भगवान हैं कि नहीं यह जानना है तो यह Video देखें और खुद करें फैसला
आस्था और विश्वास की ये कहानी है मध्यप्रदेश के देवास जिले की जहां हाटपिपलिया गांव में सदियों पुरानी भगवान विष्णु का चौथा अवतार कहे जाने वाले नृसिंह भगवान का मंदिर है.
Bhopal:
देश में चमत्कार होने के किस्से पहले भी सामने आते रहे हैं. कई बार आपने सुना और देखा होगा कि कहीं देश के किसी हिस्से में देवी-देवता की मूर्ति दूध पीने लगी तो कहीं मूर्ति से आंसू निकलने लगे. लेकिन आज जो हम आपको बताने वाले हैं ऐसी घटना आप ने शायद ही पहले कहीं सुनी हो. आस्था और विश्वास की ये कहानी है मध्यप्रदेश के देवास जिले की जहां हाटपिपलिया गांव में सदियों पुरानी भगवान विष्णु का चौथा अवतार कहे जाने वाले नृसिंह भगवान का मंदिर है. जहां जलझिलणी एकादशी पर हर वर्ष नरसिंह की पहाड़ी पर पत्थर से बनी हुई पाषाण काल की प्रतिमा को स्थानिय भमोरी नदी में स्नान के लिए ले जाते हैं.
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ऐसा एक बार नहीं बल्कि कई बार देखा जा चुका है. यहां हर साल डोलग्यासर पर नृसिंह भगवान की प्रतिमा को नदी में तीन बार तैराया जाता है. लोगों का दावा है की प्रतिमा पानी में तैरती है और नदी के बहाव की उल्टी दिशा में तैरती है.दरअसल, प्रतिमा तैराने के पीछे एक मान्यता है.जिसके अनुसार भगवान की प्रतिमा को तीन बार तैराने से आने वाले साल की खुशहाली का अंदाजा लगाया जाता है.
बुजुर्गों के बताए अनुसार नृसिंह भगवान की इस पाषाण प्रतिमा का इतिहास करीब 115 साल पुराना है.साल 1902 से हर वर्ष भादौ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को यानी डोल ग्यारस के दिन नृसिंह भगवान की प्रतिमा तैराई जाने की परंपरा है.कहा जाता है की प्रतिमा की प्रतिष्ठा बागली रियासत के पंडित बिहारीदास वैष्णव ने नृसिंह पर्वत की चारो धाम की तीर्थ यात्रा करवाने के बाद पीपल्या गढ़ी में करवाई थी.
भमोरी नदी में पंड़ितों के स्नान के बाद नदी की पूजा की जाती है.उसके बाद पंडित द्वारा दीपक जलाकर नदी में छोड़ा जाता है और मंत्रोच्चार के साथ तीन बार प्रतिमा को तैराया जाता है.हर साल प्रतिमा पानी में तैरती है और तीनों बार कामयाबी मिलती है.हाटपिपल्या में हर साल होने वाले इस परंपरा को देखने के लिए लाखों की संख्या में श्रद्धालु भमोरी नदी के घाट पर जुटते हैं.
पंडित पूजा करने के बाद पानी में साढ़े साल किलो की पाषाण प्रतिमा को नदी में बहा देते हैं जिसके बाद प्रतिमा बिना डूबे बहते हुए पानी में धारा के विरुद्ध दिशा में सीधे पंडित के पास आती है. यह द्श्य देखने के लिए देश भर से हजारों की संख्या में सनातनी आते हैं.
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