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कमलनाथ जहां से चले फिर वहीं खड़े, मध्य प्रदेश में सवा महीने में ही बदले समीकरण कांग्रेस सरकार पर भारी पड़े

कांग्रेस के दिग्गज नेता कमलनाथ (Kamal Nath) सिर्फ 15 महीने तक मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद अपने चार दशक पुराने राजनीतिक चक्र में एक बार फिर वहीं खड़े हैं, जहां से उन्होंने शुरुआत की थी.

Updated on: 20 Mar 2020, 10:22 PM

भोपाल:

कांग्रेस के दिग्गज नेता कमलनाथ (Kamal Nath) सिर्फ 15 महीने तक मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद अपने चार दशक पुराने राजनीतिक चक्र में एक बार फिर वहीं खड़े हैं, जहां से उन्होंने शुरुआत की थी. इस बात को ज्यादा दिन नहीं हुए हैं, जब दिसंबर 2018 में कमलनाथ आला कमान से राज्य की सत्ता संभालने का फरमान लेकर विजयी अंदाज में भोपाल पहुंचे थे तो उनके समर्थकों ने ‘जय जय कमलनाथ’ के नारे लगाकर उन्हें सिर आंखों पर बिठा लिया था.

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कांग्रेस में कमलनाथ के कद का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि स्वर्गीय इंदिरा गांधी ने उन्हें उस वक्त अपना ‘तीसरा बेटा‘ बताया था जब आपात काल के बाद 1979 में उन्होंने मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली सरकार के खिलाफ उनका साथ दिया था. मध्य प्रदेश में कांग्रेस 2018 के विधानसभा चुनाव में विजय दर्ज करके 15 वर्ष के बाद सत्ता में वापस लौटी थी और कमलनाथ ने पूर्व प्रधानमंत्री के पोते के आशीर्वाद से सत्ता संभाली थी, लेकिन तकरीबन सवा साल के शासन के बाद ही राज्य में तेजी से बदले राजनीतिक समीकरण उनकी सरकार के लिए भारी पड़े.

72 वर्षीय नाथ के समर्थक मध्य भारत के इस महत्वपूर्ण राज्य को भाजपा के हाथों से छीनकर कांग्रेस की झोली में डालने का पूरा श्रेय उन्हें देते हैं, जहां 2003 से 2018 तक शिवराज सिंह चौहान का कब्जा था और वह सबसे लंबे समय तक मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बने रहने का रिकार्ड अपने नाम कर चुके थे. एक समय नाथ के सहयोगी रहे और भाजपा को सत्ता से बेदखल करने में कदम दर कदम उनके साथ चलते रहे 49 वर्षीय ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इस महीने के शुरू में भाजपा का दामन थाम लिया और राज्य में कांग्रेस की सरकार का सूरज ढलने लगा.

कमलनाथ ने सिंधिया को ‘तो उतर जाएं’ कहकर ललकारा था

सिंधिया ने जब कहा कि अगर कमलनाथ सरकार ने घोषणापत्र में किए गए वायदे पूरे नहीं किए तो वह सड़कों पर उतरेंगे तो कमलनाथ ने उन्हें ‘तो उतर जाएं’ कहकर ललकारा था. इससे शाही परिवार के चश्मो चिराग ने राज्य में सियासत के मोहरे पलट डाले और कमलनाथ को शह के बिना ही मात दे दी. कांग्रेस प्रेक्षकों की मानें तो मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने 2019 के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए कमलनाथ के अनुभवी हाथों में राज्य की कमान सौंपी थी, लेकिन पार्टी का यह दांव उलटा पड़ गया और पार्टी को राज्य में लोकसभा की 29 में से 28 सीटें गंवानी पड़ीं और इनमें सिंधिया की सीट भी शामिल थी.

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यह अपने आप में रोचक तथ्य है कि कांग्रेस ने शिवराज सिंह चौहान की भाजपा सरकार के अधूरे चुनावी वादों की याद दिलाकर विधानसभा चुनाव में जीत का रास्ता बनाया था और कभी कांग्रेस के वफादार सिपहसालार रहे सिंधिया ने कांग्रेस सरकार के चुनावी वादों को पूरा न किए जाने की बात उठाकर कमलनाथ को घेर लिया. उत्तर प्रदेश के कानपुर में एक कारोबारी पिता महेन्द्र नाथ और मां लीला नाथ के यहां जन्मे कमलनाथ ने देहरादून के प्रतिष्ठित दून स्कूल से शिक्षा ग्रहण की और कोलकाता के सेंट जेवियर्स कॉलेज से आगे की पढ़ाई की और उसके बाद राजनीति के सफर पर निकल पड़े. पूर्व केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ 1980 के बाद नौ बार संसद सदस्य रह चुके हैं.