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MP में BJP-Cong WAR: कॉलेज सिलेबस में बड़ा बदलाव, शंकराचार्य, दीनदयाल और वाजपेयी Syllabus से हटे

मध्य प्रदेश की सत्ता पर कमलनाथ सरकार के काबिज के बाद प्रदेश में कई बदलाव देखने को मिल रहे हैं. इसी कड़ी में सूबे की सरकार ने अब कॉलेजों के पाठ्यक्रम में बड़ा बदलाव किया है.

Updated on: 20 Jul 2019, 12:16 PM

नई दिल्ली:

मध्य प्रदेश की सत्ता पर कमलनाथ सरकार के काबिज के बाद प्रदेश में कई बदलाव देखने को मिल रहे हैं. इसी कड़ी में सूबे की सरकार ने अब कॉलेजों के पाठ्यक्रम में बड़ा बदलाव किया है. मध्यप्रदेश में पहली बार कॉलेज के स्टूडेंट बांग्लादेश क्रांति और सेना का योगदान जैसे विषयों को पढ़ेंगे. उच्च शिक्षा मंत्री जीतू पटवारी पहले ही सिलेबस में इंदिरा गांधी दर्शन शामिल करने का ऐलान कर चुके हैं.

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इसके अलावा उच्च शिक्षा विभाग ने सत्र 2019-20 के गतिविधि कैलेंडर से आदि शंकराचार्य और दीनदयाल उपाध्याय के आयोजनों को हटा दिया है. इसके अलावा पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी व्यक्तित्व चर्चा का विषय भी हटाया गया है. पंडित दीनदयाल उपाध्याय का एकात्मवाद विषय भी अब सिलेबस में नहीं रहेगा.

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अब इस प्रकार होगा कॉलेज के छात्रों का सिलेबस

  • जुलाई में शिष्टाचार सभ्यता और सौम्य व्यवहार पढेंगे छात्र.
  • अगस्त में राष्ट्रीय आंदोलन स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और खेल दिवस.
  • सितंबर में विद्यार्थी जीवन में लाइब्रेरी की आवश्यकता और आतंकवाद.
  • अक्टूबर में गांधी दर्शन, गांधी और आत्मनिर्भरता, गांधी युग और इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि पर राष्ट्रीय एकता दिवस का आयोजन.
  • नवंबर में मध्य प्रदेश का स्थापना दिवस मौलाना आजाद बाल दिवस और संविधान की जानकारी.
  • दिसंबर में भारतीय सेना अर्धसैनिक बल और उनका योगदान मानव अधिकार बांग्लादेश क्रांति.
  • जनवरी में राज्य की सरकार लोक कल्याणकारी संकल्पना स्वामी विवेकानंद सिख धर्म गुरु और उनका बलिदान.
  • फरवरी में भारत का अंतरिक्ष अनुसंधान रक्षा अनुसंधान रक्षा विशेषज्ञता.
  • मार्च में भारतीय दर्शन महिला सशक्तिकरण.
  • अप्रैल मई और जून में परीक्षाएं आगामी गतिविधियों का निर्धारण.

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गौरतलब है कि इससे पहले कमलनाथ सरकार ने हाल ही में कॉलेज सिलेबस से कारगिल युद्ध से जुड़े पाठ को हटाया था. इसके पीछे तर्क दिए गए कि करगिल युद्ध की किताबें न मिलने के कारण पाठ को कोर्स से हटाया है. इसके अलावा यह भी तर्क दिए गए कि करगिल युद्ध पर अच्छे लेखकों की किताबें नहीं हैं. हालांकि ये तर्क किसी के गले नहीं उतर रहे हैं.

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