Rajasthan News: राजस्थान के ब्यावर जिले के मकरेड़ा गांव में गुरुवार को एक व्यक्ति की मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार की विधि को लेकर विवाद खड़ा हो गया. गांव की पारंपरिक दफनाने(मिट्टी दाग) की परंपरा के विपरीत मृतक के पुत्र ने हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार दाह संस्कार की इच्छा जताई, जिससे गांव में परंपरा और व्यक्तिगत आस्था के बीच टकराव की स्थिति बन गई.
इसलिए खड़ा हुआ विवाद
बताया जा रहा है कि मकरेड़ा गांव के चीतों का बाड़िया क्षेत्र में लंबे समय से शवों को दफनाने की परंपरा रही है. इस परंपरा में शव को नमक, फूल और अन्य पवित्र वस्तुओं के साथ दफनाया जाता है. ग्रामीणों की मान्यता है कि इससे आत्मा को अगले जन्म की यात्रा में सहायता मिलती है. परंतु मृतक के पुत्र ने गरुड़ पुराण और हिंदू धर्म के सोलह संस्कारों का हवाला देते हुए अग्नि संस्कार की मांग की. उनका कहना था कि दाह संस्कार से आत्मा शरीर के मोह से मुक्त होती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है.
स्थिति बिगड़ने से पहले प्रशासन का हस्तक्षेप
स्थिति बिगड़ने से पहले ही प्रशासन ने त्वरित हस्तक्षेप किया. मौके पर स्थानीय विधायक शंकर सिंह रावत, तहसीलदार हनुत सिंह रावत, डीएसपी राजेश कसाना और थाना प्रभारी गजराज अपनी टीम के साथ पहुंचे और मामले को शांतिपूर्वक सुलझाया. प्रशासन ने तुरंत श्मशान भूमि चिह्नित कर दाह संस्कार की व्यवस्था करवाई, जिसमें अधिकारी भी उपस्थित रहे.
समाज में बना तकरार का विषय
इस घटनाक्रम ने समाज में एक बार फिर यह प्रश्न खड़ा कर दिया है कि क्या परंपराएं व्यक्ति की धार्मिक आस्था और इच्छा से ऊपर हैं? सामाजिक कार्यकर्ता रमेश मीणा ने कहा कि परंपराओं का सम्मान आवश्यक है, लेकिन व्यक्तिगत इच्छा को भी नकारा नहीं जा सकता.
ग्रामीणों ने की प्रशासन से ये मांग
ग्रामीणों ने प्रशासन से मांग की है कि गांव में श्मशान के साथ दफन स्थलों की भी पहचान की जाए, ताकि भविष्य में ऐसी स्थिति न उत्पन्न हो. विधायक रावत ने आश्वासन दिया कि क्षेत्र में अंतिम संस्कार की सुविधाएं बेहतर की जाएंगी. यह घटना एक उदाहरण है कि कैसे सामाजिक परंपराओं और आधुनिक धार्मिक विचारों के बीच संतुलन बनाना जरूरी है और प्रशासन की संवेदनशील भूमिका इसमें अहम होती है.
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