New Update
/newsnation/media/post_attachments/images/2021/05/01/nandurbar-98.jpg)
Nandurbar( Photo Credit : गूगल)
0
By clicking the button, I accept the Terms of Use of the service and its Privacy Policy, as well as consent to the processing of personal data.
Don’t have an account? Signup
Nandurbar( Photo Credit : गूगल)
कोरोना की दूसरी लहर भारत के राजधानी समेत देश के कई बड़े शहरों कहर बरपा रही है. रोज हजारों की संख्या में मौंते हो रही हैं. लेकिन आज एक ऐसे डीएम के बारे में बता रहे हैं जिसने समय रहते भांपकर महाराष्ट्र के नंदुरबार में दिसंबर से ही कारगर सिस्टम खड़ा करने की तैयारी शुरू कर दी थी जो आज काफी कामयाब है. महाराष्ट्र का नंदुरबार जिला बेहद पिछड़ा इलाका है और आदिवासी बहुल है. इस जिले के डीएम डॉ. राजेंद्र भरुड़ हैं. यहां पिछले साल कोरोना से लड़ाई के लिए महज 20 बेड ही थे. लेकिन आज की बात करें तो यहां अस्पतालों में 1289 बेड, कोविड केयर सेंटरों में 1117 बेड और ग्रामीण अस्पतालों में 5620 बेड के साथ महामारी को काबू में करने और लड़ाई के लिए मजबूत हेल्थकेयर सिस्टम खड़ा है. साथ ही डीएम डॉ. राजेंद्र भरुड़ की निगरानी में स्कूलों, हॉस्टलों, सोसाइटियों और मंदिरों में भी बेड की व्यवस्था की गई ताकि कोई बेड न मिलने की वजह से इलाज से वंचित रह जाए. साथ ही जिले में 7000 से ज्यादा आइसोलेशन बेड और 1300 आईसीयू बेड भी हैं.
पूरे राज्य में नंदुरबार मॉडल
यहीं नहीं नंदुरबार में आज खुद के ऑक्सीजन प्लांट है. इस वजह से यह जिला किसी पर निर्भर नहीं है. डीएम डॉ. राजेंद्र भरुड़ की रेल मंत्री पीयूष गोयल, राज्य के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे और बायोकॉन चेयरपर्सन किरण मजूमदार शॉ ने तारीफ की है. वहीं राज्य के स्वास्थ्य मंत्री ने पूरे महाराष्ट्र में नंदुरबार मॉडल को अपनाने की घोषणा की है.
एमबीबीएस डॉक्टर हैं डीएम
डॉ. राजेंद्र भरुड़ 2013 बैच के आईएएस अधिकारी हैं और इन्होंने मुंबई के केईएम अस्पताल से एमबीबीएस किया है. शायद डॉक्टर होने वजह से वह इस आने वाली जानलेवा महामरी को भांप गए थे इस लिए आज नंदुरबार मॉडल जैसा सिस्टम दिसंबर से ही खड़ा करने की तैयारी शुरू कर दी थी. आज नंदुरबार में 1200 संक्रमित रोज मिल रहे हैं. डीएम डॉ. राजेंद्र भरुड़ जिला विकास निधि और एसडीआरएफ के फंड से तीन ऑक्सीजन प्लांट लगवा दिए, जहां 3000 लीटर प्रति मिनट ऑक्सीजन तैयार हो रही है. ऑक्सीजन बनाने के लिए लिक्विड टैंक लगाने का भी काम चल रहा है. कोरोना मरीजों के लिए पिछले तीन महीनों में 27 एंबुलेंस की खरीदी गईं हैं.
भीलवाड़ा मॉडल की हुई थी पूरे देश में चर्चा
राजस्थान के भीलवाड़ में 19 मार्च 2020 को पहला मरीज आया था. अगले दिन पांच और मरीज आते ही जिला कलेक्टर राजेंद्र भट्ट ने कर्फ्यू लगा दिया. रोज कई मीटिंग, अफसरों से फीडबैक और प्लानिंग. सरकार को रिपोर्टिंग. देर रात सोना. जल्दी उठकर फिर वही रूटीन. 3 अप्रैल 2020 को 10 दिन का महाकर्फ्यू लगा. यही कड़ा फैसला महायुद्ध में मील का पत्थर साबित हुआ. आखिरकार जिद की जीत हुई. जिस शहर को पहले देश का वुहान (चीनी शहर) और इटली की संज्ञा दी जाने लगी थी वहां गंभीर रोगियों की मौत को छोड़ दें तो डॉक्टरों की कड़ी मेहनत ने कोरोना को मात दे दी. यही वजह है कि भीलवाड़ा को केंद्र सरकार से भी तारीफ मिली.
दो बार सेनेटाइजेशन और संक्रमण फैलाने वाला अस्पताल सील
शहर के 55 वार्डों में नगर परिषद के जरिए दो बार सैनिटाइजेशन करवाया. हर गली-मोहल्ले, कॉलोनी में हाइपोक्लोराइड एक प्रतिशत का छिडकाव किया गया. सबसे पहले प्रशासन ने संक्रमित स्टाफ वाले अस्पताल को सील करवाया. 4 राज्यों के 36 व राजस्थान के 15 जिलों के 498 मरीज आए. इन सभी के कलेक्टर को सूचना देकर उन्हें आइसोलेट कराया. अस्पताल के 253 स्टाफ व जिले के 7 हजार मरीजों की स्क्रीनिंग की.
HIGHLIGHTS
Source : News Nation Bureau