/newsnation/media/post_attachments/images/2022/11/07/tribes-83.jpg)
Madhya Pradesh 21 percent population( Photo Credit : social media)
मध्यप्रदेश में भले ही चुनाव में समय अभी काफी बचा हो, लेकिन अभी से ही राजनीतिक दलों की तरफ से जोर-आजमाइश शुरू हो गई है. राज्य में सबसे ज्यादा फोकस आदिवासी वोट बैंक पर है. 21 फीसदी आबादी को हर कोई साथ लाने की जुगत में जुटा है. खास बात ये है कि शीर्ष नेतृत्व के स्तर पर ये कोशिश हो रही है. बीजेपी से पीएम मोदी दो बड़े कार्यक्रम कर चुके हैं. पहला भोपाल में जनजातीय सम्मेलन और दूसरा मानगढ़ में श्रद्धांजलि सभा में शामिल हो चुके हैं. दोनों ही कार्यक्रमों में आदिवासियों को साधने की कोशिश हो रही तो वहीं अब इस रेस में राहुल गांधी भी शामिल होने जा रहे हैं. कहा जा रहा है कि राहुल गांधी टंट्या मामा की प्रतिमा पर माल्यार्पण करेंगे. भारत जोड़ो यात्रा में ये कार्यक्रम पहले शामिल नहीं था.लेकिन बाद में इसे जोड़ा गया. मतलब साफ है कि आदिवासियों को रिझाने में कोई पीछे नहीं रहना चाहता.
दरअसल मध्य प्रदेश में 47 सीटें ST के लिए रिजर्व हैं. कुल आबादी में 21.1% हिस्सेदारी है. इनमें से करीब 60 लाख भील समाज के लोग हैं. आदिवासी समाज में करीब 39% भील हैं यानी हर 3 आदिवासी में से एक भील है. आंकड़ों से आदिवासी वोटबैंक की एहमियत को समझा जा सकता है. शायद इसीलिए राजनीतिक दल इन्हें अपने पक्ष में जल्द से जल्द करने की जुगत में जुटे हैं. वहीं अगर सियासी इतिहास के पन्नों को पलटें तो ये पता चलता है कि जिसके साथ आदिवासी वोट बैंक उसका पलड़ा ज्यादा भारी. दरअसल 2003 में आरक्षित 41 सीटों में से बीजेपी को 37 सीटें मिली थीं.
कांग्रेस को सिर्फ 2 सीटें मिली थीं. इसी तरह 2008 में रिजर्व सीटें बढ़कर 47 हो गयी. बीजेपी को 29 और कांग्रेस को 17 सीटें मिली थीं जबकि 2013 में बीजेपी को 31 और कांग्रेस को 15 सीटें मिली थीं. लेकिन 2018 में कांग्रेस को 30 और बीजेपी को 16 सीटे मिली. यानी 2018 में आदिवासी सीटों की स्थिति बदली थी. कांग्रेस के पक्ष में एकतरफा मामला दिखा था. बीजेपी को बड़ा नुकसान हुआ था और शायद इसीलिए बीजेपी को 2018 में सत्ता से बाहर भी होना पड़ा था. इसीलिए इस बार आदिवासी सीटों को लेकर पार्टियां ज्यादा अलर्ट हैं ताकि 2023 की रेस में आगे निकला जा सके.
Source : Adarsh Tiwari