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BMC का 31,000 करोड़ का बजट या सियासी मजबूरी, बीजेपी और शिवसेना क्या फिर आएंगे साथ?

एक बार फिर शिवसेना और बीजेपी के साथ आने की बात होने लगी है। इसके पीछे क्या केवल राजनीतिक कारण है या फिर कुछ और भी, जिसके चलते दोनों ओर से साथ आने के लिए बयानबाजी शुरू हो गई है।

Updated on: 24 Feb 2017, 03:58 PM

highlights

  • बीएमसी का सलाना बजट 30,000 करोड़ के करीब, सत्ता की चाबी भी नहीं चूकना चाहेगी कोई पार्टी
  • उद्धव ठाकरे की सियासी मजबूरी और बीजेपी की विधानसभा में स्थिति दोनों को ला सकती है साथ

नई दिल्ली:

बृहनमुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) सहित महाराष्ट्र के दूसरे निकाय चुनाव से पहले बीजेपी और शिवसेना के बीच तल्खी लगातार सुर्खियों में थी। लेकिन अब नतीजों के बाद सवाल उठने लगे हैं कि क्या दोनों एक बार फिर साथ आएंगे।

चुनाव से पहले उद्धव ठाकरे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित महाराष्ट्र में देवेंद्र फडनवीस तक पर निशाना साधा। नौबत यह आई कि बीजेपी और शिवसेना को 25 सालों में पहली बार अलग होकर बीएमसी चुनाव लड़ना पड़ा। फिर महाराष्ट्र में देवेंद्र फडनवीस के नेतृत्व वाली सरकार पर भी खतरे की बात होने लगी।

महाराष्ट्र में बीजेपी के पास पूर्ण बहुमत नहीं है। महाराष्ट्र विधानसभा में कुल 288 सीटें हैं इनमें बीजेपी के पास 122, शिवसेना के पास 63 कांग्रेस के पास 42, एनसीपी के पास 41 और 20 सीटें अन्य के पास हैं। अगर शिवसेना अपना समर्थन वापस ले लेती है तो सरकार अल्पमत में आ जाएगी। हालांकि, शिवसेना ने ऐसा किया नहीं लेकिन अपने मंत्रियों को जरूर सरकार से अलग कर लिया। 

इसे देखते हुए बीजेपी ने एनसीपी से नजदीकी बढ़ानी शुरू कर दी और नए सियासी मायने निकाले जाने लगे। सबसे दिलचस्प यह रहा कि नरेंद्र मोदी सरकार ने इस साल शरद पवार को पद्म विभूषण पुरस्कार दिया। 

बहरहाल, इन तमाम अटकलों के बावजूद अब एक बार फिर शिवसेना और बीजेपी के साथ आने की बात होने लगी है। बीजेपी के सीनियर नेता और महाराष्ट्र सरकार में मंत्री चंद्रकांत पाटिल सहित कुछ और नेताओं ने दोनों पार्टियों के साथ आने की वकालत की है। इसके पीछे क्या केवल राजनीतिक कारण है या फिर कुछ और भी, जिसके चलते दोनों ओर से साथ आने के लिए बयानबाजी शुरू हो गई है।

बीएमसी का 31,000 करोड़ का बजट

इस साल बीएमसी का सलाना बजट करीब 31,000 करोड़ था। पिछले साल भी यह 26,000 करोड़ के करीब था। सत्ता मिलने का एक मतलब इतने बड़े निकाय पर सीधा कब्जा होगा और सत्ता की इस चाबी को शायद ही कोई पार्टी गंवाना नहीं चाहेगी।

कहानी केवल यही खत्म नहीं होगी, उद्धव की सियासी मजबूरी अपनी जगह है। पिछले दो दशक से शिवसेना का प्रभाव बीएमसी पर रहा है। उद्धव नहीं चाहेंगे यह प्रभाव आसानी से खत्म हो जाए।

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शिवसेना और बीजेपी

शिवसेना और बीजेपी के बीच झगड़े को भूल भी जाएं तो एक तस्वीर यही उभरी है मुंबई सहित महाराष्ट्र निकाय चुनाव में 'भगवे रंग' ने अपना जलवा दिखाया। अभी शिवसेना अलग होती है तो इसका एक मतलब यह होगा कि पार्टी को शायद अगला विधानसभा चुनाव भी अकेले ही लड़ना पड़े। हाल के नतीजों से शिवसेना उतनी उत्साहित नहीं होगी कि वह अकेले चुनाव लड़ने का जोखिम उठा सके। हालांकि, महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव में अभी भी करीब दो साल बाकी हैं।