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प्रतिकात्मक तस्वीर( Photo Credit : News State)
ज्योतिरादित्य सिंधिया के नामांकन दाखिल करने के एक दिन बाद कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने अपने दिल की बात ट्विटर के माध्यम से जाहिर की है. दिग्विजय सिंह ने सिलसिलेवार ट्वीट में ज्योतिरादित्य सिंधिया, भाजपा, आरएसएस (RSS) और हिंदुत्व को लेकर अपने विचार प्रकट किए हैं.
दिग्विजय सिंह ने ट्वीट में लिखा, 'सत्ता मेरे लिए हमेशा मानवता की सेवा का माध्यम रहा है. जब मैं 1981 में जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी से मिला तो यह भावना मेरे अंदर और मजबूत हुई. मैंने उनसे दीक्षा प्राप्त की. मेरे लिए इंसानियत ही मेरा धर्म है. जो हिंदुत्व से बिल्कुल अलग है. मैं ऐसे माहौल में बड़ा हुआ जहां मेरे पिता बिल्कुल नास्तिक व्यक्ति थे. वहीं मेरी मां बहुत ज्यादा धार्मिक महिला थीं. मेरा धर्म सनातन है. मेरा विश्वास सार्वभौमिक भाईचारे में है न कि सम्प्रदायवादी हिंदुत्व में.'
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'मुझे 1970 में जनसंघ जॉइन करने का ऑफर था'
दिग्विजय सिंह ने अगले ट्वीट में लिखा है, 'राजमाता विजया राजे सिंधिया के लिए मेरे दिल में आज भी बहुत ज्यादा सम्मान है. 1970 में जब मैं राघवगढ़ नगर पालिका का अध्यक्ष था, उन्होंने मुझे जनसंघ से जुड़ने के लिए कहा था. लेकिन मैंने विनम्रता के साथ मना कर दिया था. क्योंकि मैंने गुरु गोलवलकर के विचार पढ़े थे और कुछ आएएसएस नेताओं के साथ भी मेरी बातचीत हुई थी. वे (आरएसएस) नहीं जानते कि देश को कितना नुकसान पहुंचा रहे. देश के सामाजिक तानेबाने को बर्बाद कर वे आइडिया ऑफ इंडिया, सनातम धर्म और हिंदुत्व के मूल चरित्र को नुकसान पहुंचा रहे हैं.'
'नरेंद्र मोदी अपनी विचारधारा के लिए समर्पित हैं'
दिग्विजय सिंह ने अपने अगले ट्वीट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आरएसएस की तारीफ की. लेकिन यह तारीफ व्यक्तिगत तौर पर नहीं बल्कि विचारधारा के प्रति समर्पण को लेकर थी. दिग्विजय ने लिखा, 'मैं नरेंद्र मोदी का प्रशंसक नहीं हूं बल्कि उनके सबसे कटु आलोचकों में से एक हूं. लेकिन मैं उनके इस साहस, समर्पण और प्रयास का प्रशंसक हूं कि वह देश में ध्रुवीकरण का कोई भी मौका अपने हाथ से जाने नहीं देते. मैंने ऐसे कार्यकर्ताओं को देखा है जिन्होंने अपना पूरा जीवन संघ के लिए समर्पित कर दिया. संघ के लिए उन्होंने अपना परिवार तक छोड़ दिया. लेकिन संघ के नए प्रचारक भी अब बदल गए हैं. संघ प्रचारकों की नई पौध में नरेंद्र मोदी सबसे चमकीला उदाहरण हैं.'
दिग्विजय ने की RSS और मोदी की प्रशंसा
आरएसएस ने 1925 से लेकर 90 के दशक तक, दिल्ली की सत्ता में आने के लिए कितना इंतजार किया है. इस दौरान वह अपने 'हिन्दू राष्ट्र' के मुख्य मकसद से भटके नहीं. उन्होंने समाजवादियों खासकर जेपी (जय प्रकाश नारायण) और अब नीतीश को सफलता पूर्वक मूर्ख बनाया और एक आरएसएस प्रचारक को भारत का प्रधानमंत्री बनाने के अपने लक्ष्य को पूरा किया. लेकिन इसी बीच कुछ ऐसे भी लोग हैं जिनके लिए सत्ता की भूख विचारधारा और विश्वसनियता से बढ़कर है. ये दो चीजें ही लोकतंत्र का निष्कर्ष होती हैं. मैं संघ और भाजपा से सहमत नहीं हूं लेकिन विचारधारा के प्रति उनके समर्पण का बहुत बड़ा प्रशंसक हूं.'
Source : News State