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Punjab: बैठकों में उलझे सिद्धू, लड़ रहे प्रासंगिकता बनाए रखने की लड़ाई

कांग्रेस के एक नेता का दावा है कि नवजोत सिंह सिद्धू अब सबकुछ गवां चुके हैं. वो बस, खुद के जिंदा होने का सबूत जुटाने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने नवजोत सिंह सिद्धू की बैठकों में...

Updated on: 28 Mar 2022, 12:03 PM

highlights

  • पंजाब की राजनीति में फिर से सक्रिय हुए नवजोत सिंह सिद्धू
  • खोई प्रतिष्ठा पाने की जद्दोजहद या प्रासंगिकता बचाए रखने की चुनौती?
  • पंजाब विधानसभा चुनाव में मिली थी पार्टी को जबरदस्त हार

नई दिल्ली:

नवजोत सिंह सिद्धू. एक ऐसा नाम, जो हमेशा चर्चा में रहता है. पंजाब में विधानसभा चुनाव से एक साल पहले जो ये नाम उभरा, तो फिर कभी नेपथ्य में गया ही नहीं. अमरिंदर सिंह की सत्ता चली गई. चन्नी को राज मिला और फिर जनता से ने वो गद्दी छीन कर आम आदमी पार्टी के भगवंत मान को दे दी. इस सारे गेम में जो एक नाम था, वो नाम नवजोत सिंह सिद्धू का है. वो पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष बन गए थे. हालांकि उनकी सीएम बनने की ख्वाइश पूरी नहीं हो पाई, लेकिन अब वो फिर से बैठकों का दौर शुरू कर चुके हैं, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद. उनकी इन बैठकों के क्या मायने हैं?

पंजाब में खुद को प्रासंगिक बनाने रखने की मजबूरी?

नवजोत सिंह सिद्धू बीजेपी में रहते हुए सांसद थे. वो व्यस्त नेता थे. सभी राज्यों में पूछ थी. वो टीवी पर भी आते थे. फिर उन्होंने कुछ ऐसे हालात बनाए कि कांग्रेस में आ गए. हालांकि कांग्रेस में आने से पहले आम आदमी पार्टी में भी उनके जाने की संभावनाएं थी. लेकिन उन संभावनाओं को समाप्त करते हुए उन्होंने कांग्रेस का दामन थामा. विधायक बने और फिर मंत्री. कुछ ही सालों में सब कुछ छोड़ दिया और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बन गए. मुख्यमंत्री का तख्तापलट किया. नया मुख्यमंत्री बन वाया और फिर कांग्रेस उनकी अगुवाई में चुनाव हार गई. वो खुद अपनी विधानसभा सीट गवां बैठे. और बाद में उन्होंने कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया. बताया गया कि वो मौन रहेंगे. कुछ महीनों तक कुछ भी नहीं बोलेंगे. लेकिन गुरु खामोश रहे, ऐसा हो सकता था क्या? 

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खामोशी अख्तियार करने के बाद नवजोत सिंह सिद्धू ने ये देखा कि दुनिया ताकत के पीछे भागती है. पद महत्वपूर्ण चीज है. वर्ना उनसे क्या, किसी को भी बिना पद वाले किसी व्यक्ति से कोई मतलब नहीं होता. ये बात नवजोत सिंह सिद्धू की समझ में आ गई और वो निकल पड़े बैठकों का दौर शुरू करने के बाद. चुनावी हार के चार दिनों बाद सिद्धू ने सात कांग्रेस नेताओं को घर बुलाया. इसी तरह की एक बैठक 26 मार्च को सुल्तानपुर लोधी में हुई, जहां 24 नेता मौजूद रहे. अब आने वाले हफ्तों में मंगलवार को लुधियाना में होने वाली चर्चा समेत दो और बैठकें होनी हैं. अनुमान है कि इनमें करीब 36 नेता शामिल हो सकते हैं. सवाल ये है कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफे के बाद अब वो अचानक इतने सक्रिय क्यों हो गए? क्या उन्हें कांग्रेस हाई कमान से इस बारे में इशारे मिले हैं, या वो खुद को प्रासंगिक बनाए रखने की लड़ाई लड़ रहे हैं?

हारे हुए लोगों की शोक सभा!

कांग्रेस के एक नेता का दावा है कि नवजोत सिंह सिद्धू अब सबकुछ गवां चुके हैं. वो बस, खुद के जिंदा होने का सबूत जुटाने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने नवजोत सिंह सिद्धू की बैठकों में आ रहे नेताओं और नवजोत सिंह सिद्धू की बैठकों को 'हारे हुए लोगों की शोक सभा' करार दिया है. उस कांग्रेसी नेता ने कहा कि कि 26 मार्च को हुई बैठक में शामिल होने वालों में 8 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई थी और 5 नेताओं को टिकट नहीं मिले थे. बता दें कि अब तक सभी कांग्रेसी विधायकों का नेता होने का दावा कर रहे सिद्धू की बैठकों में सिर्फ 2 विधायक ही शामिल हुए हैं, जबकि पार्टी के पास 18 विधायक हैं. ऐसे में क्या अपने खेमे को सक्रिय रख नवजोत सिंह सिद्धू कांग्रेस हाई कमान से मोलभाव कर रहे हैं? क्या वो इस स्थिति में हैं भी? कि वो खुद को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने की मांग तक कर सकें?