मध्य प्रदेश: नर्मदा घाटी के हर गांव में सन्नाटा, हर चेहरे पर मायूसी
मध्यप्रदेश की नर्मदा घाटी के गांवों में सन्नाटा पसरा हुआ है, हर किसी के चेहरे पर मायूसी छाई हुई है। कोई अपने घर की छत पर, तो कोई मंदिर में और कोई पड़ोसी के ऊंचे मकान में शरण लेकर अपनी ओर आते नर्मदा के पानी को टकटकी लगाए देख रहा है।
highlights
- रविवार को सरदार सरोवर बांध देश को समर्पित करेंगे पीएम मोदी
- मध्य प्रदेश में जल सत्याग्रह पर बैठी हैं स्थानीय महिलाएं
- सारा इलाका आने वाले दिनों में नर्मदा नदी की भेंट चढ़ने वाला है: अमूल्य निधि (सामाजिक कार्यकर्ता)
नई दिल्ली:
मध्यप्रदेश की नर्मदा घाटी के गांवों में सन्नाटा पसरा हुआ है, हर किसी के चेहरे पर मायूसी छाई हुई है। कोई अपने घर की छत पर, तो कोई मंदिर में और कोई पड़ोसी के ऊंचे मकान में शरण लेकर अपनी ओर आते नर्मदा के पानी को टकटकी लगाए देख रहा है।
ये सरदार सरोवर के सताए लोग हैं। ये लोग केंद्र सरकार के साथ राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से भी निराश हो चुके हैं। उन्हें लगने लगा है कि 'मेरा कातिल ही, मेरा मुंसिफ है, मेरे हक में क्या फैसला देगा।'
बड़वानी जिले के छोटा बरदा गांव के 48 वर्षीय नरेंद्र यादव की आंखों में आने वाले दिनों का संकट साफ पढ़ा जा सकता है, उसके बावजूद वे किसी भी स्थिति में अपना गांव, घर, द्वार छोड़ने को तैयार नहीं हैं।
वे बताते हैं कि उनका 13 सदस्यों का भरा-पूरा परिवार है, उनके गांव की निचली बस्ती में रहने वालों के मकान नर्मदा के बढ़ते जलस्तर के कारण पानी से घिरने लगे हैं, मगर उन्होंने घर नहीं छोड़ा है।
यादव कहते हैं कि उनके लिए केंद्र और राज्य सरकार, दोनों मर चुकी है, इसलिए उन्होंने शुक्रवार को मुंडन कराया, ब्राह्मण भोज करने के बाद दोनों सरकारों के लिए पिंडदान भी करेंगे। सरकार वह होती है जो अपनी जनता की जान बचाए, मगर ये दोनों सरकारें ऐसी हैं जो हजारों परिवारों की जान लेने को तैयार हैं।
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इसी तरह सिमलदा गांव की सरस्वती बाई कहती हैं कि नर्मदा तो उनकी मां है, वह उनकी गोद में समा जाएंगी, मगर जाते-जाते वह उन लोगों को जो इसके लिए जिम्मेदार हैं, उन्हें ऐसी बददुआ देकर जाएंगी कि उनका जीवन नरक बन जाएगा।
सरस्वती आगे कहती हैं कि घर, गांव छोड़ना किसे अच्छा लगता है, मगर सरकार उन्हें ऐसा करने को मजबूर कर रही है। सरकार ने न तो पुनर्वास का इंतजाम किया है और न ही मुआवजा ही दिया है। गांव छोड़ने से अच्छा है कि नर्मदा मैया की गोद में समा जाएं।
अपने जीवन पर गहराए संकट को करीब से देख रहे लोगों ने नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेत्री मेधा पाटकर के नेतृत्व में नर्मदा घाट पर शुक्रवार से सत्याग्रह शुरू कर दिया है। इस घाट पर धीरे-धीरे जलस्तर बढ़ रहा है।
मेधा कहती हैं कि यह प्राकृतिक आपदा नहीं है, जलस्तर बारिश की वजह से नहीं बढ़ा है, बल्कि मध्यप्रदेश सरकार ने जबलपुर के बरगी बांध सहित अन्य बांधों से पानी छोड़कर गुजरात के सरदार सरोवर तक पहुंचाया है।
उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने प्रदेश के लोगों को मारकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुश करने में लगे हैं। शायद ही दुनिया में ऐसा कोई मुख्यमंत्री हुआ हो, जिसने अपने राज्य की जनता को डुबोकर अपने आका को खुश किया हो।
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सामाजिक कार्यकर्ता अमूल्य निधि के मुताबिक, धार और बड़वानी जिले के कई गांव ऐसे हैं, जिनका सारा कारोबार दूसरे जिले के बाजारों से चलता है। उदाहरण के तौर पर धार जिले के चिखल्दा और निसरपुर के बाजार में बड़वानी के लोग आते हैं।
इसी तरह बड़वानी के अंजड़ में धार के लोगों का आना होता है। यह सारा इलाका आने वाले दिनों में नर्मदा नदी की भेंट चढ़ने वाला है।
नर्मदा नदी के बढ़ते जलस्तर के साथ गांव, बाजार, मंदिर, मस्जिद, मजार, हजारों पेड़, महात्मा गांधी के अस्थि कलश का राजघाट और न जाने कितने धार्मिक स्थल धीरे-धीरे डूब में आते जा रहे हैं।
इस नजारे को देखकर उस इलाके के लोगों की आंखों में आंसू भर आते हैं और आसमान व नर्मदा मैया की तरफ देखकर प्रार्थना करने लगते हैं कि 'तू ही हमारी मां है, क्या हमारी जान ले लेगी?
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