नागरिकता संशोधन विधेयक पर उबल रहा पूर्वोत्तर भारत, जानें कहां क्या पड़ेगा प्रभाव
Citizenship Amendment Bill 2019 : गृह मंत्री अमित शाह आज दोपहर बाद 2 बजे राज्यसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 पेश करेंगे. सोमवार को 7 घंटे की लंबी बहस के बाद लोकसभा में यह विधेयक पहले ही पास हो चुका है. अब सरकार के सामने इसे राज्यसभा में पारित
नई दिल्ली:
गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) आज दोपहर बाद 2 बजे राज्यसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 (Citizenship Amendment Bill 2019) पेश करेंगे. सोमवार को 7 घंटे की लंबी बहस के बाद लोकसभा (Lok Sabha) में यह विधेयक पहले ही पास हो चुका है. अब सरकार के सामने इसे राज्यसभा (Rajya Sabha) में पारित कराने की चुनौती है. इस विधेयक को लेकर बिहार की जनता दल यूनाइटेड (JDU) में मतभेद सामने आ रहे हैं तो शिवसेना (Shiv Sena) ने लोकसभा में समर्थन देने के बाद राज्यसभा में इस बिल का विरोध करने का फैसला किया है. बताया जा रहा है कि शिवसेना ने कांग्रेस (Congress) के कड़े विरोध के बाद यह फैसला लिया है. राज्यसभा से पारित होने के बाद राष्ट्रपति (President) के हस्ताक्षर के बाद इस विधेयक के प्रावधान लागू हो जाएंगे.
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उधर, लोकसभा से बिल पारित होने के बाद से ही पूर्वोत्तर के अधिकांश राज्यों में इसका विरोध शुरू हो गया है. कई छात्र संगठनों में असम सहित कई राज्यों में बंद का आह्वान किया. मंगलवार को तमाम जगहों पर पुलिस से झड़प भी हुई और सड़कों पर वाहनों के टायर फूंके गए. आइए, जानते हैं इस विधेयक के लागू होने के बाद किन राज्यों पर पड़ेगा खास प्रभाव:
इन राज्यों को छूट
- पूरी तरह CAB से बाहर रखे गए राज्य हैं- अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और मिज़ोरम.
- इन राज्यों के चुनिंदा इलाके बाहर रखे जाएंगे - मेघालय, असम और त्रिपुरा.
असम, मेघालय, मिज़ोरम और त्रिपुरा में क्या होगा?
- भारतीय संविधान की छठी अनुसूची जिसमें असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम के अनुसूचित जनजाति वाली बसाहट के इलाकों में प्रशासन के नियम हैं.
- सिक्स्थ शिड्यूल मकसद है कि ट्राइबल आबादी के हितों की रक्षा.
- इसके तहत, ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल्स (ADC) बनाए गए.
- इन ADC को राज्य विधानसभा के अंतर्गत स्वायत्तता दी गई.
- कुल मिलाकर उत्तरपूर्वी राज्यों में कुल 10 ऑटोनॉमस ज़िले हैं.
- इनमें से तीन असम में. तीन मेघालय में (शिलॉन्ग के एक छोटे हिस्से को छोड़कर करीब-करीब पूरा मेघालय ही). तीन मिज़ोरम में. और एक त्रिपुरा में है.
- CAB के अंतर्गत जिन शरणार्थियों को नागरिकता मिलेगी, उन्हें इन स्वायत्त इलाकों (ADC) में ज़मीन या कोई अचल संपत्ति खरीदने का अधिकार नहीं होगा.
- वो इन इलाकों में नहीं बस सकेंगे. उन सुविधाओं और अधिकारों का फ़ायदा नहीं पा सकेंगे, जो ख़ास ट्रायबल्स को मिली हुई हैं.
- इसके अलावा, संविधान का सिक्स्थ शिड्यूल ACD को जो अधिकार देता है, वो भी CAB ख़त्म नहीं कर सकेगा. न ही उनके बनाए क़ानून ही हटा सकेगा.
- बिल में कहा गया है, ‘ये बिल संविधान की छठी अनुसूची में आने वाले पूर्वोत्तर के जनजातीय लोगों और बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेग्युलेशन, 1873 के तहत ‘इनर लाइन’ सिस्टम वाले इलाकों की संवैधानिक गारंटी बनाए रखेगा.’
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अरुणाचल, नागालैंड और मिज़ोरम में क्या होगा?
- अरुणाचल, नागालैंड (दीमापुर को छोड़कर) और मिज़ोरम. इन तीनों राज्यों में ‘इनर लाइन परमिट’ (ILP) की व्यवस्था है.
- पढ़ाई, व्यवसाय, पर्यटन और नौकरी जैसी वजहों से इन इलाकों में बाहर के लोग (बाकी भारत के) भी रहते या आते-जाते हैं.
- इसके लिए उन्हें ILP चाहिए होता है. भले वो भारतीय नागरिक हों.
- बाहर वालों को वहां हमेशा के लिए बसने की इजाज़त नहीं है. न ही वो ज़मीन जैसी अचल संपत्ति ही ख़रीद सकते हैं.
- आप कितने दिनों के लिए जा रहे हैं. कहां-कहां जा रहे हैं. ILP लेने के लिए ये सारी चीजें डिक्लेयर करनी होती हैं.
- जहां जाना है, वहां की राज्य सरकार ILP ज़ारी करती है. एंट्री और एक्ज़िट पॉइंट्स पर लोगों को अपना ILP दिखाना पड़ता है.
