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महाराष्‍ट्र : बीजेपी+शिवसेना, बीजेपी+एनसीपी, शिवसेना+NCP+कांग्रेस या कुछ और

विधानसभा चुनाव (Maharashtra Assembly Election) की मतगणना के 9 दिन बाद भी महाराष्‍ट्र (Maharashtra) के उलझे सियासी समीकरण सुलझते नहीं दिख रहे हैं. बीजेपी-शिवसेना गठबंधन (BJP-Shiv Sena Alliance) को बहुमत मिलने के बाद भी सरकार बनाने के बीच ढाई-ढाई साल के सीएम पद को लेकर रसाकस्‍सी खत्‍म होने का नाम नहीं ले रही है.

Updated on: 02 Nov 2019, 12:18 PM

नई दिल्‍ली:

विधानसभा चुनाव (Maharashtra Assembly Election) की मतगणना के 9 दिन बाद भी महाराष्‍ट्र (Maharashtra) के उलझे सियासी समीकरण सुलझते नहीं दिख रहे हैं. बीजेपी-शिवसेना गठबंधन (BJP-Shiv Sena Alliance) को बहुमत मिलने के बाद भी सरकार बनाने के बीच ढाई-ढाई साल के सीएम पद को लेकर रसाकस्‍सी खत्‍म होने का नाम नहीं ले रही है. इन सबके अलावा आए दिन दोनों दलों के नेताओं की तल्ख बयानबाजी से दोनों दलों के बीच खटास भी पैदा होती दिख रही है. बीजेपी-शिवसेना में गतिरोध के बीच एनसीपी (NCP) ने अभी अपने पत्‍ते नहीं खोले हैं तो कांग्रेस (Congress) भी ऊहापोह की स्‍थिति में है. एनसीपी अगर शिवसेना को साथ देने का फैसला करती है तो बीजेपी को सत्‍ता से बाहर रखने के चक्‍कर में कांग्रेस को भी एनसीपी के साथ आना होगा. अन्‍यथा की स्‍थिति में उसे अपने विधायकों को बचाए रखने की चुनौती होगी. बीजेपी-शिवसेना गठबंधन की सरकार बनेगी या एनसीपी बीजेपी के पाले में आ जाएगी या फिर एनसीपी-कांग्रेस के समर्थन से शिवसेना सरकार बनाएगी या फिर राज्‍य में राष्‍ट्रपति शासन (President Rule) लागू होगा. आइए जानते हैं, महाराष्‍ट्र में ऊंट किस करवट बैठेगा.

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बीजेपी-शिवसेना गठबंधन की सरकार
जनमत के लिहाज से यह आदर्श स्‍थिति होगी कि बीजेपी-शिवसेना गठबंधन सरकार बनाए. दोनों दलों के बीच चुनाव पूर्व गठबंधन था और जनता ने इस गठबंधन को बहुमत दिया है. इसमें पेंच यह है कि शिवसेना ढाई साल अपनी पार्टी खासकर ठाकरे परिवार का सीएम देखना चाहती है, भले ही वह आधे से भी कम सीटें जीतकर आई है. दूसरी ओर, विधायकों की संख्‍या के लिहाज से शिवसेना से करीब दोगुनी संख्‍या वाली बीजेपी ऐसा कभी होने नहीं देगी. ढाई-ढाई साल सीएम वाले फॉर्मूले में बीजेपी एक बड़े राज्‍य में अपना हाथ जला चुकी है और खामियाजा भी भुगत चुकी है.

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बीजेपी-एनसीपी गठबंधन की सरकार
शिवसेना की जिद पर अड़े रहने के बाद बीजेपी के सामने एक विकल्‍प एनसीपी से समर्थन सरकार बनाने का होगा. ऐसा तब होगा, जब एनसीपी कांग्रेस को झटका देकर बीजेपी के साथ आने को राजी हो जाएगी. चुनाव से पहले शरद पवार और एनसीपी नेताओं के खिलाफ ईडी की नोटिसों को लेकर दोनों दलों में खटास बढ़ी है. हालांकि राजनीति में कुछ भी संभव है. इस लिहाज से एनसीपी बीजेपी को बाहर से या सरकार में शामिल होकर साथ दे सकती है. संभव है एनसीपी अपने लिए डिप्‍टी सीएम का पद भी मांगे. तब भी बीजेपी सरकार बना सकती है. इस स्‍थिति में उसे शिवसेना जैसी सहयोगी पार्टी को नाराज करना होगा, जो सत्‍ता में साथ रहते हुए भी विपक्ष के नेताओं से अधिक सरकार के खिलाफ आक्रामक रहती है.

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शिवसेना का एनसीपी-कांग्रेस के साथ सरकार
अगर बीजेपी और एनसीपी के साथ बात नहीं बनी तो शिवसेना की कोशिश होगी कि वह एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाए. हालांकि कांग्रेस के लिए आसान नहीं होगा कि वह शिवसेना को समर्थन दे. कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेता सुशील कुमार शिंदे ने शिवसेना के साथ जाने की किसी भी संभावना को खारिज कर दिया है. शिवसेना के साथ जाने से एनसीपी के लिए मुश्‍किल पैदा होगी. दोनों दल मराठी मुद्दों की राजनीति करते हैं, लिहाजा सरकार में शिवसेना होगी तो इसका नुकसान एनसीपी को होगा. हालांकि एनसीपी के नेता नवाब मलिक ने शिवसेना के साथ जाने के संकेत दिए हैं, लेकिन पार्टी प्रमुख शरद पवार ने अभी अपने पत्‍ते नहीं खोले हैं. उधर, शिवसेना के लिए भी कांग्रेस के साथ जाना आसान नहीं होगा, क्‍योंकि शिवसेना कट्टर हिन्‍दुत्‍व की राजनीति करती है तो कांग्रेस नरम हिन्‍दुत्‍व की. कई मुद्दों पर कांग्रेस और शिवसेना आमने-सामने रहती हैं, लिहाजा दोनों दलों के लिए ऐसा करना आसान नहीं होगा.

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एनसीपी का परदे के पीछे से समर्थन
बीजेपी के लिए एक विकल्‍प यह भी है कि एनसीपी उसे बाहर से समर्थन दे दे, अगर उसे किसी प्रकार की हिचकिचाहट है या फिर अगर वह कांग्रेस को नहीं छोड़ना चाहे. इस स्‍थिति में एनसीपी के सामने विकल्‍प होगा कि वह बीजेपी की सरकार को बाहर से समर्थन दे दे. ऐसा होने पर एनसीपी फडनवीस सरकार के फ्लोर टेस्‍ट के समय वॉक आउट कर सकती है. एनसीपी के 54 विधायकों के वॉक आउट करने की स्‍थिति में 289 सदस्यीय विधानसभा में 235 सदस्‍य रह जाएंगे और बहुमत साबित करने को 118 सदस्‍य ही चाहिए होंगे. इसमें बीजेपी (BJP) के 105 विधायकों के अलावा बीजेपी की कोशिश होगी कि छोटी पार्टियों और निर्दलीय के 13 विधायकों का साथ मिल जाए. अब तक 15 निर्दलीय विधायकों का समर्थन जोड़ दें तो बीजेपी के पास कुल 120 विधायकों की ताकत है.