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मासूम की मौत पर कोर्ट ने लगाया डॉक्टर पर 5 लाख का जुर्माना

मेडिकल काउंसिल ने डॉ अंशुल मेहरा को चेतावनी दी थी कि यदि भविष्य में उनके द्वारा अवैध एमडी पीडियाट्रिशियन की डिग्री लिखी गई तो उनके विरुद्ध सख्त कार्रवाई की जाएगी.

Updated on: 10 Aug 2022, 12:08 AM

ग्वालियर:

ग्वालियर में दो निजी अस्पतालों के डॉक्टरों की वजह से साल 2013 में एक 3 साल की मासूम की मौत हो गई. 9 साल तक उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत यह मुकदमा चला अब कोर्ट ने पीड़ित पिता को राहत देते हुए निजी अस्पतालों पर 5-5 लाख का जुर्माना लगाया है. ‌ बावजूद इसके निजी अस्पताल अभी भी इसे मानने को तैयार नहीं. ग्वालियर के थाटीपुर इंदिरा नगर में रहने वाले मनोज उपाध्याय पेशे से वकील हैं. ये ज्यादातर अस्पतालों से संबंधित पीड़ितों के केस ही लड़ते हैं. मनोज को भी क्या मालूम था कि 1 दिन उन्हें अपनी ही बच्ची का केस लड़ना पड़ेगा. बात 25 जनवरी 2013 की है जब एडवोकेट मनोज की 3 साल की मासूम बेटी कुमारी गार्गी बीमार हो गई उन्होंने एक डॉक्टर को दिखाया तो उसे निमोनिया बताया गया. ‌

गार्गी को निमोनिया होने पर पिता ने अनुपम नगर की मेहरा बाल चिकित्सालय में बच्ची को भर्ती कराया.  डॉक्टर आरके मेहरा अस्पताल के संचालक थे और डॉ अंशुल मेहरा बच्चों के डॉक्टर की हैसियत से इलाज कर रहे थे. उपभोक्ता संरक्षण केस में कोर्ट ने यह माना कि डॉ अंशुल मेहरा स्वयं को एमडी पीडियाट्रिशियन यूएसए की एमडी डिग्री होना बताते हुए ग्वालियर में मरीजों का इलाज कर रहे थे जबकि यह डिग्री भारत में एमसीआई से मान्यता प्राप्त नहीं है. मासूम के पिता ने कोर्ट को यह बताया कि बेबी गार्गी को निमोनिया होते हुए भी मेहरा हॉस्पिटल में 1 घंटे के भीतर 500ml नॉरमल सलाइन की बोतल चढ़ा दी थी और स्वास्थ्य बिगड़ने पर भी आईवी फ्लूड दिया जाता रहा जिस कारण बेबी गार्गी के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ा 

डॉ. अंशुल मेहरा ने भर्ती के 3 घंटे बाद वेंटिलेटर की आवश्यकता बताते हुए मैस्कॉट हॉस्पिटल रेफर कर दिया था. मैस्कॉट हॉस्पिटल सिंधी कॉलोनी कंपू ग्वालियर के मालिक आलोक अग्रवाल थे एवं अस्पताल अधीक्षक के रूप में डॉक्टर सीमा शिवहरे व पीडियाट्रिशियन के रूप में डॉक्टर मनोज बंसल कार्य करते थे. मैस्कॉट हॉस्पिटल में बेबी गार्गी को पीआईसीयू में भर्ती किया गया था. मासूम के पिता मनोज ने जब सभी डॉक्टरों की जांच पड़ताल की तो पता चला कि मैस्कॉट हॉस्पिटल के आईसीयू में बीएचएमएस के फेल छात्र ड्यूटी डॉक्टर के रूप में कार्य कर रहे थे. शैलेंद्र साहू एवं  अवधेश दिवाकर को ड्यूटी डॉक्टर के रूप में सेवाएं ली गई थी. जबकि उक्त लोग होम्योपैथी कॉलेज में पढ़ रहे थे. 

