2023 के चुनाव का ट्रेलर होगा निकाय का परिणाम! जिसका बढ़ेगा जनाधार वही होगा मजबूत
निकाय के नतीजों के बाद 2023 के चुनाव होंगे. हार-जीत से बड़ा संदेश जाएगा जिसका जनाधार बढ़ेगा, 2023 में वो मजबूत होगा. इसके साथ ही उन मुद्दों की परीक्षा होगी, जिनके नाम पर पार्टियों ने वोट मांगे हैं.
नई दिल्ली:
वैसे तो मध्य प्रदेश में निकायों के नतीजों के करीब डेढ़ साल बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं लेकिन निकायों के नतीजों को 2023 का ट्रेलर माना जा रहा है.अब सवाल है कि आखिर इसके पीछे वजह क्या है? दरअसल निकाय के नतीजों के बाद 2023 के चुनाव होंगे. हार-जीत से बड़ा संदेश जाएगा जिसका जनाधार बढ़ेगा, 2023 में वो मजबूत होगा. इसके साथ ही उन मुद्दों की परीक्षा होगी, जिनके नाम पर पार्टियों ने वोट मांगे हैं. जनता के मूड का भी पता चल जाएगा. खास बात यह है कि ओबीसी आरक्षण से नफा-नुकसान का पता चल सकेगा. जहां कमजोर रहेंगे, वहां मेहनत का मौका मिलेगा. इतना ही नहीं किसका चेहरा कितना प्रभावी है, ये भी पता चलेगा.
पार्टियों से ज्यादा दिग्गज नेताओं के लिए निकायों में जीत प्रतिष्ठा का सवाल
आम तौर पर लोकल बॉडी के चुनाव विधानसभा चुनाव के बाद होते हैं, लेकिन मध्य प्रदेश में शायद ऐसा पहली बार हुआ है कि विधानसभा चुनाव से ठीक पहले इलेक्शन हुए हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि नतीजों से सियासी दलों को ऑक्सीजन मिलेगी. 2023 के चुनाव में वो दम खम के साथ तैयारियों में जुट सकेंगे. इस बार के निकाय चुनाव कई मायनों में खास रहे हैं. पहला तो ये कि इलेक्शन के दौरान विधानसभा चुनाव जैसा माहौल दिखा. दूसरा ये कि पार्टियों ने पूरी तैयारी और दम के साथ चुनाव लड़ा. निकायों में जीत कितनी अहम है, इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि शिवराज और कमलनाथ ने पूरा प्रदेश नाप दिया. अमूमन निकाय चुनाव में बड़े नेता एक या दो ही जगह जा पाते हैं, लेकिन शिवराज और कमलनाथ हर सीट पर गए, साथ ही रोड शो भी किए.
दूसरे नेताओं की भी परीक्षा
कहा तो ये भी जा रहा है कि दूसरे नेताओं की भी परीक्षा होगी. क्षेत्रीय क्षत्रप बड़े बड़े दावे करते रहे हैं. ऐसे में अगर उनके इलाके में पार्टी का प्रदर्शन खराब रहा, तो उनके कद पर भी आंच आएगी. सवाल यह भी है कि आखिर निकाय और पंचायत चुनाव पर पार्टियों का इतना फोकस क्यों रहा? तो सीधे तौर पर इसके पीछे सियासी जमीन बड़ी वजह है. दरअसल पंचायत अध्यक्ष का बड़ा रोल होता है. जिसके समर्थक ज्यादा होंगे, उसका दबदबा उतना बड़ा होगा, गांवों में पैठ बढ़ाने में आसानी होगी. इससे 2023 में चुनावी राह आसान होगी. इसी तरह निकायों में बढ़त से शहरी मतदाता सधेंगे. शहरों में माहौल बनाने में आसानी होगी. शहरों में छोटे-छोटे काम करने में आसानी होती है. गली मोहल्लों में काम से फायदा होता है. वोटरों का रुख बदलता हैऔर चूंकि निकाय चुनाव के समानांतर विधानसभा चुनाव की भी तैयारी हो रही है,ऐसे में अभी के नतीजों का प्रभाव भी उस पर पड़ेगा. इसीलिए निकाय चुनाव में पार्टियों ने हर इलाके में पूरा ज़ोर लगाया.
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