मध्य प्रदेश उपचुनाव के लिए भाजपा और कांग्रेस में मंथन जारी
एक लोकसभा सीट और तीन विधानसभा सीटों पर उपचुनाव को लेकर सत्ताधारी दल भारतीय जनता पार्टी और विरोधी दल कांग्रेस फूंक फूंक कर कदम बढ़ाने के मूड में है.
highlights
- बीजेपी और कांग्रेस फूंक-फूंक कर रख रही कदम
- दमोह उपचुनाव के परिणामों से बीजेपी में बेचैनी
- कांग्रेस को नजर आ रही हैं आगे की संभावनाएं
भोपाल:
मध्य प्रदेश में आगामी कुछ समय में होने वाले एक लोकसभा सीट और तीन विधानसभा सीटों पर उपचुनाव को लेकर सत्ताधारी दल भारतीय जनता पार्टी और विरोधी दल कांग्रेस फूंक फूंक कर कदम बढ़ाने के मूड में है. यही कारण है कि दोनों पार्टियां जमीनी स्तर से रिपोर्ट मंगा रही हैं. राज्य में खंडवा लोकसभा के अलावा पृथ्वीपुर, जोबट और रैगांव में विधानसभा सीट के लिए उपचुनाव होना है. यह उपचुनाव काफी अहम होने वाले हैं. दोनों राजनीतिक दलों के लिए इसकी वजह भी है क्योंकि कोरोना का संकट आया, महंगाई लगातार बढ़ रही है और किसान आंदोलन भी चल रहे हैं. कांग्रेस जहां इन समस्याओं को मुददा बनाकर चुनाव जीतना चाहती है, वहीं भाजपा की कोशिश है कि इन मुददों को ज्यादा तूल नहीं दिया जाए. इसके लिए वह रणनीति बना रही है.
इसलिए हो रहे उपचुनाव
ज्ञात हो कि खंडवा लोकसभा से भाजपा के नंदकुमार सिंह चैहान सांसद हुआ करते थे. पृथ्वीपुर सीट से कांग्रेस के बृजेंद्र सिंह राठौर व जोबट सीट से कलावती भूरिया और रैगांव सीट से भाजपा के जुगल किशोर बागरी विधायक थे. लिहाजा दोनों ही दल इस उपचुनाव को जीतने के लिए कोई भी कसर नहीं छोड़ना चाहते. भाजपा और कांग्रेस इन उप चुनावों में जीत के लिए हर संभव जोर लगाने की तैयारी में है. भाजपा की कार्यसमिति की बैठक पिछले दिनों भोपाल में हो चुकी है और इस बैठक में भी नेताओं के बीच उपचुनाव पर चर्चा हुई है. संभावित उम्मीदवारों के नामों पर भी विचार का दौर शुरू हो चुका है. इसी तरह कांग्रेस भी खंडवा और तीनों विधानसभा क्षेत्रों के लिए सक्षम उम्मीदवारों की तलाश में जुटी है. फिलहाल अगर सबसे ज्यादा किसी नाम की चर्चा है तो वह है खंडवा से कांग्रेस के लिए पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव की.
दूरगामी पड़ेगा असर
राजनीतिक विष्लेषकों का मानना है कि, पिछले दिनों दमोह में हुए विधानसभा के उप-चुनाव में मिली हार ने भाजपा को हालात से परिचित करा दिया है, तो वहीं कांग्रेस को संभावनाएं नजर आने लगी है. यही कारण है कि दोनों दल आगामी समय के उप-चुनाव को पूरे जोर और दमखम से लडेंगे. इतना ही नहीं इन उपचुनावों के नतीजों का असर आगामी नगरीय निकाय व पंचायतों के चुनाव पर तो होगा ही, साथ में लोकसभा व विधानसभा के चुनाव तक असर छोड़े, तो बड़ी बात नहीं होगी.
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