Makar Sankranti 2020: इस बार जयपुर की पतंगबाजी में आसमान में छाएगा NRC-CAA का मुद्दा
मकर संक्रांति के मौके पर राजस्थान के जयपुर में होने वाली पतंगबाजी पूरी दुनिया में मशहूर है. यहां की पतंगबाजी देश-दुनिया में खास पहचान रखता है. इस मौके पर जयपुर के बाजार रंग-बिरंगी पतंगों से सज चुके हैं और लोग इसकी खरीददारी में जुट गए है.
नई दिल्ली:
मकर संक्रांति के मौके पर राजस्थान के जयपुर में होने वाली पतंगबाजी पूरी दुनिया में मशहूर है. यहां की पतंगबाजी देश-दुनिया में खास पहचान रखता है. इस मौके पर जयपुर के बाजार रंग-बिरंगी पतंगों से सज चुके हैं और लोग इसकी खरीददारी में जुट गए है. पतंग बाजार में लोगों की काफी भीड़ देखी जा रही हैं, जयपुर में पतंग विक्रेताओं की अलग ही पहचान है. शहर में पतंगों का होल सेल मार्केट है, जो जयपुर के अलावा बीकानेर, जोधपुर, कोटा, टोंक, सवाई माधोपुर जिलों में पतंगे भेजते हैं.
राज्य के अलावा बाहर भी यहां से पतंगों की सप्लाई होती हैं, जिसमें दिल्ली, हरियाण, कोलकाता और हुबली शामिल है. वहां के पतंग विक्रेता अपने द्वारा निर्मित पतंगों के अलावा बरेली से भी पतंग एवं माझों की खरीद कर विभिन्न स्थानों पर क्रय विक्रय करते हैं.
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पतंग उड़ाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. कभी रीति-रिवाज, परंपरा और त्योहार के रूप में उड़ाए जाने वाली पतंग आज मनोरंजन का पर्याय बन गई है. पतंग विश्व के कई देशों में उड़ाई जाती हैं, लेकिन भारत के कई राज्यों में भी पतंग विभिन्न पर्वो और त्योहारों पर उड़ाई जाती है. माना जाता है कि पतंग का आविष्कार ईसा पूर्व तीसरी सदी में चीन में हुआ था. दुनिया की पहली पतंग एक चीनी दार्शनिक मोदी ने बनाई थी.
पतंग का इतिहास लगभग 2,300 वर्ष पुराना है, पतंग बनाने का उपयुक्त सामान चीन में उपलब्ध था जैसे रेशम का धागा और पतंग के आकार को सहारा देने वाला हल्का बांस. चीन के बाद पतंगों का फैलाव जापान, कोरिया, थाईलैंड, बर्मा, भारत, अरब, उत्तरी अफ्रीका तक हुआ है.
जयपुर में शीत ऋतु के आरंभ होने के कुछ समय बाद से ही पतंग उड़ाने का सिलसिला चालू हो जाता है. पतंग उड़ने का यह सिलसिला मकर संक्रांति के दिन, जिसे यहां सकरांत कहा जाता है, अपनी चरम सीमा पर पहुंच जाता है. वातावरण में 'वो काटा वो मारा' की ध्वनियां गूंजती रहती हैं. पतंग उड़ाने का यह सिलसिला बहुत पुराने समय से चला आ रहा है.
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मिर्जा राजा जयसिंह के आश्रय में रहने वाले प्रसिद्ध महाकवि बिहारी ने आमेर में उड़ाई जाने वाली पतंगों का 'गुडी' के रूप में बहुत सुंदर एवं काव्यात्मक वर्णन किया है. हवामहल के निर्माता सवाई प्रताप सिंह के समय के चित्रों से यह जानकारी मिलती है कि उस समय में राजपरिवार से संबंधित स्त्रियां भी पतंग उड़ाया करती थी.
जयपुर में यू तो पतंगबाजी का इतिहास सदियों पुराना है,मगर कहते हैं महाराजा मानसिंह ने जयपुर में पतंगबाजी को महोत्सव का रूप दिया,मकर संक्रांति पर जयपुर की पतंगबाजी देखते ही बनती है,क्या बच्चे क्या जवान,वृद्ध सभी छतों पर नजर आते हैमगर पतंगबाजी अभी से ही शुरू हो जाती है.
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हांड़ीपुरा के बाजार में खरीददारों की भीड़ उमड़ रही है, यहां दर्जनों प्रकार की पतंगे और मांझा मिलता है. हालांकि मंझा बरेली से आता है इस बार पतंगों पर एनआरसी, CAA,,जैसे मुद्दे भी छाए हुए हैं. पतंगबाजी किस तरह होती ,किस तरह पता धागा बांधा जाता है, यह भी एक कला है और यह कला जयपुर में बच्चों, महिलाओं,और बुजुर्गों में साफ दिखती है.
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