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उज्जैन महाकाल मंदिर में आस्था का सैलाब, नागचंद्रेश्वर दर्शन में श्रद्धालुओं की भीड़

हिंदू धर्म में सदियों से नागों की पूजा करने की परंपरा रही है. हिंदू परंपरा में नागों को भगवान शिव का आभूषण भी माना गया है. भारत में नागों के अनेक मंदिर हैं, इन्हीं में से एक मंदिर है उज्जैन स्थित नागचंद्रेश्व...

Updated on: 02 Aug 2022, 03:59 PM

highlights

  • साल में सिर्फ एक बार खुलता है नागचंद्रेश्वर मंदिर
  • सिर्फ नाग पंचमी पर खुलते हैं मंदिर के कपाट
  • दर्शन के बाद सर्पदोष से मुक्त हो जाता है व्यक्ति

उज्जैन:

हिंदू धर्म में सदियों से नागों की पूजा करने की परंपरा रही है. हिंदू परंपरा में नागों को भगवान शिव का आभूषण भी माना गया है. भारत में नागों के अनेक मंदिर हैं, इन्हीं में से एक मंदिर है उज्जैन स्थित नागचंद्रेश्वर का, जो कि उज्जैन के प्रसिद्ध महाकाल मंदिर की दूसरी मंजिल पर स्थित है. पूरी दुनिया में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें विष्णु भगवान की जगह भगवान भोलेनाथ सर्प शय्या पर विराजमान हैं. मंदिर में स्थापित प्राचीन मूर्ति में शिवजी, गणेशजी और मां पार्वती के साथ दशमुखी सर्प शय्या पर विराजित हैं. शिवशंभु के गले और भुजाओं में भुजंग लिपटे हुए हैं. नागचंद्रेश्वर मंदिर की खास बात यह है कि यह मंदिर साल में सिर्फ एक दिन नागपंचमी पर ही दर्शन के लिए खोला जाता है. आज ये मंदिर भक्तों के दर्शन के लिए खोला गया है.

मंदिर में रहते हैं स्वयं नागराज तक्षक

ऐसी मान्यता है कि नागराज तक्षक स्वयं मंदिर में रहते हैं. नागचंद्रेश्वर मंदिर में 11वीं शताब्दी की एक अद्भुत प्रतिमा है, इसमें फन फैलाए नाग के आसन पर शिव-पार्वती बैठे हैं. कहते हैं यह प्रतिमा नेपाल से यहां लाई गई थी. उज्जैन के अलावा दुनिया में कहीं भी ऐसी प्रतिमा नहीं है. मंदिर पुजारी का कहना है की इस प्रतिमा पर जो भाषा लिखी है वो समझ नहीं आती सिर्फ़ नेपाल लिखा हुआ ही समझ आता है इसलिए कहा जाता है की ये प्रतिमा नेपाल से आयी थी.

क्या है पौराणिक मान्यता

सर्प राज तक्षक ने शिवशंकर को मनाने के लिए घोर तपस्या की थी। तपस्या से भोलेनाथ प्रसन्न हुए और उन्होंने सर्पों के राजा तक्षक नाग को अमरत्व का वरदान दिया. मान्यता है कि उसके बाद से तक्षक राजा ने प्रभु के सान्निध्य में ही वास करना शुरू कर दिया. लेकिन महाकाल वन में वास करने से पूर्व उनकी यही मंशा थी कि उनके एकांत में विघ्न न हो, अत: वर्षों से यही प्रथा है कि मात्र नागपंचमी के दिन ही वे दर्शन को उपलब्ध होते हैं. शेष समय उनके सम्मान में परंपरा के अनुसार मंदिर बंद रहता है. नाग पंचमी आरंभ होने पर रात 12:00 बजे मंदिर के पट खुलते हैं और दूसरे दिन रात 12:00 बजे अगले 1 वर्ष तक के लिए बंद हो जाते हैं.

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इस मंदिर में दर्शन करने के बाद व्यक्ति किसी भी तरह के सर्पदोष से मुक्त हो जाता है, इसलिए नागपंचमी के दिन खुलने वाले इस मंदिर के बाहर भक्तों की लंबी कतार लगी रहती है. यह मंदिर काफी प्राचीन है. माना जाता है कि परमार राजा भोज ने 1050 ईस्वी के लगभग इस मंदिर का निर्माण करवाया था. इसके बाद सिंधिया घराने के महाराज राणोजी सिंधिया ने 1732 में महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था. उस समय इस मंदिर का भी जीर्णोद्धार हुआ था. सभी की यही मनोकामना रहती है कि नागराज पर विराजे शिवशंभु की उन्हें एक झलक मिल जाए. लगभग दो लाख से ज्यादा भक्त एक ही दिन में नागदेव के दर्शन करते हैं.