लोगों को सामान्य ज्ञान की किताबों में पढ़ाया जाता है कि चौधरी चरण सिंह देश के ऐसे प्रधानमंत्री थे, जिन्हें बतौर पीएम एक दिन भी संसद गए बगैर ही अपना पद छोड़ना पड़ा था. महाराष्ट्र में अजित पवार के डिप्टी सीएम बनने और फिर पद से इस्तीफा देने से एक बार फिर से पुरानी बात ताजा हो गई. हालांकि, चौधरी चरण सिंह के बनने और हटने के बीच लगभग साढ़े पांच महीने का वक्त रहा है. 1979 के जुलाई से 1980 की शुरुआती दिनों तक चौधरी साहेब इस देश के पीएम रहे थे. माना जाता है कि वे कांग्रेस की राजनीतिक चाल के झांसे में आकर प्रधानमंत्री बनने को तैयार हो गए थे. हालांकि, अजित पवार का केस कुछ अलग है.
अजित पवार खुद महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री रह चुके हैं और वे शरद पवार के भतीजे के रूप में जाने जाते हैं, लेकिन राजनीति में कोई नौसिखिया नहीं होता है. उनका करीब 3 दशक से ज्यादा का राजनीतिक करियर है. उनके नाम के साथ तमाम उपलब्धियों के अलावा कई घपले-घोटाले भी जुड़े हैं. ये अलग बात है कि इस बार डिप्टी सीएम बनने के तुरंत बाद उन्हें सिंचाई घोटाले से क्लिन चिट मिल गई थी. हालांकि, उन्हें उपमुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे 48 घंटे ही हुए थे. वे डिप्टी सीएम के पद पर 79 घंटे ही रह सके. हालांकि, ये भी नहीं कहा जा सकता कि वे उपमुख्यमंत्री की कुर्सी पर कितने घंटे बैठे.
अजित पवार को आज यानी 26-11 को अपने मुख्यमंत्री के साथ मुंबई में आतंकवादी हमले की बरसी के मौके पर शहीद हुए लोगों को श्रद्धांजलि देने जाना था. चर्नी गेट पर हुए इस कार्यक्रम में पहली बार मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री को साथ-साथ देखने का लोगों को मौका मिलता, लेकिन चाचा पवार और दूसरे घरवालों ने मिलकर कुछ ऐसा चक्र चलाया कि वे इस कार्यक्रम में नहीं शामिल हो सके. पता चल रहा है कि उसी समय ट्राइडेंट होटल में सुप्रिया सुले और परिवार के दूसरे लोग उन्हें घेरकर भाजपा का पाला छोड़ एनसीपी में लौटने की शर्तें तय कर रहे थे. इसी दरम्यान सुप्रीम कोर्ट के फैसले से लगने लगा कि गेम का रुख कुछ और हो गया है.
बताया जा रहा है कि अजित पवार की चिंता ये हो गई थी कि कहीं उन्हें भी चिदंबरम और इस तरह के दूसरे नेताओं जैसी स्थिति न झेलनी पड़े. महाराष्ट्र की राजनीति के जानकार बताते हैं कि वे चाचा से भी पहले कह चुके थे कि बीजेपी के ही साथ रहना चाहिए. इस दरम्यान जब उन्हें मौका मिला तो वे अकेले ही फडणवीस के साथ हो लिए. अजित पवार की राजनीतिक स्थिति वैसे भी बहुत अच्छी नहीं बताई जाती है. उनके बेटे पार्थ भी चुनाव हार चुके हैं.
कुछ लोगों का कहना है कि इसे भी शरद पवार की राजनीतिक कुव्वत के तौर पर देख रहे हैं कि उन्होंने बेटी सुप्रिया सुले का राजनीतिक पथ साफ सुथरा रखने के लिए कांटे राह से किनारे किए हैं. माना जा रहा था कि अपनी स्थिति का फायदा उठाकर अजित पवार एक तरह से शरद पवार के राजनीतिक उत्तराधिकारी होने की भी कोशिश करते रहे हैं, जबकि सुप्रिया भी राजनीति में हैं और शरद पवार चाहते हैं कि सुप्रिया ही उनकी राजनीतिक विरासत को आगे ले जाएं.
Source : न्यूज स्टेट ब्यूरो