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महाराष्ट्र में निकाय चुनावों की आहट के साथ सियासत गरमा गई है। मीरा-भायंदर में कांग्रेस और भाजपा आमने-सामने हैं। कांग्रेस नेता मुज़फ़्फ़र हुसैन ने भाजपा विधायक नरेंद्र मेहता की भाभी और पूर्व मेयर डिंपल मेहता पर दो अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों में नाम दर्ज कराने का गंभीर आरोप लगाया है। हुसैन ने सबूत के तौर पर मतदाता सूची भी मीडिया के सामने रखी और कहा कि यह “जनप्रतिनिधित्व अधिनियम” का खुला उल्लंघन है। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर प्रशासन ने कार्रवाई नहीं की तो वे हाई कोर्ट का रुख करेंगे। इस विवाद ने राजनीतिक हलचल तेज कर दी है।
बीजेपी का पलटवार- ‘कांग्रेस पर राजनीतिक साज़िश का आरोप!’
मीरा भायंदर के बीजेपी विधायक नरेंद्र मेहता ने कांग्रेस के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए पलटवार किया। उन्होंने कहा कि डिंपल मेहता का पुराना नाम हटाने की प्रक्रिया पहले से चल रही है और यह “जानबूझकर की गई गलती” नहीं बल्कि तकनीकी त्रुटि है। मेहता ने कांग्रेस नेताओं की भी वोटर लिस्ट दिखाते हुए कहा कि उनके कई पदाधिकारियों के नाम भी दो-दो जगह दर्ज हैं। उन्होंने सवाल उठाया — “क्या कांग्रेस अपने नेताओं पर भी कार्रवाई करेगी?” मेहता ने कांग्रेस पर बिहार में SIR का मुद्दा उठाकर महाराष्ट्र में राजनीतिक लाभ लेने का आरोप लगाया। अब यह विवाद चुनावी रणनीति का केंद्र बन चुका है।
विपक्ष की चुनाव आयोग से शिकायत- क्या ‘वोटर लिस्ट की राजनीति’ बनेगी चुनावी मुद्दा?
वोटर लिस्ट विवाद के बीच विपक्षी दलों का प्रतिनिधिमंडल मुंबई में मुख्य निर्वाचन अधिकारी एस. चोकलिंगम से मिला। विपक्ष ने मतदाता सूची की गड़बड़ियों, वीवीपैट के उपयोग और पारदर्शिता को लेकर चुनाव आयोग से सख्त कार्रवाई की मांग की। वहीं भाजपा इसे सिर्फ तकनीकी त्रुटि बताकर शांत करने की कोशिश में है। सवाल यह है कि क्या यह मामला सिर्फ मीरा-भायंदर तक सीमित है या पूरे महाराष्ट्र की चुनावी निष्पक्षता पर सवाल उठाता है? अगर समय रहते सुधार नहीं हुए, तो आगामी कॉरपोरेशन चुनावों में “वोटर लिस्ट की राजनीति” ही सबसे बड़ा मुद्दा बन सकती है।