शैलेंद्र साहू 3 वर्ष से लगातार होम्योपैथी में फेल हो रहा था और मैंस्कॉट हॉस्पिटल में आईसीयू में  ड्यूटी डॉक्टर का  कार्य कर रहा था. परिवादी द्वारा मध्य प्रदेश मेडिकल काउंसिल में डॉ अंशुल मेहरा की एमडी पीडियाट्रिशियन की डिग्री होने की शिकायत की गई थी तो स्वयं डॉ अंशुल मेहरा ने मध्य प्रदेश मेडिकल काउंसिल भोपाल के समक्ष क्षमा मांगी कि वह एमडी पीडियाट्रिशियन नहीं है और भविष्य में उक्त डिग्री नहीं लिखेंगे.

शिकायतकर्ता ने बताया कि  मेडिकल काउंसिल ने डॉ अंशुल मेहरा को चेतावनी दी थी कि यदि भविष्य में उनके द्वारा अवैध एमडी पीडियाट्रिशियन की डिग्री लिखी गई तो उनके विरुद्ध सख्त कार्रवाई की जाएगी. जबकि मेरा बाल चिकित्सालय में पदस्थ डॉ अंशुल मेहरा का कहना है कि उनके पास सभी डिग्रियां सही है और उन्होंने बच्ची का इलाज भी सही किया था. जब डॉ अंशुल मेहरा से उनकी डिग्री के बारे में पूछा गया तो उन्होंने अपनी एमबीबीएस से लेकर पीडियाट्रिशियन तक की डिग्री दिखा दी लेकिन उन्होंने यह बात स्वीकार की कि जो डिग्री यूएसए से पास की है वह भारत में एमसीआई द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं है. 

 मासूम के पिता मनोज उपाध्याय का कहना है कि विश्वविद्यालय थाना में इलाज में लापरवाही की शिकायत की तो डॉक्टर आरके मेहरा द्वारा मासूम की दूसरी ट्रीटमेंट सीट बनाकर पुलिस को दे दी थी. जिस पर पुलिस थाना विश्वविद्यालय ने डॉ अंशुल मेहरा , डॉ आरके गोयल के विरुद्ध धारा 420 ,465, 468 का अपराधिक प्रकरण पंजीबद्ध किया गया था एवं जांच में धारा 304  एवं अन्य धाराओं का इजाफा किया गया था. सीएमएचओ ग्वालियर को परिवादी द्वारा शिकायत की गई थी तो सीएमएचओ कमेटी द्वारा भी अंशुल मेहरा के द्वारा बेबी गार्गी की मृत्यु के पश्चात ट्रीटमेंट पेपर बनाना पाए थे एवं निमोनिया के रोगी को  आई वी फ्लूट दिए जाने की लापरवाही पाई थी. 

मासूम के निधन के बाद स्वास्थ्य विभाग ने मैस्कॉट हॉस्पिटल एवं रिसर्च सेंटर का लाइसेंस निरस्त कर दिया . परिवादी मनोज उपाध्याय ने जिला उपभोक्ता फोरम ग्वालियर के समक्ष 20 जनवरी 2015 को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत शिकायत 20 लाख क्षतिपूर्ति हेतु की प्रस्तुत की थी. प्रतिवादी चिकित्सक गणों द्वारा शिकायत का निराकरण करने में कई तरह से विलंब कार्य किया जाता रहा एवं ग्वालियर फोरम से प्रार्थी का प्रकरण शिवपुरी जिला आयोग के समक्ष ट्रांसफर कराया गया था एवं शिवपुरी जिला आयोग से भी न्याय न मिलने की शिकायत करते हुए माननीय उच्च न्यायालय ग्वालियर से शिकायत प्रकरण इंदौर ट्रांसफर कराया गया था. 

इंदौर में शिकायत को आंशिक रूप से सही पाते हुए डॉक्टर अंशुल मेहरा एवं मेहरा बाल चिकित्सालय पर ₹5 लाख क्षतिपूर्ति एवं ₹20 हजार रुपए तथा मेस्कॉर्ट हॉस्पिटल के मालिक आलोक अग्रवाल ,डॉ सीमा शिवहरे अस्पताल अधीक्षक एवं डॉ मनोज बंसल पीडियाट्रिशियन के विरुद्ध 5 लाख रुपए क्षतिपूर्ति व 20,000 रुपए शिकायत व्यय का आदेश दिया  गया. एक माह के भीतर 10 लाख रुपए की  राशि अदा न करने पर 6% वार्षिक ब्याज के भी आदेश दिए गए हैं.