नसबंदी: पुरुषों की हिचक बरकरार, महिलाओं पर परिवार नियोजन का बड़ा भार
जानकारों का कहना है कि समाज में जागरूकता की कमी और पुरुष प्रधान मानसिकता के कारण राज्य में परिवार नियोजन ऑपरेशनों के संदर्भ में गंभीर लैंगिक अंतर बरकरार है.
इंदौर:
मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) में पुरुष नसबंदी का लक्ष्य पूरा न किये जाने की स्थिति में स्वास्थ्य विभाग के बहुउद्देशीय कार्यकर्ताओं (एमपीडब्लयू) के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के प्रति चेताने वाले निर्देशों को विवाद बढ़ने के बाद भले ही निरस्त कर दिया हो, लेकिन सरकारी आंकड़े तसदीक करते हैं कि परिवार नियोजन ऑपरेशन के जरिये सूबे की बढ़ती आबादी पर नकेल कसने की मुहिम में पुरुषों की भागीदारी लगातार घटती जा रही है. आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में वित्तीय वर्ष 2015-16 में 9,957, 2016-17 में 7,270, 2017-18 में 3,719 और 2018-19 में 2,925 पुरुष नसबंदी ऑपरेशन किये गये थे. समाप्ति की ओर बढ़ रहे मौजूदा वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान 30 जनवरी तक की स्थिति के मुताबिक राज्य में 2,514 पुरुष नसबंदी ऑपरेशन किये गये.
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जानकारों का कहना है कि समाज में जागरूकता की कमी और पुरुष प्रधान मानसिकता के कारण राज्य में परिवार नियोजन ऑपरेशनों के संदर्भ में गंभीर लैंगिक अंतर बरकरार है. दुनिया भर में सबसे ज्यादा परिवार नियोजन ऑपरेशनों को अंजाम देने का दावा करने वाले प्रसिद्ध नसबंदी विशेषज्ञ डॉ. ललितमोहन पंत ने रविवार को 'पीटीआई-भाषा' को बताया कि गुजरे 38 सालों के दौरान मैंने कुल 3.85 लाख नसबंदियां की हैं. लेकिन इनमें पुरुषों के केवल 13,600 परिवार नियोजन ऑपरेशन शामिल हैं. यानी डॉ. पंत के किये हर 100 नसबंदी ऑपरेशनों में केवल तीन से चार पुरुष परिवार नियोजन सर्जरी के लिये तैयार हुए.
64 वर्षीय सर्जन प्रदेश सरकार के स्वास्थ्य विभाग में बतौर सर्जन कार्यरत हैं. उन्होंने कहा, 'ज्यादातर पुरुषों को अब भी वहम है कि अगर वे नसबंदी ऑपरेशन करायेंगे तो उनकी शारीरिक ताकत और मर्दानगी कम हो जायेगी, जबकि हकीकत में ऐसा कुछ भी नहीं होता. मैं खुद करीब 25 साल पहले अपना नसबंदी ऑपरेशन करा चुका हूं और आज भी दिन में करीब 12 घंटे काम करता हूं.' पंत ने बताया कि कई बार महिलाओं को इसलिये भी नसबंदी ऑपरेशन कराना पड़ता है क्योंकि उनके पति यह ऑपरेशन कराने को तैयार नहीं होते.
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वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक, तब प्रदेश में 3.76 करोड़ पुरुष और 3.50 करोड़ महिलाएं थीं. राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की मध्यप्रदेश इकाई की ओर से 11 फरवरी को परिपत्र जारी कर सूबे के आला अफसरों को ताकीद की गयी थी कि स्वास्थ्य विभाग के ऐसे बहुउद्देशीय कार्यकर्ताओं (एमपीडब्ल्यू) की पहचान की जाये जो मौजूदा वित्तीय वर्ष में नसबंदी के इच्छुक एक भी पुरुष का 'मोबिलाइजेशन' (इच्छुक हितग्राहियों को नसबंदी ऑपरेशन कराने के लिये प्रेरित करना) नहीं कर सके हों. परिपत्र में ऐसे 'अक्रियाशील' कार्यकर्ताओं का वेतन रोकने और उन्हें अनिवार्य सेवानिवृत्ति दिये जाने के प्रस्ताव भिजवाने के लिये भी कहा गया था. हालांकि, विवाद बढ़ने के बाद प्रदेश सरकार ने इस परिपत्र को 10 ही दिन के भीतर 21 फरवरी (शुक्रवार) को निरस्त कर दिया था.
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