मध्य प्रदेश को अपना नया गढ़ बनाने की कोशिश में नक्सली, रच रहे साजिश
जब-जब नक्सली कमजोर पड़ते दिखे हैं, वो कोई ना कोई नया दांव चलते रहे हैं. ये झारखंड और छत्तीसगढ़ में पहले भी दिख चुका है, अब मध्य प्रदेश में भी देखने और सुनने को मिल रहा है.
highlights
- छत्तीसगढ़ में तो ताबड़तोड़ नक्सली सरेंडर कर रहे हैं
- नौबत ये है कि नक्सलियों को दस्ते के लिए लोग नहीं मिल रहे हैं
नई दिल्ली:
जब-जब नक्सली कमजोर पड़ते दिखे हैं, वो कोई ना कोई नया दांव चलते रहे हैं. ये झारखंड और छत्तीसगढ़ में पहले भी दिख चुका है,अब मध्य प्रदेश में भी देखने और सुनने को मिल रहा है. कहा जा रहा है कि नक्सली मध्य प्रदेश में अपनी जमीन मजबूत करने को लेकर नया माइंड गेम खेल रहे हैं.बालाघाट में 3 कमांडरों के एनकाउंटर के बाद ये बात सामने है कि नक्सली रिश्तों की डोर से स्थानीय लोगों का भरोसा जीत रहे हैं. आदिवासी लड़कियों से शादी कर लोगों को भावनात्मक रूप से जुड़ने का दिखावा कर रहे हैं, ताकि लोकल का साथ और समर्थन मिल सके. अब सवाल है कि आखिर नक्सली ये नया पैंतरा क्यों चल रहे हैं? तो दरअसल झारखंड,छत्तीसगढ़ सरीखे नक्सल प्रभावित राज्यों में अब लोग नक्सलियों से कट रहे हैं, स्थानीय लोगों का साथ नहीं मिल रहा है.
छत्तीसगढ़ में तो ताबड़तोड़ नक्सली सरेंडर कर रहे हैं. नौबत ये है कि नक्सलियों को दस्ते के लिए लोग नहीं मिल रहे हैं. इससे नक्सलियों में बौखलाहट है, इसीलिए वो मध्य प्रदेश को एक नए ठिकाने के तौर पर देख रहे हैं और वहां अपनी गतिविधियां बढ़ा रहे हैं. चूंकि बालाघाट ट्राई जंक्शन है, तीन राज्यों की सीमाएं यहां मिलती हैं,ऐसे में प्रभाव वाले इलाकों से यहां एंट्री लेना आसान है. नक्सली बालाघाट और अमरकंटक को लाल आतंक का गढ़ बनाना चाहते हैं. सबसे बड़ा खतरा कान्हा नेशनल पार्क के बाघ और सैलानियों को है, क्योंकि कान्हा के ही घने जंगलों में नक्सलियों की मौजूदगी है. ये कुछ इलाकों को पनाहगार के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं, ऐसे में ना सिर्फ बाघों की सुरक्षा को लेकर सवाल हैं,बल्कि पर्यटकों की जान को भी खतरा है. हालांकि जिस मंसूबे को लेकर नक्सली मध्य प्रदेश में दाखिल हुए थे,वो इसमें कामयाब होते नहीं दिख रहे हैं.
उनकी संख्या जरुर बढ़ी है, लेकिन दायरा नहीं बढ़ पाया है. सुरक्षा बलों ने उनके आने-जाने के रास्ते पर पहरा बढ़ा दिया है, जिससे आसानी से किसी वारदात को अंजाम नहीं दे पा रहे. इसीलिए वो अब स्थानीय लोगों पर जाल डाल रहे हैं,ताकि उनका साथ मिल सके. हालांकि ये नई बात नहीं है कि नक्सली स्थानीय लोगों को इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन तब और अब में एक फर्क ये सामने आया है कि पहले डर दिखाकर गांव वालों को अपने साथ आने पर मजबूर करते थे,अब भावनात्मक तौर जुड़ने की साजिश रच रहे हैं.
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