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पंजाब की 50 सीटों पर जीत की चाबी दलित वोटरों के हाथ, जानिए पूरा समीकरण

भारत की  दलित आबादी का एक बड़ा हिस्सा पंजाब में रहता है. साल 2018 की सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की एक रिपोर्ट कहती है कि पंजाब में दलितों की 39 उपजातियां हैं.

Updated on: 29 Jan 2022, 07:39 AM

highlights

  • भारत की  दलित आबादी का एक बड़ा हिस्सा पंजाब में रहता है
  • सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के अनुसार, पंजाब में दलितों की 39 उपजातियां
  • पंजाब विधानसभा के कुल 117 सीटों में से 34 सीटें एससी के लिए आरक्षित

चंडीगढ़:

Dalit voters in Punjab : धान का कटोरा कहे जाने वाले पंजाब की धरती में जितनी तरह की फसलें उगती हैं, वहां की राजनीति में मुद्दे भी उतने ही तरह के हैं. राज्य में चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद राजनीतिक तिकड़म लगाने का दौर शुरू हो चुका है. सभी पार्टी अपने वोटरों को लुभाने में जुट गई है, लेकिन इन सबके बीच दलित वोटरों को अपने पाले में लाने के लिए सभी पार्टी ने अपनी तिकड़म बैठानी शुरू कर दी है. तमाम पार्टियां ये अच्छे से जानती हैं कि यदि पंजाब की सत्ता पर अगर कब्जा जमाना है तो दलितों को अपने साथ लाना बेहद जरूरी है. आइए आपको बताते हैं कि पंजाब में आखिर दलितों की अहमियत इतनी ज्यादा कैसे है.

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भारत की  दलित आबादी का एक बड़ा हिस्सा पंजाब में रहता है. साल 2018 की सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की एक रिपोर्ट कहती है कि पंजाब में दलितों की 39 उपजातियां हैं. इन 39 उपजातियों में पांच उप-जातियां दलित आबादी का 80 प्रतिशत हैं. दलितों में मजहबी सिखों की सबसे बड़ी 30 प्रतिशत हिस्सेदारी है. वही. रविदासिया (24 प्रतिशत) और अधधर्मी (11 प्रतिशत) और वाल्मिकी (10 प्रतिशत) हैं. भारत के किसी भी राज्य की तुलना में पंजाब में सबसे ज्यादा दलित आबादी रहती है. पंजाब में दलित हिंदू और सिखों में बंटे हुए हैं. पंजाब की कुल आबादी का 32 फीसद दलित हैं. कुल दलित आबादी का 59.9 फीसद सिख और 39.6 फीसद हिंदू हैं. जट सिखों की संख्या क़रीब 20% है. कुल सिख समुदाय का 60 प्रतिशत जट सिख ही है, इनका राजनीति में और आर्थिक दबदबा है. जाट किसानों के पास राज्य में जमीन का बड़ा हिस्सा है वहीं दलितों के पास राज्य में महज 6.02 कृषि भूमि है. 

पंजाब में 523,000 परिवार गरीबी रेखा के नीचे जिंदगी गुजार रहे

पंजाब में 523,000 परिवार गरीबी रेखा के नीचे जिंदगी गुजार रहे हैं. इनमें से 321,000 यानी करीब 61.4 फीसद दलित हैं. पंजाब विधानसभा के कुल 117 सीटों में से 34 सीटें एससी के लिए आरक्षित हैं. वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 34 एससी सीट में से 21 पर जीती थी जबकि आम आदमी पार्टी ने 9, अकाली 3 और बीजेपी ने 1 सीट जीती थी. कुल 50 सीटें ऐसी हैं जिनपर दलित वोटर हार जीत का फ़ैसला करते हैं.

रविदासिया समुदाय पंजाब का सबसे बड़ा दलित समुदाय

पंजाब में डेरा सचखंड बल्लन को रविदासिया अनुयायियों के सबसे बड़े डेरों में से एक माना जाता है. रविदासिया समुदाय पंजाब का सबसे बड़ा दलित समुदाय है. कुल दलित आबादी का 24 प्रतिशत जालंधर के बल्लन गांव में स्थित, डेरा सचखंड बलान का दोआबा क्षेत्र में बड़ा असर है. पंजाब विधानसभा की 117 सीटों में से 23 सीटों पर इसका असर हैरविदासिया समुदाय के वोट हर निर्वाचन क्षेत्र में 20 से 50 प्रतिशत के हैं. दलित पूरे राज्य में समान रूप से फैले हुए नहीं हैं. दोआबा में 37 फीसदी, मालवा में 31 फीसदी और माझा में 29 फीसदी दलित आबादी है.

सबसे ज्यादा दलित आबादी मालवा में

सबसे ज़्यादा दलित आबादी मालवा में है. सीएम चरणजीत चन्नी मालवा के रहने वाले हैं और रविदासिया उपजाति से ताल्लुक रखते हैं. यही वजह रही कि कांग्रेस ने चन्नी को मुख्यमंत्री बना कर एक बड़ा दांव खेला है वही आम आदमी पार्टी भी इस दलित वोट की महत्व को अच्छे से समझती है, इसलिए मुख्य विपक्ष दल के प्रमुख के पद पर हरपाल चीमा को बैठाया गया था.

जालंधर, लुधियाना और अमृतसर में रहता है दलित आबादी का 28 प्रतिशत हिस्सा

पंजाब की सबसे बड़ी दलित आबादी का 28 प्रतिशत हिस्सा जालंधर, लुधियाना और अमृतसर की बेल्ट में ही रहता है. जालंधर जिले के उग्गी पिंड गांव में लगभग 5000 के करीब आबादी है जिसमे से 60% आबादी दलितों की है. इस गांव मे रहने वाली 60 वर्षीय सुरजीत कौर भी इसी समाज से आती है 30 साल पहले विधवा हो गई थी, लेकिन सुरजीत कौर का कहना है कि सरकार की दूसरी बड़ी योजनाओं से इतर उन्हें राशन कार्ड से मिलने वाली सुविधाएं भी नहीं मिल पा रही है. वादे घर-ज़मीन देने के किए गए, लेकिन मिला कुछ भी नहीं. गांव के लोगों का कहना है की यहां खुद के पैसों से एक वाल्मीकि मंदिर बनाया गया, लेकिन उसके बाहर की सड़क का हाल बहुत ही बुरा है. बारिशों में पानी और कीचड़ के चलते घरो से निकलना मुश्किल हो जाता है. नौकरी किसी को मिली नहीं और योजनाएं इस गांव तक पहुंची नहीं. नेताओं के वादे तो हर चुनाव में आते हैं, लेकिन जो विकास के लिए ऐसा कुछ किया नहीं जाता.