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अपने ही फॉर्मूले में फंस गई शिवसेना (Shiv Sena), ना खुदा मिला न विसाले सनम

महाराष्‍ट्र विधानसभा चुनाव (Maharashtra Assembly Election) का परिणाम आने के बाद से लेकर अब तक चल रहे राजनीतिक ड्रामे के बाद अब राज्‍य में राष्‍ट्रपति शासन (President Rule) की सिफारिश कर दी गई है.

Updated on: 12 Nov 2019, 04:10 PM

नई दिल्‍ली:

महाराष्‍ट्र विधानसभा चुनाव (Maharashtra Assembly Election) का परिणाम आने के बाद से लेकर अब तक चल रहे राजनीतिक ड्रामे के बाद अब राज्‍य में राष्‍ट्रपति शासन (President Rule) की सिफारिश कर दी गई है. राजभवन (Rajbhavan) ने इस बात की पुष्‍टि की है और मोदी सरकार (Modi sarkar) ने भी राष्‍ट्रपति को अनुशंसा भेज दी है. राज्‍य में पिछले 19 दिनों से राजनीतिक ड्रामा चल रहा था. चुनाव में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन (BJP-Shiv Sena Alliance) को पूर्ण बहुमत मिल गया था, लेकिन शिवसेना की महत्‍वाकांक्षी राजनीति के चलते दोनों दलों में गठबंधन टूट गया. यहां तक कि शिवसेना ने एनडीए से बाहर आने का ऐलान कर दिया. मोदी सरकार में उसके एकमात्र मंत्री अरविंद सावंत (Arvind Sawant) ने इस्‍तीफा दे दिया है.

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24 अक्‍टूबर को महाराष्‍ट्र विधानसभा चुनाव का परिणाम आया था. राजनीतिक विश्‍लेषकों और खुद बीजेपी को जो अनुमान था, उसके अनुरूप रिजल्‍ट नहीं आया. बीजेपी और शिवसेना दोनों की सीटों में कमी आई. शिवसेना ने ढाई-ढाई साल के सीएम का मुद्दा उछाल दिया. इसके अलावा शिवसेना की ओर से संजय राउत ने बीजेपी के खिलाफ आग उगलनी शुरू की, जिससे दोनों दलों के संबंधों में तल्‍खी और तेज होती गई.

उधर, बीजेपी अध्‍यक्ष अमित शाह ने दोनों दलों में सुलह करने के लिए प्रस्‍तावित मुंबई दौरा टाल दिया और महाराष्‍ट्र, शिवसेना से सुलह को देवेंद्र फडनवीस के हाल पर छोड़ दिया. शिवसेना ने अमित शाह के इस कदम को अपनी प्रतिष्‍ठा से जोड़ लिया और बीजेपी से दूरी बढ़ाती गई. दोनों दलों के बीच संबंध इस कदर बिगड़ गए कि देवेंद्र फड़नवीस द्वारा उद्धव ठाकरे को तीन बार फोन करने के बाद भी उद्धव ने फोन नहीं उठाया. साथ ही महाराष्‍ट्र की राजनीतिक तबकों में प्रभावी भूमिका अदा करने वाले संभाजी भिड़े माताश्री मिलने पहुंचे, लेकिन उद्धव नहीं मिले. इस बीच एनसीपी और कांग्रेस की ओर से कहा गया कि अगर शिवसेना एनडीए से बाहर आती है तो उसे समर्थन देने पर विचार किया जा सकता है.

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इस कारण दोनों दलों के संबंध निचले स्‍तर तक जा पहुंचे और शिवसेना ने बीजेपी व एनडीए से नाता तोड़ लिया. मोदी सरकार में उसके एकमात्र मंत्री अरविंद सावंत ने इस्‍तीफा दे दिया. जब शिवसेना एनसीपी से बाहर हो गई तो एनसीपी और कांग्रेस ने हीलाहवाली करनी शुरू कर दी. राज्‍यपाल ने सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते बीजेपी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया तो बीजेपी ने सरकार बनाने से मना कर दिया.

उसके बाद राज्‍यपाल ने शिवसेना को सरकार बनाने का न्‍यौता दिया पर राज्‍यपाल द्वारा दिए गए तय समय के भीतर शिवसेना विधायकों के समर्थन की चिट्ठी नहीं जुगाड़ पाई और राज्‍यपाल ने तीसरे नंबर की पार्टी एनसीपी को सरकार बनाने के लिए बुला लिया. इसके बाद एनसीपी और कांग्रेस नेताओं के बीच सरगर्मी तेज हो गई. कांग्रेस आलाकमान सक्रिय हो गया और मंगलवार दोपहर बाद कांग्रेस के तीन बड़े नेताओं को प्‍लेन से मुंबई रवाना किया गया, ताकि वे सरकार के प्रारूप को लेकर शरद पवार से बात कर सकें.

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इस बीच राज्‍यपाल ने राज्‍य में राष्‍ट्रपति शासन की सिफारिश कर दी. राज्‍यपाल की अनुशंसा को केंद्र सरकार ने राष्‍ट्रपति को भेज दिया है.