ट्विटर पर 'कांग्रेस' हटाने के पीछे क्या है ज्योतिरादित्य सिंधिया की टैक्टिस?

ज्योतिरादित्य सिंधिया की नज़र 2020 में खाली होने वाली राज्यसभा सीट पर है, मध्यप्रदेश में तीन सीटें राज्यसभा से होगी.

ज्योतिरादित्य सिंधिया की नज़र 2020 में खाली होने वाली राज्यसभा सीट पर है, मध्यप्रदेश में तीन सीटें राज्यसभा से होगी.

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Sunil Chaurasia
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मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया( Photo Credit : https://twitter.com/JM_Scindia)

अपने ट्विटर प्रोफाइल से 'कांग्रेस' हटाने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया सुर्खियों में आ गए हैं. हालांकि इसे लेकर सिंधिया ने सफाई भी दे दी है लेकिन जानकर इसे सिंधिया की दबाव की राजनीति का हिस्सा कह रहे हैं. सूत्रों का मानना है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया की नज़र इसबार कुछ महीनों में खाली होने वाली राज्यसभा सीट पर है. मध्यप्रदेश में CM के फैसले के समय जो दबाव की राजनीति ज्योतिरादित्य सिंधिया ने खेली थी, वो खेल सिंधिया बीच-बीच मे खेलते नज़र आ जाते हैं. हालिया विवाद उनके ट्विटर पर प्रोफाइल से कांग्रेस हटाने के बाद शुरू हुआ, जिसको विवाद बनाकर न देखने की बात सिंधिया की तरफ से कही गयी लेकिन सिंधिया की राजनीति को समझने वाले लोग इसे दूसरा खेल बता रहे हैं.

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ज्योतिरादित्य सिंधिया की नज़र 2020 में खाली होने वाली राज्यसभा सीट पर है, मध्यप्रदेश में तीन सीटें राज्यसभा से होगी. जिसमें एक-एक सीट बीजेपी-कांग्रेस के पास जाएगी और अगर कांग्रेस कोशिश करे तो दूसरी सीट भी कांग्रेस के पास आ सकती है. इसमें से एक सीट मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की है. सिंधिया की नज़र उसी सीट पर है, सूत्रों मानना है कि इसी कारण सिंधिया फिर दबाव की राजनीति कर रहे हैं. सिंधिया की आलाकमान से ये शर्त है कि उन्हें प्रदेश अध्यक्ष का पद दिया जाए या राज्यसभा सांसद के बनाकर दिल्ली की राजनीति में सक्रिय भूमिका मिले. गौरतलब है कि सिंधिया ने इस तरह की राजनीति कई बार की है.

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मध्यप्रदेश में CM पर फैसले के वक्त भी सिंधिया ने राहुल गांधी के सामने CM बनाने को लेकर बहुत लॉबिंग की थी, जिसके बाद कई दौर की बैठक और मान-मनुव्वल के बाद कमलनाथ के नाम पर उन्होंने सहमति दी.

  • सरकार बनने के बाद भी अपने करीबियों को मंत्रिमंडल में ज्यादा संख्या मिले इसकी कोशिश भी उनकी तरफ से लगातार की गई.
  • मध्यप्रदेश में अध्यक्ष पद के लिए भी प्रदेश से लेकर दिल्ली तक उन्होंने अपने समर्थकों के ज़रिए दबाव बनाने की कोशिश जारी रखी.
  • सिंधिया को प्रदेश से दूर रखने के लिए प्रियंका गांधी के साथ पश्चिमी उत्तरप्रदेश का महासचिव भी बनाया गया लेकिन लोकसभा चुनाव में हार के बाद उन्होंने इस पद से इस्तीफ़ा दे दिया.
  • सिंधिया की फिर कोशिश अध्यक्ष की कुर्सी तक पहुंचने का है.

बहरहाल देखना होगा कि ज्योतिरादित्य सिंधिया की राजनीति कितनी चल पाती है.

Source : Mohit Raj Dubey

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