लोकसभा चुनाव 2019 पास ही में हैं और भारतीय चुनाव आयोग के मार्च के पहले हफ्ते में चुनावी कार्यक्रम घोषित करने की संभावना है. हमने भी चुनावों के लिए कमर कस ली है और हम आपके लिए ला रहे हैं चुनावी सीरीज लेकर आ रहे हैं - पोल्स थ्रोबैक: 2014 ओडिशा लोकसभा चुनावों में क्या हुआ था? हम अपनी पहली स्टोरी में, उड़ीसा राज्य के राजनीतिक परिदृश्य पर नजर डालेंगे.
नवीन पटनायक के नेत्रृत्व वाली बीजू जनता दल (BJD) विपक्ष से किसी गंभीर चुनौती के बिना वर्ष 2000 से शासन करती आई है. कांग्रेस की स्थिति भी गड़बड़ रही है जबकि बीजेपी नवीन बाबू को चुनौती देने के लिए अभी भी कोई खास विश्वसनीय चेहरा तलाश रही है. पार्टी केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को आगामी विधानसभा चुनावों में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश करना चाहती है. जबकि बीजेपी धीरे - धीरे कांग्रेस को सत्तारूढ़ बीजू जनता दल के मुख्य प्रतियोगी के रूप में बदल दिया है. 2014 लोकसभा चुनावों में बीजू जनता दल का डंका पूरा राज्य में बजा जबकि कांग्रेस और बीजेपी दूसरे स्थान के लिए लड़े. आइये अब हम इस पर विस्तार से चर्चा करते हैं.
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2014 ओडिशा लोकसभा चुनावों में क्या हुआ था?
2014 लोकसभा चुनावों में नवीन पटनायक एक दमदार क्षेत्रीय शासक के रूप में मोदी लहर के खिलाफ खड़े नजर आए. ओडिशा में चुनाव 10 अप्रैल और 17 अप्रैल के दो चरणों में पूरे किये गये. राज्य ने लोकसभा में 21 सदस्य भेजे और बीजेडी ने 20 सीटें हासिल की. जबकि बीजेपी सुंदरगढ़ की केवल एक ही सीट जीत सकी. जुएल ओरम ने बीजेडी के दिलीप कुमार टिर्की को हराया और कांग्रेस के हेमानंद बिस्वाल को तीसरे स्थान पर गिरा दिया.
बीजेेडी को 44.77 प्रतिशत के हिसाब से 94,89,946 वोट मिले जबकि बीजेपी को 21.88 प्रतिशत के हिसाब से 46,38,565 वोट जुटा सकी. भगवा पार्टी बालासोर, बारगढ़, भुवनेश्वर, बोलनगीर, ढेंकनाल, कालाहांडी, मयूरभंज, क्योंझर और संबलपुर पर दूसरे स्थान पर रही. चुनाव में कांग्रेस को बीजेपी के मुकाबले ज्यादा वोट मिले लेकिन काग्रेस को कुछ हासिल न कर सकी. पार्टी को 26.38 प्रतिशत के हिसाब से 55,91,380 वोट मिले.
2014 में कुछ प्रमुख विजेताओं में जुअल ओराम (BJP-सुंदरगढ़), अर्जुन चरण सेठी (BJD-भद्रक), भर्तृहरि महताब (BJD-कटक), बैजयंत पांडा (BJD-केंद्रपाड़ा), पिनाकी मिश्रा (BJD-पुरी), प्रसन्नमणि थे। कुमार पातसनी (BJD- भुवनेश्वर), कलिकेश नारायण सिंह देव (BJD-बोलनगीर), तथागत सत्पथी (BJD-ढेन्कानाल) और झीना हिकाका (BJD-कोरापुत) रहें.
जबकि हेमानंद बिस्वाल (कांग्रेस), दिलीप कुमार तिर्की (बीजद), सुरेश पुजारी (भाजपा), अनंत नायक (BJP), श्रीकांत कुमार जेना (कांग्रेस), संगीता कुमारी सिंह देव (भाजपा), भक्त चरण दास (कांग्रेस), खबरेला स्वैन ( AOP), पृथ्वीराज हरिचंदन (BJP), बिजय मोहंती (कांग्रेस) और गिरिधर गमांग (कांग्रेस) चुनाव हार गए.
