न्यायाधीश लोया की रहस्यमय मौत की जांच के लिए याचिका
बंबई लायर्स एसोसिएशन (बीएलए) ने विशेष सीबीआई अदालत के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश बृजगोपाल हरिकृष्ण लोया की मौत की जांच के लिए एक जांच आयोग गठित करने की मांग को लेकर सोमवार को बंबई उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की।
मुंबई:
बंबई लायर्स एसोसिएशन (बीएलए) ने विशेष सीबीआई अदालत के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश बृजगोपाल हरिकृष्ण लोया की मौत की जांच के लिए एक जांच आयोग गठित करने की मांग को लेकर सोमवार को बंबई उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की। लोया सोहराबुद्दीन शेख मुठभेड़ मामले की सुनवाई कर रहे थे।
बीएलए के वकील अहमद आब्दी ने आईएएनएस से कहा, 'हमने इसे आज दाखिल किया है और बुधवार को इसे मुख्य न्यायाधीश के समक्ष पेश करेंगे ताकि सुनवाई की तारीख तय हो सके। यदि ऐसा नहीं हुआ तो हम सामान्य प्रक्रिया के तहत इसकी सुनवाई होने का इंतजार करेंगे, जिसमें समय लग सकता है।'
बीएलए ने अदालत से आग्रह किया है न्यायाधीश लोया की मौत के इर्द-गिर्द की परिस्थितियों और घटनाक्रमों की जांच के लिए सर्वोच्च न्यायालय के किसी सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक जांच आयोग गठित किया जाए।
बीएलए ने कहा कि यह याचिका तब दाखिल की गई है, जब कारवां नामक पत्रिका ने 21 नवंबर, 2017 के संस्करण में एक रपट प्रकाशित की थी। बीएलए ने इसे एक जनहित याचिका मानने का आग्रह किया है।
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बीएलए ने महाराष्ट्र सरकार, महापंजीयक, स्टोरी की तहकीकात कर उसे लिखने वाले पत्रकार और पत्रिका को पक्षकार बनाया है।
याचिका में कारवां की रपट प्रकाशित होने के बाद न्यायाधीश लोया की मौत को लेकर पहली बार पैदा हुए विवाद के बाद से मीडिया में आई कई रपटों का जिक्र किया गया है।
इसके पहले सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति पी.बी. सावंत, बंबई उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश बी.जी. कोलसे पाटील, न्यायमूर्ति बी.एच. मर्लापल्ले, न्यायमूर्ति ए.पी. शाह और कानून जगत की अन्य हस्तियों ने मामले की एक स्वतंत्र जांच की मांग की थी।
बीएलए की याचिका में कहा गया है, 'यदि न्यायपालिका की स्वतंत्रता और ईमानदारी को बरकरार रखना है तो न्यायाधीश लोया की मौत और इसके इर्द-गिर्द मौजूद परिस्थितियों की गहन जांच की जानी चाहिए।'
उल्लेखनीय है कि न्यायाधीश लोया सोहराबुद्दीन शेख मुठभेड़ मामले को देख रहे थे, जिसमें भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह आरोपी थे, जिन्हें बाद में मामले से बरी कर दिया गया, साथ ही अन्य आरोपियों को भी बरी कर दिया गया, जिसमें गुजरात पुलिस के कई शीर्ष पुलिस अधिकारी शामिल थे।
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