30 नवंबर नहीं राज्यपाल ने सीएम फडणवीस को 7 दिसंबर तक दिया बहुमत साबित करने का समय, सुप्रीम कोर्ट में खुलासा
इसी के साथ सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में ये भी खुलासा हो गया राज्यपाल ने सीएम फडणवीस को दावा साबित करने के लिए 14 दिनों का वक्त दिया है
नई दिल्ली:
महाराष्ट्र में जारी सियासी घमासान का फैसला कोर्ट मंगलवार को सुनाएगा. सोमवार को हुई सुनवाई में कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. इसी के साथ सीएम देवेंद्र फडणवीस और उपमुख्यमंत्री अजित पवार को एक और दिन की राहत मिल गई है जबकि कांग्रेस-एनसीपी और शिवसेना को बड़ा झटका लगा है क्योंकि वो इस मामले जल्द से जल्द फ्लोर टेस्ट कराने की मांग कर रहे थे.
इसी के साथ सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में ये भी खुलासा हो गया राज्यपाल ने सीएम फडणवीस को दावा साबित करने के लिए 14 दिनों का वक्त दिया है. दरअसल पहले बताया जा रहा था कि राज्यपाल ने 30 दिसंबर को सीएम फडणवीस को बहुमत साबित करने के लिए कहा है लेकिन आज देवेंद्र फडणवीस की ओर से पक्ष रख रहे मुकुल रोहतगी ने बताया कि राज्यपाल ने बहुमत साबित करने के लिए 14 दिनों का वक्त दिया है. मतलब ये कि सीएम फडणवीस को 7 दिसंबर तक बहुमत साबित करना होगा.
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मुकुल रोहतगी ने कोर्ट से अपील की है कि फ्लोर टेस्ट के लिए विधानसभा की परंपरा का पालन होना चाहिए. उन्होंने मांग की है कि पहले प्रोटेम स्पीकर चुना जाए, फिर विधायकों की शपथ, उसके बाद स्पीकर का चुनाव, राज्यपाल का अभिभाषण और अंत में फ्लोर टेस्ट होना चाहिए. इसी के साथ मुकुल रोहतगी ने ये भी कहा, कर्नाटक से महाराष्ट्र के मामले की तुलना नहीं हो सकती. दोनों को एक जैसा नहीं देखा जाना चाहिए. महाराष्ट्र में विधायक दल के नेता के रूप में अजीत पवार बीजेपी के साथ आए और तब जाकर सरकार बनी.
मुकुल रोहतगी ने कहा कि पवार फैमिली में क्या कुछ हो रहा है, उससे हमारा कोई लेना-देना नहीं है. आज फ्लोर टेस्ट नहीं होना चाहिए. हमें पूरा जवाब देने के लिए वक्त मिलना चाहिए.
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कोर्ट ने कहा, राज्यपाल की भूमिका से हमें लेना-देना नहीं है, लेकिन क्या मुख्यमंत्री के पास बहुमत है. बहुत सारे मामलों में 24 घंटों में फ्लोर टेस्ट हुआ है. इस पर मुकुल रोहतगी ने कहा, फ्लोर टेस्ट कभी भी हो सकता है. हमारे पास एनसीपी के 54 विधायकों का समर्थन है.
मुकुल रोहतगी ने यह भी सवाल उठाया कि अगर राज्यपाल की भूमिका सही है तो क्या यह मामला सुना जाना चाहिए. फ्लोर टेस्ट कराना स्पीकर का काम है, इसमें कोर्ट का क्या काम है. यह उनकी जिम्मेदारी है. क्या इस मामले में न्यायिक हस्तक्षेप की गुंजाइश है?
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