यौन उत्पीड़न की पीड़िताओं की पहचान उजागर करना गंभीर मामला : उच्च न्यायालय

न्यायमूर्ति रंजीत मोरे और न्यायमूर्ति एस पी तावडे की खंडपीठ नगर निवासी प्रियंका देओरे और निओल कुरियकोसे की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी.

न्यायमूर्ति रंजीत मोरे और न्यायमूर्ति एस पी तावडे की खंडपीठ नगर निवासी प्रियंका देओरे और निओल कुरियकोसे की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी.

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Sushil Kumar
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प्रतीकात्मक फोटो( Photo Credit : न्यूज स्टेट)

बंबई उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि उसे यौन उत्पीड़न की पीड़िताओं की पहचान से जुड़ी सामग्री को हटवाने के लिए ट्विटर, फेसबुक और खोज इंजन गूगल जैसे सोशल मीडिया मंचों को निर्देश जारी करने होंगे. न्यायमूर्ति रंजीत मोरे और न्यायमूर्ति एस पी तावडे की खंडपीठ नगर निवासी प्रियंका देओरे और निओल कुरियकोसे की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी. इस जनहित याचिका में राज्य सरकार और केंद्र सरकार को कानून के उन प्रावधानों का कड़ाई से पालन करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है, जिनमें बलात्कार पीड़िता का नाम और फोटो जारी करने पर रोक है.

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याचिकाकर्ता की वकील माधवी तवानंदी ने अदालत को बताया कि यौन अपराधों की पीड़िता की पहचान ज़ाहिर करना एक संज्ञेय जुर्म है और ऐसा करने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 228ए के तहत दो साल तक की सज़ा हो सकती है. उन्होंने हैदराबाद में एक महिला से बलात्कार के बाद हत्या की हाल की घटना को रेखांकित किया जिसमें पीड़िता का नाम और फोटो ट्विटर समेत अन्य सोशल मीडिया मंचों पर प्रकाशित किया गया था.

वकील ने कहा कि यह सामग्री अब भी ऑनलाइन उपलब्ध है. न्यायमूर्ति मोरे ने कहा,“ इस तरह की सामग्री को हटवाने के लिए ऐसे सोशल मीडिया मंचों को कुछ निर्देश देने की ज़रूरत है. सबसे उम्मीद की जाती है कि वे कानून का पालन करें.” अदालत ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 228ए के मुताबिक यौन उत्पीड़न की शिकार पीड़िता की पहचान उजागर करना संगीन अपराध है. अदालत ने कहा, “ यह गैर ज़मानती अपराध है.” मामले की अगली सुनवाई 26 फरवरी को होगी. 

Source : Bhasha

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