सिंधिया का सियासी सफर.. यूं मध्यप्रदेश के 'महाराज' ने संभाली परिवार की राजनीतिक विरासत!
तारीख 1 जनवरी 1971.. जगह मायानगरी मुंबई.. सिंधिया राजघराने में नन्हें राजकुमार का जन्म होता है, जिसे पहचान जाता है ज्योतिरादित्य माधवराव सिंधिया के तौर पर. धीरे-धीरे वक्त बीतता है...
नई दिल्ली:
ज्योतिरादित्य सिंधिया मध्य प्रदेश की राजनीति में बड़ा नाम है. उनके ताल्लुकात राजघराने से है, लिहाजा अपने गढ़ में उनकी पकड़ भी काफी मजबूत है. क्योंकि सिंधिया अपने शाही परिवार के तीसरी पीढ़ी के नेता हैं, इसलिए उनसे पहले उनके पिता जी स्व. माधवराव सिंधिया और दादी विजयाराजे सिंधिया भी बड़ी राजनीतिक हस्तियों में शुमार रही है. बता दें कि जहां ज्योतिरादित्य के पिता सूबे में कांग्रेस के दिग्गज के तौर पर पहचाने जाते थे, वहीं दादी बीजेपी की कद्दावर नेताओं में से एक थीं. लिहाजा ज्योतिरादित्य सिंधिया को राजनीति विरासत में मिली थी... आइये आज इस आर्टिकल में हम ज्योतिरादित्य सिंधिया के इस सियासी सफर से होकर गुजरें...
उनका निजी जीवन...
तारीख 1 जनवरी 1971.. जगह मायानगरी मुंबई.. सिंधिया राजघराने में नन्हें राजकुमार का जन्म होता है, जिसे पहचान जाता है ज्योतिरादित्य माधवराव सिंधिया के तौर पर. धीरे-धीरे वक्त बीतता है और साल 1993 आ जाता है. सिंधिया भी बड़े हो चुके थे और भरपूर मेहनत से अपनी आगे की पढ़ाई-लिखाई में हावर्ड यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र की डिग्री हासिल कर चुके थे. इसके बाद साल 2001 में स्टैनफोर्ड ग्रुजुएट स्कूल ऑफ बिजनेस से उन्होंने एमबीए किया. अब साल 1994वें आया, जब वो 23 साल के थे तो उनकी शादी पूरे शाही अंदाज में गायकवाड़ घराने की प्रियदर्शिनी से कर दी गई, जिसके कुछ सालों बाद उनका एक बेटा महा आर्यमान और बेटी अनन्याराजे पैदा हुई.
यूं शुरू हुआ सियासी सफर...
जैसे कि हमनें पहले ही बताया कि, सिंधिया का राजनीतिक से पुराना नाता रहा है. हालांकि उनकी दादा राजघराने की पहली पीढ़ी की नेता थी, उन्होंने भाजपा के दिग्गज नेता की पहचान हासिल की, बावजूद इसके उनके बेटे और ज्योतिरादित्य के पिता माधवराव सिंधिया ने कांग्रेस के साथ जुड़े. अपने शुरुआत दौर में वे जनसंघ के टिकट से चुनाव लड़े, इसके बाद उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया. अपने पिता के ही पदचिन्हों पर चलते हुए ज्योतिरादित्य लंबे समय तक कांग्रेस में रहे, मगर इसके बाद कुछ साल पहले ही उन्होंने भाजपा से हाथ मिला लिया, जो कि उस वक्त देश की सबसे बड़ी खबर थी.
जब पिता के पदचिन्हों को त्याग.. दादी के राह पर चले पड़े सिंधिया
मालूम हो कि राजनीति में दाखिल होने का फैसला ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए आसान नहीं था. जब 30 सितंबर 2001 को विमान हादसे में स्व. माधवराव सिंधिया की मौत हुई, तो विदेश में रह रहे ज्योतिरादित्य ने राजनीतिक मैदान में उतरने का फैसला किया. पिता के देहांत के बाद उन्होंने अपनी पारंपरिक गुना सीट से चुनाव लड़ा और लोकसभा पहुंचे.
फिर साल 2004 में भी उन्होंने इसी सीट से चुनाव लड़ा और बहूमत जीता. इसके बाद, साल 2007 में यूपीए सरकार ने उन्हें बतौर केंद्रीय राज्य मंत्री नियुक्त किया, फिर 2012 की मनमोहन सरकार में केंद्रीय राज्य मंत्री का स्वतंत्र प्रभार संभाला सौंपा. फिर दौर आया मोदी लहर का, साल 2014 में जब तकरीबन पूरा भारत ही मोदीमय हुआ पड़ा था, बावजूद इसके उन्होंने गुना में जीत दर्ज करवा ली.
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