Manipur Violence: दंगाइयों को देखते ही गोली मारने का आदेश, हिंसा पर काबू पाने के लिए सरकार का बड़ा फैसला
Manipur: दंगाइयों को देखते ही गोली मारने का आदेश, हिंसा पर काबू पाने के लिए सरकार का बड़ा फैसला
highlights
- मणिपुर में मैतेई और नागा एवं कुकी समुदाय के बीच विवाद
- जमीन, संस्कृति और पहचान को लेकर आपस में भिड़े लोग
- दंगों पर काबू पाने के लिए सेना के जवान भी तैनात
नई दिल्ली:
Manipur Violence: मणिपुर में हिंसा पर सरकार ने सख्ती दिखाते हुए दंगाइयों को देखते ही गोली मारने के आदेश दिए हैं. राज्य में 3 मई को आदिवासी आंदोलन के दौरान अचानक से हिंसा भड़क गई. हिंसा की आग राज्य के 8 जिलों में पहुंच गई. हालात बेकाबू होता देख पुलिस प्रशासन ने आठों जिलों में कर्फ्यू लगा दिया है. आठ जिलों में इम्फाल वेस्ट, काकचिंग, थौबाल, चुराचांदपुर, कांगपोकपी, जिरिबाम, बिष्णुपुर और तेंगनौपाल में कर्फ्यू लागू है. इसके अलावा, पूरे राज्य में इंटरनेट सेवा को अगले आदेश तक के लिए बंद कर दिया गया है. हालांकि, ब्रॉडबैंड सेवा चालू रहेंगी.
इससे पहले हिंसाग्रस्त क्षेत्रों में धारा 144 लागू कर दी गई थी. राज्य में अगले पांच दिनों के लिए इंटरनेट भी बंद कर दिया गया है. मणिपुर में असम राइफल्स की 34 कंपनियां तैनात कर दी गई है. वहीं, सेना की 9 टुकिड़ियां भी तैनात हैं. इनके अलावा गृह मंत्रालय ने रैपिड एक्शन फोर्स की भी पांच कंपनियों को मणिपुर भेजने का आदेश जारी किया है. इसके बावजूद मणिपुर में हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही.
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मैतेई और नागा एवं कुकी समुदाय के बीच विवाद
दरअसल, बवाल की शुरुआत मैतेई समुदाय और नागा एवं कुकी समुदाय के बीच शुरू हुई है. राज्य की कुल आबादी में 53 फीसदी इस समुदाय से आते हैं. मैतेई समुदाय अनुसूचित जनजाति समुदाय में नहीं आता. इस समुदाय को पहाड़ी इलाके में रहने की आजादी नहीं है. इन्हें सिर्फ घाटी में बसने की स्वतंत्रता है. वहीं, राज्य में 40 प्रतिशत आबादी नागा और कुकी समुदाय की है. यह पहाड़ी इलाके में बस सकते हैं. मणिपुर में आदिवासियों के लिए लागू कानून के तहत तहत आदिवासियों के लिए कुछ खास प्रावधान किए गए हैं. इसके तहत नागा और कुकी समुदाय चाहें तो घाटी वाले इलाकों में रह सकते हैं. इसी को लेकर दोनों समुदाय के बीच विवाद शुरू हुआ और देखते ही देखते हिंसा में बदल गई.
अभी क्यों हुआ बवाल?
मैतेई समुदाय लंबे समय से अनुसूचित जाति का दर्जा दिए जाने की मांग कर रहा है. हाल ही में मणिपुर हाई कोर्ट के एक्टिंग चीफ जस्टिस एमवी मुरलीधरन ने राज्य सरकार को मैतेई को भी अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग पर विचार करने का आदेश दिया था. मैतेई समुदाय की हित के लिए काम करने वाले संगठन ने कहा था कि ये नौकरी और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण का मुद्दा नहीं है, बल्कि ये जल, जंगल, जमीन और संस्कृति और अपनी अस्तित्व से जुड़े होने का मसला है. संगठन का ये भी कहना है कि मैतेई समुदाय म्यांमार और पड़ोसी राज्यों से अवैध प्रवासियों से डर है. इसी के विरोध में ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर (ATSUM) ने 'आदिवासी एकता मार्च' निकाला था. इसी दौरान हिंसा भड़क गई.
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