वन अपराध रोकने में मददगार श्वानों की दक्षता बढ़ाने की कोशिश
कुत्तों का उपयोग पुलिस और नारकोटिक्स विभाग करते हैं, मगर मध्य प्रदेश में वन अपराधों को रोकने और अपराधियों को पकड़ने के लिए कुत्तों की मदद ली जा रही है.
भोपाल:
मध्य प्रदेश के वन क्षेत्रों में लगातार बढ़ रहा अपराध चुनौती बनता जा रहा है. एक तरफ जहां वन्य प्राणियों का शिकार हो रहा है, वहीं की जंगल कटाई का दौर भी जारी है. इस अपराधों को रोकने के लिए श्वान (कुत्ता) ज्यादा मददगार होते हैं, इसीलिए इन्हें विशेष तौर पर प्रशिक्षित किया जा रहा है. आमतौर पर कुत्तों का उपयोग पुलिस और नारकोटिक्स विभाग करते हैं, मगर मध्य प्रदेश में वन अपराधों को रोकने और अपराधियों को पकड़ने के लिए कुत्तों की मदद ली जा रही है. राज्य में सबसे पहले दो कुत्ते ट्रैफिक इंडिया ने उपलब्ध कराए और उसके बाद सेविंग टाइगर के जरिए कुछ कुत्ते मिले. यह कुत्ते खास तौर पर प्रशिक्षित किए जाते हैं, ताकि वे वन्य प्राणियों के अवयवों को खोजने में महारत हासिल कर लें.
उप वन संरक्षक (वन्य-प्राणी) रजनीश सिंह ने बताया कि मध्यप्रदेश टाइगर फाउण्डेशन सोसायटी भोपाल, सतपुड़ा टाइगर रिजर्व होशंगाबाद एवं सेविंग टाइगर सोसायटी कोलकाता के संयुक्त प्रयासों से 16 श्वान दल का रिफ्रेशर कोर्स पचमढ़ी में दो सत्रों में आयोजित किया गया. सिंह के मुताबिक, इस रिफ्रेशर कोर्स के आयोजित करने का मकसद है, जो भी प्रशिक्षक आते हैं वह कुत्तों की समस्याओं का तो पता करते ही हैं, साथ ही उनके स्वास्थ्य का परीक्षण हो जाता है. इस अवधि में हर श्वान की क्षमता के बारे में पता चल जाता है और उसी आधार पर उसे प्रशिक्षित किया जाता है.
वन विभाग के प्रदेश के सभी टाइगर रिजर्व और संवेदनशील वन वृत्तों में तैनात श्वान दलों को रिफ्रेशर कोर्स के जरिये प्रशिक्षित कराया गया है. श्वान एवं इनके हैण्डलर, सहायक हैण्डलर को श्वान प्रशिक्षक द्वारा उनकी क्षमता उन्नयन करते हुए आरोपियों और वन्य-प्राणी अवयवों को ट्रैक करने की कला का विशेष प्रशिक्षण दिया गया. बताया गया है कि वन विभाग में 11 बेल्जियम मेलोनोइस और छह जर्मन शेफर्ड प्रजाति के श्वान पिछले एक दशक से कार्यरत हैं. श्वान दल वन्य-प्राणी अपराध रोकथाम के लिये महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. इसलिए इनका समय-समय पर प्रशिक्षण आवश्यक होता है.
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