राजस्थान में नई सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में कांग्रेस लोकसभा चुनावों के लिए अपनी महागठबंधन की यात्रा में नया पड़ाव जोड़ने की कोशिश करती नजर आई. चुनाव में भी उसने इस बड़े गठजोड़ के संभावित साथियों को 5 सीटें भी दी. कांग्रेस की यह कवायद राष्ट्रीय चुनावी तस्वीर के लिए है लेकिन राजस्थान में आने वाले लोकसभा चुनावों में महागठबंधन से अलग उसके लिए स्थानीय खतरे बड़े साबित हो सकते हैं.
हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने पांच सीटें संभावित महागठबंधन के दलों को दी थी. लोकतांत्रिक जनता दल को अलवर जिले की मुंडावर और बांसवाड़ा की कुशलगढ़, राष्ट्रीय लोकदल को भरतपुर और टोंक जिले की मालपुरा और एनसीपी को पाली जिले की बाली सीट दी थी. इनमें केवल भरतपुर की सीट ही आरएलडी के डॉ. सुभाष गर्ग जीत सके. जबकि, मालपुरा में उसके उम्मीदवार रणवीर पहलवान और बाली में एनसीपी के उम्मेद सिंह दूसरे नंबर पर रहे.
वहीं मुंडावर और कुशलगढ़ में तो एलजेडी तीसरे स्थान पर चला गया. कुशलगढ़ में तो उसके उम्मीदवार फतह सिंह को मात्र 2267 वोट ही मिलें, जबकि वे इस सीट से छह बार विधायक रह चुके हैं. ऐसे में लोकसभा चुनावों के महागठबंधन की इस छोटी कवायद में कांग्रेस को आंशिक कामयाबी ही मिलती दिख रही है. यह भी साफ होता है कि चुनाव में कांग्रेस ने जीस तीन दलों को साथ लिया उनका इस आधार मजबूत नहीं है. हालांकि बीजेपी कांग्रेस के नेता इन समीकरणों को अपने अपने पक्ष में बता रहे हैं.
महागठबंधन के दो संभावित बड़े दलों बीएसपी और एसपी से राजस्थान विधानसभा चुनावों में उसका समझौता नहीं हुआ था. एसपी की तो चुनावों में उपस्थिति न के बराबर थी, लेकिन बीएसपी चार प्रतिशत वोट बटोरते हुए छह सीटें झटकने में कामयाब रही. ऐसे में लोकसभा चुनावों में महागठबंधन में बीएसपी शामिल नहीं होती है तो राजस्थान में कांग्रेस को शायद इसका नुकसान उठाना पड़ जाए. दूसरी तरफ देखें तो आने वाले चुनाव में कांग्रेस के लिए दो स्थानीय दल राजस्थान लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलटीपी) और भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) बड़ा सिरदर्द साबित हो सकते हैं.
Source : News Nation Bureau