्रेस को सत्ता में आए 13 महीने बीच चुके हैं, लेकिन सत्ता का सुख कांग्रेस के उन नेताओं और कार्यकर्ताओं को अभी तक नसीब नहीं हो रहा है.

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Sushil Kumar
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गहलोत-पायलट के बीच खींचतान में फंसी राजनीतिक नियुक्तियां, 52 बोर्ड निगमों में अध्यक्ष से लेकर सदस्यों के पद खाली

अशोक गहलोत और सचिन पायलट( Photo Credit : न्यूज स्टेट)

राजस्थान में पिछले 13 महीने से कांग्रेस के नेता-कार्यकर्ता राजनीतिक नियुक्तियों का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट के बीच चल रही खींचतान में नियुक्तियां फंस चुकी हैं. इसकी सजा जनता भुगत रही है. राजस्थान में कांग्रेस को सत्ता में आए 13 महीने बीच चुके हैं, लेकिन सत्ता का सुख कांग्रेस के उन नेताओं और कार्यकर्ताओं को अभी तक नसीब नहीं हो रहा है. जिनका सरकारी बोर्ड-निगमों में राजनीतिक नियुक्ति का इंतजार है. राज्य के 52 बोर्ड निगमों में अध्यक्ष से लेकर सदस्यों के पद खाली है. इन पदों पर राजनीतिक नियुक्ति होनी है, लेकिन अभी तक सिर्फ इंतजार है.

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सबसे अधिक असर राज्य महिला आयोग जैसे महत्वपूर्ण आयोगों और बोर्डों पर पड़ रहा है. राजस्थान में महिलाओं के खिलाफ अपराध का ग्राफ बढ़ता जा रहा है. दूसरी तरफ महिलाओं की पीड़ा सुनने के लिए न अध्यक्ष न सदस्य. सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री मास्टर भंवरलाल ने कहा अभी बार चुनाव के चलते नियुक्तियां नहीं हो पाईं. जल्द ही नियुक्ति कर ली जाएगी. बता दें कि असली वजह चुनाव नहीं, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट के बीच खींचतान है.

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दरअसल राजनीतिक नियुक्ति करने का काम मुख्यमंत्री का है, लेकिन पार्टी की सलाह से होती है. राज्य में पार्टी की कमान सचिन पायलट के पास है. जाहिर है राजनीतिक नियुक्तियों पर गहलोत को पायलट से सलाह लेनी पड़ेगी, लेकिन गहलोत पायलट गुट में इतनी खींचतान है कि दोनों एक दूसरे के समर्थक कार्यकर्ताओं को सत्ता का मेवा नहीं खाने देना चाहते हैं. परिवहन मंत्री प्रताप सिंह भी इसी ओर इशारा कर रहे हैं कि दोनों साथ बैठेंगे तब हो जाएगी.

दरअसल, चुनाव जीतने वाले सीनियर नेताओं को मंत्री पद मिल जाता है. बावजूद कई सीनियर नेता मंत्रीमंडल में जगह बनाने में नाकाम रहे हैं. पार्टी को चुनाव जिताने के लिए पसीना बहाने वाले कार्यकर्ता और नेताओं को भी इंतजार रहता है. सत्ता का सुख राजनतिक नियुक्तियों के जरिए उन्हें भी मिल जाए. जाहिर ये सुख नहीं मिलता तो कसमसाहट भी है. कुछ नाराजगी भी, लेकिन गुस्से के इजहार से फिलहाल बच रहे हैं. ऐसा न हो कि नाम कट जाए.

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