- इन इलाकों के बाहर का कोई आदमी, भले वो हिंदुस्तान का नागरिक हो, बिना ILP के यहां नहीं जा सकता है.
- ILP में जितने दिन लिखे गए हैं, उससे ज़्यादा रुक भी नहीं सकता
- वहां अगर रुकना है, तो उसे फिर से ILP बनवाना होगा.
- समय-समय पर ILP रीन्यू करना पड़ता है.
ILP का सिस्टम कहां से आया?
- बंगाल इस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन ऐक्ट, 1873. ये अंग्रेज़ों के समय का क़ानून है.
- इसमें चुनिंदा इलाकों के अंदर बाहर वालों के आने-जाने और रहने पर नियंत्रण लगाया गया था.
- इसके पीछे मकसद था अंग्रेज़ों के पूंजीवादी हितों की हिफ़ाजत.
- ILP की मदद से अंग्रेज़ ये सुनिश्चित करते थे कि उनके अलावा कोई इन इलाकों में व्यापार न कर सके.
- देश आज़ाद होने के बाद भी ये नियम बना रहा.
- मकसद था अनुसूचित जनजातियों के हितों की सुरक्षा.
- यहां रहने वाले ट्राइबल्स को चिंता थी कि ग़ैर-स्थानीय लोगों के आने और बसने से उनकी डेमोग्रफी में बदलाव आएगा. अपनी ही मिट्टी पर वो कमज़ोर हो जाएंगे. उनके हित दबा दिए जाएंगे.
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CAB आने पर इन इलाकों में कैसी चिंता हुई?
- असम. त्रिपुरा. मेघालय. इन इलाकों में शरणार्थियों की काफी तादाद है.
- ख़ासतौर पर बांग्लादेश से आए रिफ़्यूजी.
- ऐसे में ये चिंता हुई कि क्या इन्हें भी CAB के मार्फ़त भारतीय नागरिकता दी जाएगी.
- अब CAB को उत्तरपूर्वी राज्यों के एक बड़े हिस्से में लागू नहीं किए जाने का फैसला लिया गया है.
- इसका मतलब हुआ कि जिन इलाकों में CAB लागू नहीं होगा, वहां रहने वाले इमीग्रेंट ग़ैर-भारतीयों को नागरिकता नहीं दी जाएगी.
- मतलब, अभी जैसे भारतीय नागरिकों के लिए ADC और ILA वाले इलाकों में पाबंदियां हैं, वैसी ही CAB से नागरिकता पाने वालों पर भी होंगी.
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मणिपुर को छूट क्यों नहीं?
- मणिपुर एक रियासत थी.
- बंटवारे के बाद वहां के राजा ने काफी दवाब में भारतीय गणराज्य में विलय के समझौते पर दस्तख़त किए.
- वहां के महाराज थे बोधचंद्र सिंह. वो कुछ काम से मेघालय गए थे. वहां उन्हें नज़रबंद कर दिया गया.
- 21 सितंबर, 1949 को जब उन्होंने सममझौते पर हस्ताक्षर किए, तब जाकर उन्हें रिहा किया गया.
- शुरुआत में मणिपुर को पूर्ण राज्य का दर्ज़ा भी नहीं दिया गया.
- फिर 1956 में केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया. और 1972 में इसे पूर्ण राज्य का दर्ज़ा मिला.
- सिक्स्थ शिड्यूल में मणिपुर था नहीं. शुरुआत में त्रिपुरा भी नहीं था.
- 1985 में त्रिपुरा के जनजातीय इलाकों में छठी अनुसूची लागू हुई.
- उस समय भी मणिपुर को इस सिस्टम में लाने की मांगें हुईं. सरकार ने आश्वसान भी दिया. मगर ये हो नहीं पाया. हालांकि यहां आर्टिकल 371 C लागू है. जो ख़ास मणिपुर के लिए ही है. इसमें दिए गए प्रावधानों के द्वारा ट्रायबल्स के हितों की रक्षा सुनिश्चित की गई है.
- इसके अलावा 1971 में संसद ने ‘मणिपुर (हिल एरियाज़) डिस्ट्रिक्ट काउंसिल एक्ट’ पास किया.
- इसके तहत साल 1972 में मणिपुर के अंदर छह स्वायत्त ज़िला काउंसिल बनाए गए.
- मगर ADC की तुलना में इसके अधिकार काफी कम हैं.
- साल 2018 में मणिपुर विधानसभा ने ‘मणिपुर पीपल बिल, 2018’ पास किया. इसे अब तक राष्ट्रपति की मंज़ूरी नहीं मिली है.
- इसमें राज्य के अंदर आने वाले या रह रहे बाहरी और ग़ैर-मणिपुर लोगों से जुड़े कई प्रावधान बनाए गए हैं.
- इसमें ये भी साफ़ किया गया है कि मणिपुरी कौन है. मगर ये अभी क़ानून नहीं बना है.
- ऐसे में मणिपुर को ILP या ADC की ढाल नहीं मिली हुई है. CAB के मद्देनज़र मणिपुर में बड़ा हंगामा हुआ. बहुत बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन हुए.
- हालांकि ऐसा आश्वासन दिया गया है कि सरकार CAB के अंदर मणिपुर की चिंताओं के मद्देनज़र विशेष इंतज़ाम करने जा रही है.
- फिलहाल इन्हीं वैकल्पिक प्रावधानों के रास्ते सरकार वहां के लोगों को भरोसे में लेने की कोशिश कर रही है.
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