logo-image

अजमेर शरीफ मामला : परिसर में नहीं हैं स्वास्तिक के निशान

वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद के बाद अब राजस्थान में दरगाह शरीफ को हिंदू मंदिर होने का दावा किया गया है. इसको लेकर अजमेर में सुरक्षा बढ़ा दी गई है. एक संगठन ने स्वास्तिक चिह्न वाले फोटो शेयर किए गए थे.

Updated on: 27 May 2022, 07:01 PM

नई दिल्ली:

वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद के बाद अब राजस्थान में दरगाह शरीफ को हिंदू मंदिर होने का दावा किया गया है. इसको लेकर अजमेर में सुरक्षा बढ़ा दी गई है. एक संगठन ने स्वास्तिक चिह्न वाले फोटो शेयर किए गए थे. बताया गया कि यह जाली दरगाह शरीफ में है. इसी चिह्न के आधार पर कहा गया कि वह हिंदू मंदिर है, लेकिन जांच में सूफी संत हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह में किसी भी हिस्से में ऐसी जाली नहीं मिली, जिस पर स्वास्तिक का निशान बना हुआ हो. न ही वैसे पत्थर मिले, जैसे महाराणा प्रताप सेना संगठन द्वारा जारी की गई तस्वीर में नजर आ रहे हैं. इन इमारतों में भी कहीं भी किसी पत्थर में ऐसे प्रतीक या चिह्न नहीं मिले हैं.
 
वहीं, दरगाह के कुछ मीटर की दूरी पर स्थित अढाई दिन के झोपड़े में वायरल फोटो के जैसे प्रमाण मिले हैं. अजमेर में स्थित अढाई दिन के झोपड़े में स्वास्तिक बनी जालियां मौजूद हैं, जिससे साफ जाहिर होता है कि जिस तस्वीरों के आधार पर दरगाह में मंदिर होने का दावा किया जा रहा है वो गलत है और वायरल तस्वीरों में मौजूद स्वास्तिक की जालियां दरगाह में नहीं बल्कि अढाई दिन के झोपड़े में हैं.

यह है अढाई दिन के झोपड़े का इतिहास 

अढाई दिन का झोपड़ा 1192 ईस्वीं में अफगान सेनापति मोहम्मद गौरी के आदेश पर कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनवाया था. असल में इस जगह पर एक बहुत बड़ा संस्कृत विद्यालय (स्कूल) और मंदिर थे, जिन्हें तोड़कर मस्जिद में बदल दिया गया था. अढाई दिन के झोपड़े के मुख्य द्वार के बाईं ओर संगमरमर का बना एक शिलालेख भी है, जिस पर संस्कृत में उस विद्यालय का जिक्र किया गया है. इस मस्जिद में कुल 70 स्तंभ हैं. असल में ये स्तंभ उन मंदिरों के हैं, जिन्हें ध्वस्त कर दिया गया था, लेकिन स्तंभों को वैसे ही रहने दिया गया था. इन स्तंभों की ऊंचाई करीब 25 फीट है और हर स्तंभ पर खूबसूरत नक्काशी की गई है.

90 के दशक में यहां कई प्राचीन मूर्तियां ऐसे ही बिखरी पड़ी थीं, जिन्हें बाद में संरक्षित किया गया. अढाई दिन के झोपड़े का आधे से ज्यादा हिस्सा मंदिर का होने के कारण यह अंदर से मस्जिद न लगकर किसी मंदिर की तरह ही दिखाई देता है. हालांकि, जो नई दीवारें बनवाई गईं, उन पर कुरान की आयतें जरूर लिखी गई हैं, जिससे ये पता चलता है कि यह एक मस्जिद है. माना जाता है कि इस मस्जिद को बनने में ढाई दिन यानी मात्र 60 घंटे का समय लगा था, इसलिए इसे 'अढाई दिन का झोपड़ा' कहा जाने लगा.