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2014 में ओडिशा विधानसभा चुनाव का परिणाम क्या था?
ओडिशा उन राज्यों में से था जिनमें 2014 में ही लोकसभा चुनावों के साथ - साथ विधानसभा चुनाव भी हुए. BJD ने एक बार फिर से कांग्रेस और BJP को मात दी और 43.35 वोट प्रतिशत के साथ 147 में से 117 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की. BJD को राज्य में 93,35,159 वोट मिले. BJP 17.99 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 38,74,748 वोट मिले. पार्टी विधानसभा में केवल 10 सीट जीत सकी. दूसरी तरफ, कांग्रेस को 25.71 प्रतिशत से 16 सीटों पर जीत मिली. पार्टी को 55,35,670 मतदाताओं का समर्थन मिला.विधानसभा और लोकसभा दोनों ही चुनावों में लगभग एक जैसा ही रुझान देखने को मिला, जबकि BJP को विधानसभा चुनावों में लोकसभा की अपेक्षा 4 प्रतिशत कम वोट मिले.
2019 में वर्तमान परिदृश्य क्या है?
भाजपा ओडिशा में नवीन पटनायक के विकल्प के रूप में उभरने की पूरी कोशिश कर रही है और पहले ही कांग्रेस को मुख्य विपक्षी दल के रूप में पहचान दे चुकी है. 2017 के पंचायती चुनावों में अप्रत्याशित जीत के बाद पार्टी का आत्मविश्वास से भरी हुई है. 2012 में BJP के पास जिला परिषद की केवल 36 सीटें थीं जो 2017 में बढ़कर 306 हो गईं. रुलिंग BJD को 651 में से 460 सीटें मिली जो कि उसके लिए तगड़ा झटका था. कांग्रेस की सीटों में भी कमी दर्ज की गई जिसके पास 2012 में 126 सीटें थी जो गिरकर 2017 में केवल 66 सीटें ही रह गईं. पंचायती चुनावों में BJP को पिछली बार की अपेक्षा 32 प्रतिशत ज्यादा वोट मिले, कंधमाल लोकसभा और बीजापुर विधानसभा उपचुनावों में BJP, BJD के बाद दूसरे स्थान पर रही. हालांकि पूर्व केंद्रीय मंत्री दिलीप राय और बिजय महापात्रा के पार्टी छोड़ने के कारण BJP को थोड़ा नुकसान जरूर हो सकता है.
यह ऐसी पार्टी के लिए चिंताजनक है जिसने 147 विधानसभा सीटों में से 120 पर जीत हासिल करने का लक्ष्य रखा हो.
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BJD को भी मतभेदों का सामना करना पड़ रहा है जिसके चलते पार्टी के एक वरिष्ठ नेता बैजयंत जय पांडा को बाहर का रास्ता दिखाया गया है.
नवीन पटनायक 2009 से BJP और कांग्रेस से समानता बनाए रखने के बारे में विचार कर रहे हैं, जब उनकी पार्टी ने BJP के नेतृत्व वाले NDA को छोड़ दिया लेकिन राज्यसभा के उपसभापति चुनाव में NDA के उम्मीदवार हरिवंश नारायण सिंह का समर्थन, राष्ट्रपति पद के लिए नाथ कोविंद और लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन न करने जैसे कामों से राजनीति में लहर पैदा कर दी है. पटनायक ने 2019 लोकसभा चुनावों के चलते NDA के समर्थन पर हो रही अफवाहों को बकवास बताया है.
कांग्रेस ने पटनायक पर प्रहार करते हुए उनके रुख पर सवाल उठाया है और आरोप लगाया है कि दोनों पार्टी छिपे तौर पर एक दूसरे के साथ हाथ मिला चुके हैं. पार्टी प्रमुख राहुल गांधी ने पटनायक पर करारा हमला किया और आरोप लगाया कि उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों 'रिमोट कंट्रोल' हो रहे हैं.
Source : News Nation Bureau