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भोपाल गैस त्रासदी के जख्म अभी भी हैं ताजे, सिसक रहीं जिंदगियां

भोपाल में 36 साल पहले हुए गैस हादसे के प्रभावितों के जख्म अब तक नहीं भरे हैं. अभी भी वे न्याय और अपने हक के लिए भटक रहे हैं.

Updated on: 03 Dec 2020, 02:31 PM

भोपाल:

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में 36 साल पहले हुए गैस हादसे के प्रभावितों के जख्म अब तक नहीं भरे हैं. अभी भी वे न्याय और अपने हक के लिए भटक रहे हैं. भोपाल में दो-तीन दिसंबर 1984 की दरमियानी रात को यूनियन कार्बाइड से जहरीली गैस रिसी थी और उसने हजारों लोगों को अपने आगोश में ले लिया था, तो दूसरी ओर हादसे के 36 साल बाद भी लोग बीमारी और समस्याओं से जूझ रहे हैं. लोगों को न तो बेहतर इलाज मिल पाया है और न ही मुआवजा. यही कारण है कि उनके भीतर सरकारों को लेकर घोर असंतोष है.

भोपाल गैस हादसे ने चिरौंजी बाई (85) की जिंदगी को भी मुसीबतों से घेर दिया. उन्होंने गैस हादसे में अपने पति, सास, बड़ी बेटी और दो बेटों को खोया है. उस रात को याद करके उनकी आंखें भर आती हैं और वे बताती हैं कि उनकी जिंदगी तो मुसीबतों का पहाड़ बन गई है. सरकार से पेंशन ही मिल जाती थी जिसके सहारे उनकी जिंदगी चल रही थी मगर अब तो वह भी बंद है.

पेंशन नहीं मिलने से दो वक्त की रोटी का संकट
अकेली चिरौंजी बाई ऐसी नहीं है बल्कि हजारों महिलाएं ऐसी हैं जो दो वक्त की रोटी के लिए संघर्ष कर रही हैं. वहीं ह्रदय लीवर गुर्दे आदि के हजारों मरीज है जिन्हें उपचार की बेहतर सुविधाएं नहीं मिल पा रही है. गैस संयंत्र के आसपास की बस्तियों में रहने वाला एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं मिलता जो समस्याओं से या बीमारी से ग्रसित नहीं हो, क्योंकि लोगों को तो पीने का पानी भी साफ नहीं मिल पा रहा है.

गैस पीड़ितों की लंबे समय से लड़ाई लड़ने वाले सतीनाथ षडंगी कहते हैं कि इस हादसे के मुख्य आरोपी वारेन एंडरसन को अमेरिकी सरकार और भारत की सरकार के रवैए के कारण सजा नहीं मिल पाई और वह बगैर जेल जाए ही दुनिया को छोड़ गया. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है भोपाल गैस त्रासदी से उपजा दर्द आज भी हम सबको याद है. ईश्वर ऐसी त्रासदी से देश और दुनिया के हर कोने को सर्वदा सुरक्षित रखे. अमूल्य जीवन की रक्षा और सुनहरे भविष्य के निर्माण के लिए समाज एवं सरकार मिलकर कार्य करें, तो ऐसी विपदाओं से विश्व हमेशा सुरक्षित रहेगा.

सरकारें बदलीं, लेकिन दर्द नहीं हुआ कम
यूनियन कार्बाइड से दो-तीन दिसंबर 1984 की दरम्यानी रात को रिसी जहरीली गैस मिथाइल आईसो साइनाइड ने हजारों को लेागों को एक ही रात में मौत की नींद सुला दिया था. उस मंजर के गवाह अब भी उस रात को याद कर दहशतजदा हो जाते हैं और वे उस रात को याद ही नहीं करना चाहते. बीते 35 साल में राज्य और केंद्र में कई सरकारें बदल चुकी हैं, मगर गैस पीड़ितों का दर्द कम नहीं हुआ.

भोपाल गैस पीड़ित संघर्ष सहयोग समिति की संयोजक साधना कार्णिक ने सरकारों पर गैस पीड़ितों के प्रति नकारात्मक रुख अपनाने का आरोप लगाते हुए कहा कि गैस प्रभावित क्षेत्रों के निवासियों को जहरीला और दूषित पानी पीने को मिल रहा है. यही कारण है कि, गुर्दे, कैसर, फेंफड़े, हृदय और आंखों की बीमारी के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. गैस पीड़ितों की मौत हो रही है, मगर उनका पंजीयन नहीं किया जा रहा है.

अभी भी मिल रहे बीमार
गैस कांड प्रभावित बस्तियों में अब भी पीड़ितों की भरमार हैं. कहीं अपाहिज नजर आते है तो कहीं हांफते, घिसते लोग. विधवाओं की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है. बीमार बढ़ रहे है. कहने के लिए तो गैस पीड़ितों के लिए अस्पताल खोले गए हैं मगर इलाज की वह सुविधाएं नहीं है जिसकी बीमारों को जरुरत है.