शिवसेना के बगी शिंदे ने पार्टी से 'गद्दार' विधायक को ऐसे सिखाया था सबक
साल 2005-ठाणे के शिवसेना विधायक रविन्द्र चव्हाण कांग्रेस पार्टी ज्वाइन कर कर लिया था. इसके बाद जब वह अपने ऑफिस से बाहर निकले तो शिवसेना के एक विधायक ने उन पर शिवसैनिकों के साथ हमला बोल दिया था. इस दौरान रविन्द्र की सरेआम पिटाई की गई थी.
highlights
- शिवसेना विधायक रविन्द्र चव्हाण के कांग्रेस में शामिल होने पर की थी खुलेआम पिटाई
- अब एकनाथ शिंदे खुद 13 विधायकों को साथ लेकर पार्टी से बगावत करने को हैं तैयार
- शिंदे के साथ छोड़ने से गिर सकती है महाराष्ट्र की महा विकास अघाड़ी सरकार
नई दिल्ली:
साल 2005-ठाणे के शिवसेना विधायक रविन्द्र चव्हाण कांग्रेस पार्टी ज्वाइन कर कर लिया था. इसके बाद जब वह अपने ऑफिस से बाहर निकले तो शिवसेना के एक विधायक ने उन पर शिवसैनिकों के साथ हमला बोल दिया था. इस दौरान रविन्द्र की सरेआम पिटाई की गई थी. उनका गुनाह बस इतना था कि था कि उन्होंने शिवसेना प्रमुख बाला साहेब से गद्दारी कर कांग्रेस का दामन थाम लिया था. साल 2022 – शिवसेना का एक विधायक अपने साथ 13 विधायकों को पार्टी से तोड़ने के लिए सूरत जा पहुंचे हैं. शिवसेना छोड़ने पर विधायक को पीटने वाला और 13 विधायकों के साथ शिवसेना से रिश्ता तोड़ने वाला एक ही चेहरा है और ये चेहरा है एकनाथ शिंदे का.
80 के दशक में राजनीति में रखा कदम
महाराष्ट्र की राजनीति को सिर के बल खड़ा कर देने वाले एकनाथ शिंदे देश की राजनीति में बहुत ज्यादा जाना पहचाना चेहरा नहीं है. हालांकि, राज्य की राजनीति पर पकड़ रखने वाले जानते हैं कि ठाणे के ये नेता शिवसेना की रीढ़ की हड्डी रहे हैं. आम शिवसैनिक की तरह से राजनीति का ककहरा पढ़ने वाले शिंदे ने 80 के दशक में बाला साहब के नारों पर ठाणे की राजनीति में पहचान बनाना शुरू की। उस वक्त की राजनीति में शिवसेना के नेता आनंद दीघे की तूती बोलती थी. बालासाहेब के सीधे संपर्क में रहने वाले दीघे ने शिंदे को पहचाना और उसको पहली शाखा प्रमुख बना कर शिवसेना में जगह देनी शुरू की.
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पार्षद बनने के बाद ऐसे ताकतवर बनते चले गए शिंदे
1997 में पहली बार ठाणे महानगर पालिका में पार्षद के तौर पर औपचारिक राजनीति की की सीढ़ियां चढ़ना शुरू किया. दूसरी बार भी महानगर पालिका में चुनाव जीत कर जनता के साथ अपनी नजदीकियों को साबित किया. 2001 में आनंद दीघे की अचानक मृत्यु हो जाने से ठाणे जिले में शिवसेना के लिए शिंदे से बढ़िया कोई विकल्प नहीं था. ठाणे को हमेशा तरजीह देने वाले बाले बाला साहेब ने शिंदे पर अपना हाथ रखा और उसको ठाणे म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन में फ्लोर लीडर के तौर पर मनोनीत किया और फिर यहां से शिंदे ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. पार्टी ने शिंदे को 2004 में विधानसभा चुनाव में ठाणे से अपना उम्मीदवार घोषित किया और शिंदे ने जीत हासिल की. 2005 में ठाणे का शिवसेना जिला प्रमुख नियुक्त किया गया. इसके बाद तो शिवसेना की राजनीति में शिंदे की पतंग रोज ऊपर ही उठती चली गई. शिंदे ने उसके बाद 2009, 2014, और 2019 में लगातार जीत हासिल की. 2014 में पहली बार उनको मंत्री बनाकर ताकतवर विभाग यानी पीडब्ल्यूडी का चार्ज दिया गया. पार्टी में शिंदे लगातार ताकतवर होते गए और 2014 के लोकसभा चुनाव में शिंदे के बेटे श्रीकांत को पार्टी ने ठाणे से लोकसभा का टिकट दिया और उसने जीत हासिल की. 2019 में श्रीकांत ने दोबारा सीट पर जीत हासिल की. इसके बाद उद्धव ठाकरे के करीबी के तौर पर वो राजनीति में पकड़ रखने लगे और महाविकास अघाड़ी की सरकार में शिंदे को उद्धव के बाद नंबर दो की भूमिका मिली. यहां तक कि वो आदित्य ठाकरे से ज्यादा ताकतवर माने गए, लेकिन उद्धव के कुछ फैसलों को लेकर उनका तनाव ठाकरे परिवार से इस कदर बढ़ा कि उसने अब पार्टी को ही दो धड़ों में बांट दिया है. फिलहाल शिवसेना के 13 विधायक उनके साथ बताए जा रहे हैं.
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