26/11 के 14 साल बाद भी मारे गए मछुआरों के परिजन को नहीं मिला मुआवजा
ऐसा कहा जाता है कि सुबह होने से पहले सबसे गहरा अंधेरा होता है और फिर सूर्य की किरणे अंधेरे को उजाले में बदल देती हैं, लेकिन एमवी कुबेर के चालक दल के सदस्यों के परिवारों के लिए, 26 नवंबर, 2008 को डूबने वाला सूरज चौदह साल बाद भी नहीं निकला है. 12 साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद अदालत ने चालक दल के चार सदस्यों को मृत घोषित किया और सावधि जमा के रूप में 5 लाख रुपये का आंशिक मुआवजा दिया. उन्हें केवल हर तीन महीने में ब्याज निकालने की अनुमति मिली.
मुम्बई:
ऐसा कहा जाता है कि सुबह होने से पहले सबसे गहरा अंधेरा होता है और फिर सूर्य की किरणे अंधेरे को उजाले में बदल देती हैं, लेकिन एमवी कुबेर के चालक दल के सदस्यों के परिवारों के लिए, 26 नवंबर, 2008 को डूबने वाला सूरज चौदह साल बाद भी नहीं निकला है. 12 साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद अदालत ने चालक दल के चार सदस्यों को मृत घोषित किया और सावधि जमा के रूप में 5 लाख रुपये का आंशिक मुआवजा दिया. उन्हें केवल हर तीन महीने में ब्याज निकालने की अनुमति मिली.
दक्षिण गुजरात में नवसारी जिले के वंशी बोरसी गांव की धर्मिष्ठा नटूभाई राठौड़ 26/11 हमले के वक्त 23 साल की थीं और उनका चार साल का बेटा नितिन और सात महीने की बेटी अस्मिता थीं. 27 नवंबर, 2008 की सुबह उन्हें पता चला कि उनके पति नटूभाई लापता हैं, जिस नाव कुबेर पर वह मछली पकड़ने गए थे, उसे आतंकवादियों ने अगवा कर लिया था, टंडेल (कप्तान) अमरसिंह का शव मिला था, जबकि नटूभाई और अन्य लापता थे.
आईएएनएस से बात करते हुए धर्मिष्ठा ने कहा, मैं अनपढ़ हूं, लेकिन वंशी बोरसी पंचायत के सरपंच और सामाजिक कार्यकर्ताओं की मदद से हमने मिसिंग सर्टिफिकेट या डेथ सर्टिफिकेट हासिल करने की लड़ाई लड़ी, जिसे न तो महाराष्ट्र और न ही गुजरात सरकार जारी करने को तैयार थी, हमने उम्मीद लगभग छोड़ दी थी, लेकिन एक एनजीओ की मदद से मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने का निर्देश देने के लिए अदालत में एक याचिका दायर की गई. उन्होंने कहा कि लगभग दस साल लग गए, 2019 में अदालत ने उनके पति को मृत घोषित किया और राज्य सरकार को मुआवजा जारी करने का निर्देश दिया.
इन सभी वर्षों के दौरान धर्मिष्ठा ने घर चलाने के लिए गांव में नौकरानी के रूप में काम किया. उस दौरान, उनका बेटा नितिन भी बड़ा हो गया और वह भी मजदूरी करके घर का आर्थिक बोझ उठाने लगा. हालांकि, यह ज्यादा समय तक नहीं चला, सात महीने पहले बीमारी की वजह से धर्मिष्ठा के बेटे नितिन की भी मौत हो गई.
धर्मिष्ठा को अन्य तीन परिवारों के साथ, 2020 में मुआवजे के रूप में पांच लाख रुपये मिले, जो सावधि जमा के रूप में है, इसलिए केवल ब्याज निकालने की अनुमति है. हर तीन महीने में उसे 3000 रुपये ब्याज के रूप में मिलते हैं, जिससे उसे अपना और 10वीं कक्षा में पढ़ने वाली अपनी बेटी अस्मिता का खर्चा चलाना पड़ता है. यहां तक कि धर्मिष्ठा को नौकरानी की नौकरी भी आसानी से नहीं मिलती क्योंकि गांव छोटा है और अधिकांश ग्रामीण मध्यम वर्गीय परिवार से हैं. उसे बमुश्किल 50 रुपये से 100 रुपये प्रति दिन का भुगतान किया जाता है, और यहां तक की महीने में पूरे 30 दिन काम नहीं मिलता है.
वंशी बोरसी पंचायत के सरपंच भरत पटेल को मुआवजे की कम राशि पर दुख जताया. उन्होंने कहा- दो लोगों का परिवार 1000 रुपये महीने में कैसे गुजारा कर सकता है. राज्य सरकार को अधिक मुआवजा देना चाहिए ताकि परिवार सम्मान के साथ जी सके. समुद्र श्रमिक सुरक्षा संघ के अध्यक्ष बालूभाई सोशा ने कहा- राज्य सरकार गंभीर नहीं है, पांच लाख रुपये का मुआवजा आंशिक है, वह प्रति व्यक्ति 20 लाख रुपये चाहते हैं, जिसे अपीलीय अदालत में चुनौती दी है.
उन्होंने गिर गढ़ा गांव (गिर सोमनाथ जिले) के रमेश बंभानिया का मामला उठाया, जिसे भी आतंकवादियों ने एमवी कुबेर पर मार डाला था. हाईकोर्ट में अधिवक्ता आनंद याज्ञनिक द्वारा लड़ी गई कानूनी लड़ाई के कारण रमेश की पत्नी जेसीबन और अन्य को 5 लाख रुपये मिले. उन्होंने उन्हें समूह बीमा योजना से 45000 रुपये का बीमा लाभ भी दिलवाया.
सोशा ने कहा कि नौका कप्तान अमरसी दीव के रहने वाले थे, केंद्र सरकार ने न केवल उनकी मौत पर मुआवजा दिया, बल्कि उनके परिवार के एक सदस्य को केंद्र शासित प्रदेश में नौकरी दी. उसकी तुलना में गुजरात सरकार संवेदनहीन तरीके से काम कर रही है और चालक दल के सदस्यों के बुरे समय में उनके परिवारों के साथ नहीं खड़ी है.
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