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लोकसभा चुनाव

आरोपों की राजनीति से अटका 40,000 करोड़ रुपए का ईस्टर्न राजस्थान कैनाल प्रोजेक्ट

​​​​​आरोपों की राजनीति से अटका 40,000 करोड़ रुपए का ईस्टर्न राजस्थान कैनाल प्रोजेक्ट, कैसे और कब मिलेगा 13 जिलों के लोगों को पेयजल, सिचाई और उद्योगों के लिए पानी

Updated on: 10 Aug 2022, 06:09 PM

नई दिल्ली:

राजस्थान में पानी को लेकर सियासत कोई नई बात नहीं है, लेकिन यह पहला मौका है जब पानी को लेकर इस तरह से राजनीती हो रही हो की केंद्र और राज्य सरकार आमने
सामने हैं. वजह पानी के साथ साथ ही 100 विधानसभा सीटें भी जुडी हैं, ऐसे में कांग्रेस हो या बीजेपी इसे लेकर सियासत करने में कोई कसार नहीं छोड़ रही है. हम बात कर रहे हैं इस्टर्न राजस्थान केनाल परियोजना की. जिसकी लागत 40 हज़ार करोड़ रूपये हैं, और 13 राज्यों की पेयजल, सिंचाई और उद्योगों के लिए इससे पानी मिलना है.

यह तस्वीर है जयपुर आगरा नेशनल हाईवे 21 की. जहाँ इस्टर्न राजस्थान केनाल परियोजना( ईआरसीपी) को लेकर हजारों लोगों ने जाम लगा रखा है. यह तस्वीर मंगलवार की बीजेपी सांसद किरोड़ी लाल मीना की दौसा से जयपुर कूच की है, लेकिन सीएम गहलोत का कहना है की केंद्र सरकार की इस जल स्वावलंबी परियोजना में अडंगा
लगा रही है लेकिन वे अपने बूते पर भी इसे पूरा करके दिखाएँगे. सवाल यह है की आखिरकार क्या है यह परियोजना और क्यों यह केंद्र और राज्य सरकार के गले की फास बना हुआ है. इस कैनाल पर 40,000 करोड़ रुपए खर्च होने हैं.

राजस्थान की करीब तीन करोड़ जनता से जुड़ा यह मुद्दा है. इस परियोजना के तहत पूर्वी राजस्थान के झालावाड़, बारां, कोटा, बूंदी, सवाई माधोपुर, अजमेर, टोंक, जयपुर, करौली, अलवर, भरतपुर, दौसा और धौलपुर जिले हैं. केंद्रीय जल आयोग ने प्रोजेक्ट के लिए हाइड्रोलॉजी की सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है। यहाँ तक की मुख्यमंत्री गहलोत के पिछले दो साल में आधा दर्जन पत्र प्रधानमंत्री व राजस्थान से ही आने वाले जल शक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह को लिखने के साथ नीति आयोग की बैठक में भी इसका मुद्दा उठ चुका है। प्रोजेक्ट की डीपीआर को भी बने पांच साल बीत चुके हैं. लेकिन राजनीती एसी की यह अब तक अटकी पड़ी है. ERCP के तहत 13 जिलो की 100 विधानसभा सीटें हैं, वर्त्तमान में कांग्रेस के पास 50 बीजेपी के पास 22 , RLD के पास 1 और 7 सीट पर निर्दलीय हैं, यही ही वजह है की दोनों ही दल इस योजना का क्रेडिट लेना चाहते हैं. वजह यह परियोजना जमीं की उर्वरा के साथ सियासी फसल के लिए भी अहम् है. सांसद किरोड़ी और समर्थकों के तेवर देखकर भले ही 48 घंटे में कमेटी बनने का आश्वाशन दे दिया मगर जिस तरह किरोड़ी के तेवर दिख रहे हैं उससे साफ़ है की पानी का यह मुद्दा चुनावी मुद्दा बनने जा रहा है.

अल्पवृष्टि के कारण कई दशकों से जल संकट जैसी गंभीर समस्या का सामना कर रहे राजस्थान को जल की दृष्टि से आत्मनिर्भर बनाने के लिए यह एक बड़ी परियोजना
है.  लेकिन इसे लेकर जिस तरह से सियासत हो रही है उसमे जल संकट के समाधान की ओर प्रयास कम जबकि सियासी लाभ- हानि को लेकर राजनीतीक दल अधिक चिंतित दिखाई दे रहे हैं .