पढ़ने और सीखने की कोई उम्र नहीं होती ऐसा ही देखने को मिला है महाराष्ट्र के 'आजीबाईची शाला' में जहां वृद्ध महिलाए गुलाबी पोशाक पहने, कंधे पर बस्ता टांगे हर सुबह पढ़ने जाती है। आपको जानकर आशर्चय होगा कि सभी छात्राएं 60 से 90 साल की उम्र की हैं।
कांता और उनकी दोस्त भी यहां के फांगणे गांव स्थित दादी नानियों के स्कूल ‘आजीबाईची शाला’ में पढ़ती हैं, जहां वे प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करती हैं और गणित, अक्षरज्ञान और उनके सही उच्चारण के साथ नर्सरी कविताओं का अभ्यास करती हैं।
45 साल की योगेंद्र बांगड़ ने 'आजीबाईची शाला' की सुरु की। इस स्कूल का लक्ष्य गांव की बुजुर्ग महिलाओं को शिक्षित करना है। फांगणे जिला परिषद प्राथमिक स्कूल के शिक्षक बांगड़ ने मोतीराम चैरिटेबल ट्रस्ट के साथ मिलकर यह पहल शुरू की थी।
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मोतीराम चैरिटेबल ट्रस्ट इन महिलाओं को स्कूल के लिये गुलाबी साड़ी, स्कूल बैग, एक स्लेट और चॉक पेंसिल जैसे जरूरी सामान के साथ कक्षा के लिये श्यामपट्ट उपलब्ध कराता है।इस स्कूल की मदद से कांता अब मराठी में पढ़-लिख सकती हैं। वह कहती हैं कि शिक्षित होने से वह आत्मनिर्भर महसूस कर रही हैं। उन्होंने कहा ‘शुरू शुरू में मैं शर्माती थी और हिचकिचाती थी लेकिन जब मैंने अपनी उम्र और उससे अधिक की महिलाओं के शाला में पढ़ने आने की बात जानी तो फिर मैंने भी अपने फैसले पर आगे बढ़ी।'
इस स्कूल की सकारात्मक पहल से कई उम्रदराज महिलाओं को इस उम्र में शिक्षित होने का अवसर मिला है।
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Source : News Nation Bureau