असम से मुगलों को खदेडा, कौन हैं बहादुर लचित बोरफुकन? आज पीएम ने किया प्रतिमा का अनावरण

लचित बोरफुकन ऐसे शख्स का नाम है,​ जिसके बहादुरी के किस्से आज भी सुने जाते हैं. उन्हें नार्थ ईस्ट का शिवाजी का कहा जाता है. हालांकि यह नाम अभी नॉर्थ इंडिया में इतना मशहूर नहीं है

लचित बोरफुकन ऐसे शख्स का नाम है,​ जिसके बहादुरी के किस्से आज भी सुने जाते हैं. उन्हें नार्थ ईस्ट का शिवाजी का कहा जाता है. हालांकि यह नाम अभी नॉर्थ इंडिया में इतना मशहूर नहीं है

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Mohit Saxena
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Lachit Borphukan

Lachit Borphukan( Photo Credit : social media)

लचित बोरफुकन ऐसे शख्स का नाम है,​ जिसके बहादुरी के किस्से आज भी सुने जाते हैं. उन्हें नार्थ ईस्ट का शिवाजी का कहा जाता है. हालांकि यह नाम नॉर्थ इंडिया में इतना मशहूर नहीं है. लचित बोरफुकन ने मुगलों से युद्ध के बाद उनके कब्जे से गुवाहाटी को छुडाया था. गुवाहाटी को फिर से हासिल करने के लिए मुगलों ने अहोम साम्राज्य के खिलाफ सराईघाट की लडाई लड़ी थी. अहोम के युद्ध में मुगल सेना ने 1000 से ज्यादा तोपों का उपयोग किया था. इसके बाद भी वह लचित बोरफुकन को हरा नहीं सके थे.

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लाचित बोरफूकन असमिया आहोम साम्राज्य के सेनापति थे. सन 1671 में लड़ी गई सराईघाट की लड़ाई में उन्होंने असमिया सेना की अगुवाई की थी. सेना में लंबे संघर्ष के बाद उन्होंने मुगलों को धूल चटा दी थी. मगर  इस जीत के एक साल बाद उनकी बीमारी से मृत्यु हो गई. लचित बोरफुकन के नाम पर नेशनल डिफेंस अकेडमी (एनडीए) में बेस्ट कैडेट गोल्ड मेडल भी दिया जाता है. इस सम्मान को लचित मेडल भी कहा जाता है.

लचित सेंग कालुक मो-साई का जन्म सेंग-लॉन्ग मोंग चराइडो में ताई अहोम के परिवार में हुआ. उनका धर्म फुरेलुंग अहोम था. उनका नाम लचित था. उन्होंने बोरफुकन की पदवी हासिल की थी. दरअसल 1665 में लचित को अहोम सेना का सेनाध्यक्ष बनाया गया. पद को बोरफुकन कहते हैं. ये बाद में लचित बोरफुकन के नाम से मशहूर हुए.

यह पद किसी कूटनीतिज्ञ या राजनेता के लिए सबसे अहम है

लचित बोरफुकन को अहोम स्वर्गदेव के ध्वज वाहक (सोलधर बरुआ) का पद दिया गया था. यह पद किसी कूटनीतिज्ञ या राजनेता के लिए सबसे अहम माना जाता है. राजा चक्रध्वज ने मुगलों के विरुद्ध खड़ी सेना का लचित को नेतृत्व दिया. राजा ने लचित को सोने के मूठ वाली तलवार भी सौंपी थी. 

लचित की कोई तस्वीर इतिहासकारों के पास उपलब्ध नहीं है. मगर वर्णन के अनुसार, उनकी तस्वीरें सामने आई हैं, उसके आधार पर उनकी प्रतिमा बनाई गई ​है. ऐसा कहा जाता है कि लचित बोरफुकन का मुख काफी चौड़ा था. उनके चेहरे पर एक खास प्रकार का तेज था.

राष्ट्रीय डिफेंस अकेडमी ने लचित की प्रतिमा को स्थापित किया

दो-चार किताबों को अगर छोड़ दें तो भारतीय इतिहास में इस महान योद्धा लचित बोरफुकन का खास जिक्र नहीं होता ​मिलता है. राष्ट्रीय डिफेंस अकेडमी ने लचित की प्रतिमा को स्थापित किया है. उनके नाम पर मेडल की शुरुआत की है. उनकी याद में हर वर्ष नवंबर माह में असम लचित दिवस मनाता है. मोदी सरकार ने 125 फीट विशाल प्रतिमा का अनावरण करके नई पीढ़ी को उनके इतिहास से रूबरू कराने का प्रयास किया है.

Source : News Nation Bureau

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