समाज पर जब आपदा सूखा, बाढ़ अकाल के रूप में आती है तो यह बड़े वर्ग के लिए समस्या होती है, मगर एक वर्ग के लिए उत्सव से कम नहीं होती और वे इस मुसीबत के काल में भी अपने फायदे का रास्ता खोज लेते हैं. वर्तमान में भी देश कोरोना वायरस की महामारी से गुजर रहा है और कई लोग इस महामारी के बीच भी अपने लिए उत्सव के अवसर तलाशने में लगे हैं.
कोरोना वायरस की महामारी आपदा बनकर आई है. सरकार और तमाम दानदाता इस मौके पर जरूरतमंदों की मदद करने में लगे हैं. हर कोई अपने सामथ्र्य के अनुसार मुसीबत से घिरे लोगों की मदद को आतुर है. कई बड़ी कंपनियां आपदा ग्रस्त लोगों तक राहत पहुंचाने के लिए मध्यस्थों का सहारा ले रही हैं और यही मध्यस्थ इस अवसर का लाभ उठाने की कोशिश कर रहे हैं.
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गैर-सरकारी क्षेत्रों में काम करने वाले कई लोगों का अनुभव है कि देश में 25 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लॉकडाउन का ऐलान किया था. यह लॉकडाउन 21 दिन का रहा. मार्च माह में वित्त वर्ष यानि कि फाइनेंशियल ईयर की समाप्ति होती है और कई गैर सरकारी संगठनों को विभिन्न परियोजनाओं के लिए दानदाताओं द्वारा दी गई रकम को 31 मार्च तक खर्च करना था. मगर उनके पास राशि बची हुई थी, जो योजनाओं पर खर्च नहीं हो पाई थी.
लिहाजा उन्होंने दानदाता एजेंसी से कोरोना पीड़ितों की मदद के लिए शेष राशि को खर्च करने की अनुमति मांगी और इस आपदा के समय में दानदाता एजेंसी ने अनुमति दे दी. लॉकडाउन की अवधि के दौरान मार्च माह के महज छह दिनों में यानि किो 26 से 31 मार्च तक ये गैर सरकारी संगठन खासे सक्रिय रहे और जरुरतमंदों की मदद करते नजर आए. ताकि वो इतने कम समय में धन का सही उपयोग कर पाएं.
सामाजिक कार्यकर्ता मनीष राजपूत का कहते हैं कि "संकट के इस दौर में भी कई गैर सरकारी संगठन व सरकारी अमले से जुड़े कुछ लोग अपने फायदे का रास्ता खोज रहे हैं. उन्हें पीड़ित और परेशान वर्ग से कोई लेना देना नहीं है, अगर मतलब है तो केवल अपने फायदे से. यही कारण है कि कोरोना के प्रभावितों की मार्च माह में तो लोगों ने खूब मदद की, मगर अप्रैल माह में गिनती के लोग ही मदद करते नजर आए."
केंद्र सरकार हो अथवा राज्य सरकार दोनों सरकारों ने प्रभावित वर्ग की मदद की कार्य योजना बनाई है. सरकार की इस योजना में कई गैर सरकारी संगठन अपनी हिस्सेदारी चाहते हैं और सभी अपने को विशेषज्ञ बताकर समाज का सबसे बड़ा पैरोकार प्रचारित कर रहे हैं. सरकारों पर सवाल उठा रहे है, उनकी कोशिश यह है कि सरकार जरूरतमंदों की मदद का काम उनके हाथ दे दे, लेकिन इसके बाद क्या होगा यह सबको पता है.
जन स्वास्थ्य संगठन के अमूल्य निधि इस बात से इंकार नहीं करते हैं कि "कोई भी आपदा किसी के लिए हादसा होती है तो किसी के लिए अवसर. पीड़ित को खड़े होने में दशकों लग जाते है तो अवसरवादियों को एक बेहतर मौका मिल जाता है. इसलिए सरकार की जिम्मेदारी है कि वह अपनी भूमिका को निभाए और जो तथाकथित समाजसेवी हैं उनको सरकार की भूमिका में न आने दे. कोरोनावायरस के प्रभावितों की मदद के नाम पर भी कई लोग खुद को सरकार की भूमिका मे दर्शाते नजर आएंगे, जबकि ऐसा होना नहीं चाहिए."
जानकारों की माने तो हर तरफ गैर सरकारी संगठनों की भरमार है जो अपने को विभिन्न विधाओं का विशेषज्ञ करार देने से नहीं चूकते. वे सरकार की योजनाओं के साथ-साथ विभिन्न दानदाता एजेंसियों से भी योजनाएं मंजूर करा लेते हैं और इसके लिए उन्हें करोड़ों की रकम भी मिलती है. मगर जमीन पर क्या होता है या योजना का लाभ प्रभावित वर्ग को कितना मिलता है इसका कोई लेखा-जोखा नहीं होता, क्योंकि सोशल ऑडिट की परंपरा हमारे यहां नहीं है.
Source : IANS