MP का ये रेलवे ट्रैक बना जानवरों का काल, 7 बाघ, 14 तेंदुए और एक भालू की मौत

मध्य प्रदेश के बरखेड़ा-बुदनी खंड का 26.50 किलोमीटर लंबा ट्रैक, जिसकी लागत 991.60 करोड़ रुपये है, को 2011-12 में स्वीकृति मिली थी. यह ट्रैक रातापानी वन्यजीव अभयारण्य और टाइगर रिजर्व के क्षेत्र में स्थित है, जिसके कारण यहां अब तक कई जानवर अपनी जान गंवा चुके हैं.

मध्य प्रदेश के बरखेड़ा-बुदनी खंड का 26.50 किलोमीटर लंबा ट्रैक, जिसकी लागत 991.60 करोड़ रुपये है, को 2011-12 में स्वीकृति मिली थी. यह ट्रैक रातापानी वन्यजीव अभयारण्य और टाइगर रिजर्व के क्षेत्र में स्थित है, जिसके कारण यहां अब तक कई जानवर अपनी जान गंवा चुके हैं.

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Garima Sharma
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Barkheda Budni Railway of Madhya Pradesh

MP का ये रेलवे ट्रैक बना जानवरों का काल, 7 बाघ, 14 तेंदुए और एक भालू की मौत

मध्य प्रदेश की बरखेड़ा-बुदनी रेलवे परियोजना ने हाल ही में वन्यजीवों के संरक्षण को लेकर गंभीर चिंता पैदा की है. 2011-12 में 991.60 करोड़ रुपये की लागत से स्वीकृत इस 26.50 किलोमीटर लंबे ट्रैक के निर्माण के साथ-साथ रातापानी वन्यजीव अभयारण्य और टाइगर रिजर्व में वन्यजीवों की सुरक्षा को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं. 

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तेंदुओं और बाघों की मौतें

2015 से लेकर अब तक इस रेलवे ट्रैक पर 14 तेंदुए, सात बाघ और एक भालू की मौत हो चुकी है. हाल ही में 14-15 जुलाई की रात को एक ट्रेन की चपेट में आने से तीन बाघ शावक घायल हुए, और बाद में उनकी मृत्यु हो गई. इस घटना ने वन्यजीव विभाग को इस परियोजना के निर्माण में उठाए गए कई लाल झंडों की ओर ध्यान आकर्षित किया है. 

सुरक्षा उपायों की कमी

वन्यजीव विभाग की एक समीक्षा बैठक में बताया गया कि रेलवे लाइन के निर्माण में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड द्वारा लगाए गए कई शर्तों का पालन नहीं किया गया. अंडरपास का अनुचित निर्माण एक प्रमुख मुद्दा था, जो जानवरों के लिए सुरक्षित मार्ग प्रदान करने के लिए बनाया गया था. विभाग का कहना है कि ये अंडरपास स्थानीय जल निकासी प्रणालियों के ऊपर स्थित हैं, जो मानसून के दौरान जलमग्न हो जाते हैं. इससे जानवरों को वैकल्पिक मार्ग खोजने पर मजबूर होना पड़ता है, जो अक्सर उन्हें रेलवे ट्रैक पर ले जाता है.

जलभराव और गति सीमा

समीक्षा बैठक में यह भी उजागर किया गया कि पटरियों के पास जलभराव क्षेत्र जानवरों को आकर्षित कर रहा है, जिससे टकराव का खतरा बढ़ जाता है. इसके साथ ही, ट्रेनों की गति सीमा भी एक विवाद का विषय बनी हुई है. विभाग का कहना है कि वन क्षेत्रों में गुजरने वाली ट्रेनों के लिए स्वीकृत गति सीमा 60 किलोमीटर प्रति घंटा है, जबकि रेलवे अधिकारियों द्वारा लगाए गए संकेत बोर्ड 75 और 65 किलोमीटर प्रति घंटे की गति दिखाते हैं, जो सुरक्षा उपायों का उल्लंघन है.

ट्रैक रखरखाव की समस्या

ट्रैक के रखरखाव का मुद्दा भी उठाया गया है. फील्ड स्टाफ द्वारा निरीक्षण में पता चला कि पटरियों के बीच की घास दृश्यता में बाधा डाल रही है, जिससे ट्रेन के पायलटों के लिए वन्यजीवों को देखना मुश्किल हो जाता है. इसके अलावा, पटरियों के पास कचरे के जमा होने से भी समस्या बढ़ रही है, क्योंकि यह जानवरों को आकर्षित कर रहा है.

क्या हो रहा है आगे?

समीक्षा बैठक में रेलवे अधिकारियों को कमियों के बारे में सूचित किया गया है, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं. मुख्य वन संरक्षक ने बताया कि परियोजना पर एक विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है. ओवरब्रिज बनाने का काम शुरू हो गया है, लेकिन अभी भी क्षेत्र में जानवरों की आवाजाही के लिए उपयुक्त उपायों की आवश्यकता है.

 

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