मेघालय: उष्णकटिबंधीय वर्षा वन में सुरक्षा का जिम्मा संभाल रहे सीमा के प्रहरी

बेनियान की पेड़ की जड़ों को 15 सालों में इस तरीके से बांस और सुपारी की टहनियों से बांधा जाता है , वह प्राकृतिक पुल की शक्ल ले लेता है। एक बार यह पुल बनने के बाद 300 सालों तक चल सकता है, जबकि 500 व्यक्तियों का बोझ एक साथ उठाने में यह जड़े सक्षम है

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Mohit Sharma
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BSF( Photo Credit : FILE PIC)

बेनियान की पेड़ की जड़ों को 15 सालों में इस तरीके से बांस और सुपारी की टहनियों से बांधा जाता है , वह प्राकृतिक पुल की शक्ल ले लेता है। एक बार यह पुल बनने के बाद 300 सालों तक चल सकता है, जबकि 500 व्यक्तियों का बोझ एक साथ उठाने में यह जड़े सक्षम है। अब जर्मनी के वैज्ञानिक भी मेघालय के इन पेड़ों की बीज से इसी तरह के प्राकृतिक पुल बनाना चाहते हैं। जहां विश्व के तमाम शहरों में पुल कार्बन उत्सर्जन का काम करते हैं ,वही यह प्राकृतिक पुल मेघालय के लोगों के लिए प्रकृति मां का वरदान है।

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यह भारत ही नहीं पूरी एशिया का सबसे स्वच्छ गांव है। प्राकृतिक रूप से चेरापूंजी के करीब इस गांव में वर्षा बहुत होती है, वन संपदा है, जिसका प्रयोग यह गांव वाले प्राकृतिक तरीके से करते हैं। सुपारी के पेड़ और आसपास की जड़ी बूटियों से खाना बनाया जाता है, पेड़ की छाल का इस्तेमाल बर्तनों के रूप में किया जाता है, प्रकृति और इंसान के तालमेल का प्रतीक है यह गांव। मेघालय की औसत ऊंचाई समुद्र तट से 4000 फुट के करीब है, लेकिन यहां उष्णकटिबंधीय वर्षा वन होने के कारण बेहद उमस और नमी रहती है। यह बेहद घना वर्षावन है ,जिसमें कई तरह के जीव जंतु सांप और अन्य खतरनाक प्राणी पाए जाते हैं। ऐसे क्षेत्र में भी बीएसएफ के सीमा प्रहरी लगातार पेट्रोलिंग करके भारत की सीमाओं को सुरक्षित बनाए रखते हैं।

अंतरराष्ट्रीय सीमा बॉर्डर फेंसिंग से डेढ़ सौ मीटर अंदर होती है। मेघालय जो मुख्य रूप से पहाड़ पर बसा हुआ प्रदेश है ,जबकि बांग्लादेश जो ब्रह्मपुत्र के मैदान में पड़ता है। इन दोनों के बीच में दलदल और तराई का क्षेत्र है। ऐसी दलदल की स्थिति में गम बूट पहन कर बीएसएफ की सीमा प्रहरी लगातार दुर्गम परिस्थिति में पेट्रोलिंग करते हैं। यह छोटी-छोटी बरसाती नाले प्राकृतिक रूप से ऐसा रास्ता बन जाते हैं, जिसका इस्तेमाल तस्करी और घुसपैठ के लिए किया जा सकता है। न्यूज़ नेशन की टीम बीएसएफ के विशिष्ट कमांडो के साथ ऐसे स्थान पर पहुंची ,जहां कमांडो घात लगाए बैठे हैं, कि अगर कोई तस्कर इस रास्ते का प्रयोग करेगा तो उसे बलपूर्वक खदेड़ दिया जाएगा। यह कमांडो पेड़ों की आड़ लेकर छुपकर शत्रु के इंतजार में है।

जिस तरीके से गुजरात में हरामी नाला प्रकृति का रौद्र रूप दिखाता है, वैसा ही मेघालय का पगला नाला भी है। दरअसल मेघालय का अर्थ ही है बादलों का प्रदेश। यह कभी भी बादल फट जाते हैं, बहुत तेज वर्षा होती है, चेरापूंजी भी यहां के नजदीक है। तब यह नाला किसी पहाड़ी नदी की तरह नजर आता है, लेकिन इस खतरनाक स्थान पर भी बीएसएफ के सीमा प्रहरी मुस्तैदी से तैनात है।  बीएसएफ के कमांडो का कहना है कि प्रकृति चाहे हमारी शत्रु बन जाए या मित्र, मेघालय में ऊंचाई पर रहने का फायदा हो या इस तरह के नालों में पेट्रोलिंग करना हमारा जोश हमेशा ही रहता है।

Source : Rahul Dabas

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